अध्यात्म

जानिए, मृत शरीर को जलाने और दफ़नाने में कौन सा तरीका है बेहतर? बच्चों क्यों दफ़नाया जाता है?

शायद आपके मन में भी कभी ये सवाल आया हो कि मुस्लिम के मृत शरीर को दफ़नाने और हिन्दुओं के मृत शरीर को जलाने में सबसे बेहतर तरीका कौन सा है? यह एक ऐसी बात है जिसपर लगातार विवाद होता रहा है। कुछ लोगों को मृत शरीर को जलाने के बजाय उसे दफनाना बेहतर लगता है तो कुछ को जलाना। इसलिए आज हम आपको आध्यात्मिक और वैज्ञानिक दोनों तरीकों से समझाते हैं कि इन दोनों तरीकों में से सबसे बेहतर कौन सा तरीका है। Which is better to burn and bury the dead body.

 जीवन के बाद मृत्यु एक कड़वा सच है

जी हां, जीवन के बाद मृत्यु एक कड़वा सच है। जो आज जिवित है कल वह मृत होगा।  एक ना एक दिन सबको मरना है, कोई अमर नहीं है। आप चाहे अपनी लंबी उम्र की लाख कामना कर ले और भगवान से अमर होने की मन्नत मांग ले, ये एक ऐसा सच है जिसे हर कोई मानता है। लेकिन, हिन्दू धर्म की मान्यताओं के मुताबिक आत्मा कभी नहीं मरती, केवल शरीर मरता है। आत्मा तो केवल एक शरीर से निकलकर दुसरे शरीर में प्रवेश करती है। लेकिन उस आत्मा द्वारा छोड़े गए शरीर का धार्मिक रूप से अंतिम संस्कार करना बेहद आवश्यक है।

 

मृत शरीर का होता है अंतिम संस्कार

हिन्दू मान्यताओं के मुताबिक, मृत शरीर का अंतिम संस्कार आत्मा की शांति के लिए किया जाता है। अंतिम संस्कार के पीछे हिन्दु मान्यता है कि आत्मा को इससे अगले जन्म या फिर मुक्ति के लिए रास्ता मिल जाता है। लगभग हर धर्म में मृत्यु के बाद मृत शरीर का अंतिम संस्कार करने का रिवाज़ है, लेकिन यह हर धर्म में अलग-अलग है। किसी धर्म में व्यक्ति के मृत शरीर को जलाता है तो किसी धर्म में ज़मीन में दफनाया जाता है। वहीं कुछ धर्मों में मृत शरीर को प्राकृतिक जीवों को खाने के लिए भी छोड़ दिया जाता है। आज हम आपको शव को जलाने या दफना देने के पीछे के वैज्ञानिक और आध्यात्मिक कारणों की जानकारी देंगे।

 

मिस्र सभ्यता में कैसे होता है अंतिम संस्कार?  

जलाने और दफनाने के अलावा, मिस्र सभ्यता में अंतिम संस्कार का तरीका थोड़ा अलग है। मिस्र सभ्यता के मुताबिक एक शरीर के भीतर रहने वाली आत्मा उसे छोड़ने के बाद कहीं भटकती ना रहे इसलिए उसे एक निश्चित स्थान दिया जाता है। यही वजह है कि वर्षों पहले मिस्र प्रजाति के लोग किसी की मृत्यु होने पर उसके शव को दफनाने या फिर जलाने के बजाय शव की ममीबनाकर उसे एक संदूक में बंद कर कहीं निश्चित जगह पर रख देते थे। इसके अलावा, आत्मा के सुख के लिए जिन चीज़ों की आवश्यकता होती है, उन्हें भी शव के साथ ही रख दिया जाता था।

 

विभिन्न धर्मों में शरीर को दफनाने का कारण

सबसे पहले तो आपको बता दें कि शरीर को दफन करने के पीछे कई कारण माने जाते हैं। कुछ लोग इसे शव को एक अंतिम विदाई देने का सबसे साफ एवं सुरक्षित तरीका मानते हैं। लोगों कि मान्यता है कि इससे धीरे-धीरे शरीर मिट्टी में मिलकर प्राकृतिक रूप से खत्म होता जाता है और इससे हमारे वातावरण में प्रदूषण भी नहीं फैलाता। इसलिए यह तरीका सबसे बेहतर है। खास बता ये है कि जिन धर्मों में शव को दफनाने का रिवाज़ है उनमें शव को किसी पेड़ के पास ही दफन किया जाता है। लेकिन जब हम बात हिन्दू धर्म कि करते हैं तो यह बाकी धर्मों से काफी अलग है। हिन्दू धर्म के मुताबिक लोगों को अपने जीवन में कम से कम तीन वृक्ष उगाने को कहा गया है।

 

हिन्दू धर्म में शरीर को जलाने का कारण

हिन्दु धर्म में शव को दफनाने के बजाय जलाने का रिवाज है। अग्नि देवता का हिन्दू धर्म में एक विशेष स्थान है, जो किसी इंसान की शादी से लेकर मृत्यु तक के साक्षी रहते हैं। शव को जलाते समय अग्नि देव से शरीर के पांच अहम तत्वों को अपने में ग्रहण करने और उन्हें एक नया जीवन प्रदान करने की प्रार्थना की जाती है। पहला कारण, अन्य धर्मों में जहां शव को किसी विशेष स्थान पर दफन करने का रिवाज है तो वहीं हिन्दु धर्म में शव को प्राकृतिक जंतुओं द्वारा ग्रहण किया जाना बुरा माने जाने के कारण जलाने का रिवाज है। दूसरा कारण, शव को दफनाने के लिए एक बड़े स्थान की आवश्यकता होती है लेकिन शव को जलाने के लिए एक ही स्थान को कई बार इस्तेमाल किया जा सकता है। तीसरा कारण, शव को जलाने के बाद उनकी राख को नदियों एवं तालाबों में रहने वाले जीव-जन्तु के लिए बहा दिया जाता है।

साधुओं एवं बच्चों को क्यों नहीं जलाया जाता?

लोग अक्सर ये मानते हैं कि हिन्दू धर्म में सभी को जलाया जाता है। लेकिन यह बात बहुत कम लोगों को मालूम होगी कि हिन्दु धर्म में साधुओं एवं बच्चों को जलाया नहीं बल्कि दफनाया जाता है। इसके पीछे यह मान्यता है कि संत-महात्मा आम मनुष्य से बढ़कर हैं। इसलिए उन्हें लेटाकर नहीं बल्कि कमल की भांति बैठाकर दफनाया जाता है। इसी तरह हिन्दु धर्म में बच्चों को संसार में आने वाले फरिश्ते माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि वो अभी पूरी तरह से अपने शरीर और दुनियादारी की रीतियों से नहीं बंधे होते हैं। इसी वजह से नवजात बच्चों का अंतिम संस्कार हिन्दु धर्म में नहीं किया जाता है।

 

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