आखिर क्यों सूर्य देव ने अपने ही पुत्र शनि को अपनाने से किया था इंकार? वजह जानकर रह जायेंगे हैरान
हिंदू धर्म में शनि देव को न्याय का देवता माना जाता है. अपने पक्षपात रहित न्याय के कारण उन्हें न्याय के देवता के रूप में पूजा जाता है. मान्यता है कि शनि देव हर किसी को उसके पाप व बुरे कर्म के लिए दंड देकर ही रहते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि शनि देव के पिता सूर्य देव ने उन्हें अपना पुत्र मानने से इनकार कर दिया था? शायद नहीं, तो आईये हम आपको बताते हैं ऐसा क्या हुआ था कि सूर्य देव अपने ही पुत्र शनि को अपना नहीं पाए थे.
सूर्य देव की पत्नी का नाम छाया था. शनि का जन्म सूर्य देव की पत्नी छाया के गर्भ से हुआ. शनि देव के पिता अर्थात सूर्य देव मुनि कश्यप के वंशज हैं. माता छाया की कठोर तपस्या के बाद शनि देव का जन्म ज्येष्ठ मास की अमावस्या को सौराष्ट के शिगणापुर में हुआ था. शनि देव की माता भगवान शिव की भक्त थीं. जब शनि देव माता छाया की गर्भ में थे, उस समय वह भगवान शिव की भक्ति में लीन थीं. भक्ति में लीन होने के कारण वह अपने स्वास्थ्य का ध्यान नहीं रख पाईं. तेज़ गर्मी और स्वास्थ्य की देखभाल ठीक तरह से न हो पाने की वजह से शनि देव का रंग गर्भ में ही काला हो गया.
शनि को पुत्र मानने से किया इंकार
एक बार जब सूर्य देव अपनी पत्नी से मिलने गए तब उन्होंने दिव्य दृष्टि से देखा कि शनि देव का रंग काला है. गर्भ में अपने पुत्र का काला रंग देखकर सूर्य देव बहुत हैरान हो गए, जिसके बाद उन्होंने शनि को अपना पुत्र मानने से इंकार कर दिया. इसी कारण से सूर्य देव ने अपनी पत्नी और पुत्र का त्याग कर दिया. जब शनि को यह बात पता चली तो वह अपने पिता के प्रति शत्रुता का भाव रखने लगे.
पिता से ज़्यादा शक्तिशाली और पूज्य होने का मांगा वरदान
माता की तरह शनि देव भी भगवान शिव के भक्त थे. अपनी कठोर तपस्या और भगवान शिव के वरदान से उन्होंने अपार शक्ति प्राप्त कर ली. शनि देव ने भगवान शिव से वरदान मांगते हुए कहा कि सूर्य देव ने मेरी माता का बहुत अपमान किया है. इसलिए मैं आपसे सूर्य देव से ज़्यादा शक्तिशाली और पूज्य होने का वरदान मांगता हूं. भगवान शिव शनि की तपस्या से बहुत प्रसन्न थे. अतः उन्होंने शनिदेव को मनचाहा वरदान देते हुए कहा कि तुम नवग्रहों में सर्वश्रेष्ठ स्थान पाओगे और सर्वोच्च न्यायाधीश कहलाओगे. मनुष्य, दानव और देवता सभी तुम्हारे नाम से कापेंगे. इस तरह शनि देव अपने पिता के समक्ष क्षमतावान बने और अपने माता के सम्मान की भी रक्षा की.