सुप्रीम कोर्ट का आदेश, मृतक के भविष्य को देखकर दिया जाए मुआवजा
सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक अहम फैसले में कहा है कि सड़क दुर्घटना में मारे गए व्यक्ति के भविष्य की संभावनाओं को देखते हुए अब मुआवजा राशि तय होगी न कि केवल मौजूदा आय पर। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली 5 सदस्यीय संविधान बेंच ने मंगलवार को यह फैसला सुनाया। उच्चतम न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसले में सड़क दुर्घटना में मारे गए व्यक्ति के आश्रितों को मुआवजे का आदेश देते समय मृतक की ”भावी संभावनाओं’ पर विचार किया जाएगा। न्यायालय ने ऐसे दावों में मुआवजे के निर्धारण के लिए मानक आधार प्रतिपादित किए हैं। प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ के समक्ष्र ऐसे अनेक पेचीदा सवाल थे कि क्या सड़क दुर्घटना में मारे गए व्यक्ति, जो अपना काम करता था या निजी अथवा असंगठित क्षेत्र में एक निर्धारित वेतन पर काम करता था, के आश्रित ‘भावी संभावना’ की मद के अंतर्गत मृतक को मिलने वाले वेतन का एक निश्चित प्रतिशत जोडऩे के बाद मुआवजा राशि में वृद्धि करा सकता है।
आमदनी और ओहदा देख कर तय किया जाएगा मुआवजा
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस एके सीकरी, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड और जस्टिस अशोक भूषण की बेंच ने एक गाइडलाइन बनाते हुए कहा कि मृतक के भविष्य की संभावनाओं को देखना भी अनिवार्य होगा। मुआवजा तय करते समय यह देखना होगा कि मृतक स्थायी नौकरी करता है या फिर उसका अपना कारोबार है। भविष्य की संभावनाओं को देखते हुए अगर मृतक स्थायी नौकरी में है तो मृतक के वेतन का 50 फीसदी मुआवजा भविष्य की कमाई की संभावनाओं के हिसाब से मिलना चाहिए। अगर मृतक का अपना कारोबार है तो उसे 40 फीसदी मुआवजा मिलना जरूरी है। अलग-अलग उम्र के मृतकों के लिए अलग-अलग सीमा तय की गई है। अगर मृतक 40-50 उम्र के बीच का है तो उसके लिए यह मुआवजा 30 प्रतिशत, 50-60 वर्ष वाले मृतक के लिए यह 15 पर्सेंट तक हो सकता है।
10 से 25 प्रतिशत तक मिलेगा बढ़ावा
संविधान पीठ ने स्वरोजगार वाले या निजी क्षेत्र में काम करने वाले व्यक्ति के मामले में आश्रितों को मुआवजा देते समय ‘भावी संभावना’ की मद के तहत मृतक की आमदनी या वेतन के प्रतिशत का भी निर्धारण किया है। यदि स्वरोजगार या निजी क्षेंत्र में एक निर्धारित वेतन पर काम करने वाला मृतक 40 साल से कम उम्र का था तो उसकी स्थापित आमदनी का 40 प्रतिशत जोड़ा जाएगा। ऐसे ही मृतक के 40 से 50 वर्ष की आयु के बीच का होने की स्थिति में 25 प्रतिशत और 50 से 60 वर्ष की आयु के मृतक के मामले में दस फीसदी अतिरक्त जोडने का अनिवार्य तरीका होना चाहिए।
27 याचिकाओं की सुनवाई के बाद फैसला
पीठ ने कहा कि मुआवजे की राशि की गणना करते समय आमदनी के निधार्रण में भावी संभावनाओं को शामिल करना होगा ताकि मोटर वाहन कानून के प्रावधानों में परिकल्पित यह तरीका न्यायोचित मुआवजे के दायरे में आए। संविधान पीठ ने पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के निर्णय के खिलाफ नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लि की याचिका सहित 27 याचिकाओं पर सुनवाई के बाद यह फैसला सुनाया।