अध्यात्म

हवन के दौरान आखिर क्यों जरूरी है ‘स्वाहा’ का उच्चारण, जानिए क्या है वजह

ऊँ सूर्याय नम:  स्वाहा, ऊँ भगवते: नम: स्वाहा.. जी हां ये मंत्र आपने घरों में होने वाले अनुष्ठानों में सुने होंगे जिसको पूजन के बाद होने वाले हवन के दौरान कहा जाता है। अनुष्ठान कराने वाले पंडित जी मंत्र पढ़ते हैं, और उसके बाद अंत में “स्वाहा” बोलते है। हवन में शामिल होने वाले लोग भी स्वाहा का उच्चारण करते हैं। आखिर क्या वजह है जो सभी लोग स्वाहा शब्द का इस्तेमाल करते हैं। क्या है इसके पीछे की वजह। आखिर क्यों हर मंत्र के बाद स्वाहा कहने की जरूरत पड़ती है। क्या इसके बिना हवन नहीं पूरा होता।

स्वाहा कहने से ही पूरा होता है हवन

हवन को लेकर ज्योतिष और पुराणों में कई बातें लिखी गई हैं। जिसमें ज्योतिषियों के अनुसार ‘स्वाहा’ का अर्थ होता है- जरूरी भौगिक पदार्थ को अपने प्रिय तक पहुंचाना। यानी यज्ञ को तब तक सफल नहीं माना जाता है जब तक देवता उसे ग्रहण नहीं कर लेते। देवता किसी भी सामग्री को तभी ग्रहण करते हैं जब यज्ञ के दौरान ‘स्वाहा’ कहा जाता है।

पौराणिक कथा के अनुसार

यज्ञ के दौरान ‘स्वाहा’ कहने के पीछे एक पौराणिक कहानी भी है, जिसके अनुसार राजा दक्ष की बेटी स्वाहा की शादी अग्निदेव से हुई थी। ऐसे में जब भी कुछ अग्नि को अर्पित किया जाता है तो स्वाहा का उच्चारण किया जाता है। माना जाता है कि अग्नि देव अपनी पत्नी स्वाहा के माध्यम से ही कुछ भी ग्रहण करते हैं। साथ ही अग्नि देव को हविष्यवाहक भी कहा जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार शादी के बाद अग्नि देव की पत्नी को पावक, शुचि और पवमान नामक तीन पुत्रों की प्राप्ति हुई।

इंसानों और देवताओं में हुआ था समझौता

‘स्वाहा’ कहने के बारे में एक और पौराणिक कथा में बताया गया है कि ऋग्वैदिक काल में देवताओं और इंसानों के बीच समझौता हुआ, जिसमें अग्नि को श्रेष्ठ चुना गया। तब से ऐसी मान्यता है कि अगर ‘स्वाहा’ का उच्चारण करते समय अगर किसी वस्तु को अग्नि में डाला जाता है तो वो देवताओं तक पहुंच जाती है। कुल मिलाकर अग्नि को देवताओं तक पहुंचाने का माध्यम माना गया। ऋग्वेद, यजुर्वेद आदि वैदिक ग्रंथों में अग्नि के महत्व के बारे में विस्तार से बताया गया है।

ये भी एक वजह

वहीं ‘स्वाहा’ के बारे में एक और कथा भी कही जाती है, जिसके अनुसार स्वाहा एक प्रकृति की एक कला थी, जिसकी शादी देवताओं के अनुरोध पर अग्निदेव से हुई थी। शादी के बाद भगवान श्रीकृष्ण ने वरदान दिया था कि जो कोई भी यज्ञ के दौरान स्वाहा का नाम लेगा अर्थात स्वाहा का उच्चारण करेगा, देवता उसकी दी हुई सामग्री को ग्रहण करेंगे। ये भी मान्यता है कि यज्ञ के दौरान स्वाहा कहने से देवता खुश होते हैं।

भोग लगाने से खुश होते हैं देवता

कहा जाता है कि यज्ञ के बाद देवताओं को भोग लगाना चाहिए। अगर देवताओं को भोग नहीं लगाया जाता है तो यज्ञ को पूर्ण नहीं माना जाता है। ध्यान रहे कि भोग में मीठा होना चाहिए। इससे देवता खुश होते हैं।

 

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