भूटान के राजकुमार का हुआ है पुर्नजन्म, कहानी सुन पीएम मोदी भी हो गए हैरान
पुनर्जन्म एक सच है ऐसा करोड़ों लोगों के मन में विश्वास है। पुनर्जन्म से जुड़ी कई घटनाएं आपने पढ़ी, सुनी या देखी होगी। आम लोग अगर ऐसा दावा करें तो सामान्य बात लगती है। लेकिन एक राजकुमार ने ये दावा किया हो तो बात सामान्य कैसे हो सकती है। जी हां कुछ ऐसा ही दावा है, पीएम मोदी से मिले भूटान के राजकुमार का। भूटान के राजा जिग्मे खेसर नामग्याल वांगचुक चार दिवसीय दौरे पर भारत आए हुए हैं. उन्होंने अपनी पत्नी और बेटे जिग्मे नामवांगचुक के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की.
नालंदा यूनिवर्सिटी में की थी पढ़ाई
पुनर्जन्म का मामला अपने आप में अनोखा है। भूटान और भारत के रिश्ते प्राचीनकाल से रहे हैं। तीन साल पहले भूटान की महारानी दोरजी वांगुक के यहां नाती का जन्म हुआ है। इस छोटे से बच्चे जिग्मे नामवांगचुक का प्राचीन भारत की नालंदा यूनिवर्सिटी से कोई जुड़ाव है। भूटान का राज परिवार उस समय हैरान रह गया जब राज परिवार के तीन साल के बच्चे ने बताया था कि वो नालंदा विश्वविद्यालय का छात्र था. उसने 8वीं शताब्दी के बारे में सारी बातों की भी जानकारी दी थी
एक साल की उम्र में पहचान लिया था नालंदा
जिग्मे वांगचुक एक साल की उम्र से ही प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के नाम का उच्चारण करता रहा है. पहले तो यह किसी को समझ में नहीं आया. लेकिन जब वो बड़ा हुआ तो उसने बताया कि पिछले जन्म में उसने यहां पढ़ाई की है, यह सुनना सभी के लिए काफी आश्चर्यजनक अनुभव था.
नालंदा को देखकर प्रसन्न हो गया था राजकुमार
जिग्मे जब नालंदा ले जाया गया तो चमत्कार हो गया। जिग्मे नालंदा विश्वविद्यालय के चप्पे-चप्पे से वाकिफ है। जब वह नालंदा गया तो अपने कमरे तक पहुंच गया जहां पूर्वजन्म में रहता था। इतना ही नहीं, वहां उसने वह मुद्राएं दिखाईं जो नालंदा के छात्रों को सिखाई जाती थीं। जिग्मे की नाना नानी और भूटान की महारानी ने कहा था कि ‘मेरे साथ मेरा नाती आया है यहां पहली बार…मैं समझती हूं कि ये मेरे लिए बेहद खास दिन है…क्योंकि, ये पुनर्जन्म है वेरोचन का…जो नालंदा यूनिवर्सिटी के शिक्षाविद थे…वो यहां पढ़े थे, जो दुनिया की सबसे पुरातन और महान यूनिवर्सिटी में से एक है…और मेरे नाती ने इस यूनिवर्सिटी को पहचान लिया है…उसने कहा कि ये जगह अब खंडहर हो चुकी है…मेरे नाती ने बताया कि वह यहां पढ़ा था…नालंदा यूनिवर्सिटी के तमाम रास्ते उसे याद हैं..उसने बताया कि वो कहां बैठता था…कौन सी चीज कहां पर थी? ये सारी बातें हमारे लिए चौंकाने वाली हैं… उन्होंने कहा था कि भगवान बुद्ध की कृपा से उसका पुनर्जन्म राज घराने में हुआ है.
सारनाथ से भी बताया था खास संबंध
सारनाथ के पुरातात्विक खंडहर परिसर, चौखंडी स्तूप, धमेख स्तूप को कभी गंभीरता से देखता, कभी हंस देता। भगवान बुद्ध की प्रतिमा को देखते ही उसके शांत मुखमंडल पर खुशी की लकीरें खिंच गईं।
हजारों साल पुराना है नालंदा विश्वविद्यालय
गौरतलब है कि प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना गुप्त काल के दौरान 5वीं सदी (413 ईस्वीं) में हुई थी. 1193 में आक्रमण के बाद इसे नेस्तनाबूत कर दिया गया था. इस विश्वविद्यालय की स्थापना का श्रेय गुप्त शासक कुमार गुप्त प्रथम 450-470 को प्राप्त है. यह विश्व का प्रथम पूर्णतः आवासीय विश्वविद्यालय था. उस समय इसमें विद्यार्थियों की संख्या करीब 10,000 और अध्यापकों की संख्या 1500 थी.