23 साल की उम्र और 6000 करोड़ की कंपनी, कभी सड़कों पर घूम बेचा करता था सिम कार्ड
सफलता के लिए कोई उम्र नहीं होती. आइडिया और विजन होने पर व्यक्ति किसी भी उम्र में सफल हो सकता है. ऐसी ही एक मिसाल हैं 6000 करोड़ से भी ज्यादा की कंपनी OYO के फाउंडर और मालिक 23 साल के रितेश अग्रवाल.
व्यक्तिगत तौर पर रीतेश सामान्य बुद्धी वाले युवा हैं, जिन्होंने मात्र 21 साल की छोटी सी उम्र में अपने अनुभव, सही अवसर को पहचानने की क्षमता और मेहनत के बल पर अपने विचारों को वास्तविकता का रूप दे दिया.
युवा उद्यमी की बिज़नेस यात्रा
रितेश अग्रवाल ने बिजनेस के बारे में सोचने और समझने का काम कम उम्र में ही शुरू कर दिया था. इसमें सबसे बड़ी भूमिका उनके पारिवारिक पृष्ठभूमि की थी. उनका जन्म 16 नवंबर 1993 को उड़ीसा राज्य के जिले कटक बीसाम के एक व्यवसायिक परिवार में हुआ है.
बारहवीं तक कि पढ़ाई उन्होंने जिले के ही Scared Heart School में की. इसके बाद उनकी इच्छा IIT में दाखिले की हुई, जिसकी तैयारी के लिए वह राजस्थान के कोटा आ गए. कोटा में उनके बस दो ही काम थे- एक पढ़ना और दूसरा जब भी अवकाश मिले खूब ट्रैवल करना. यही से उन्होंने इस आईडिया के बारे में पहली बार सोचा था.
कभी किराया देने के लिए नहीं थे पैसे
रितेश अग्रवाल ने 17 साल की उम्र में इंजीनियरिंग छोड़ इस कंपनी की शुरुआत की. यह कंपनी उन्होंने बिना किसी की मदद के शुरू की थी और सिर्फ 6 साल में यह 6000 करोड़ तक पहुंच गई है. इंटरव्यू में उन्होंने बताया था कि उनके पास शुरुआती दिनों में किराया देने के लिए भी पैसे नहीं होते थे और कई रातें उन्होंने सीढ़ियों पर बिताई हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार वह सिम कार्ड भी बेचा करते थे. रितेश ने एक वेबसाइट तैयार की थी जहां वे सस्ते और किफायती होटल्स के बारे में जानकारी अपडेट करते थे, जिसका नाम था ‘ओरावेल’.
ऐसे आया आइडिया
सन 2009 में रितेश देहरादून और मसूरी घूमने गए थे. वहां से उन्हें इस बिजनेस के बारे में आइडिया आया. रितेश ने एक वेबसाइट तैयार की जहां वह सस्ते और किफायती होटल्स के बारे में जानकारी देते थे. इस वेबसाइट का नाम रखा ‘ओरावेल’. उनके इस आइडिया से गुड़गांव के मनीष सिन्हा ने ‘ओरावेल’ में निवेश किया और को-फाउंडर बन गए.
इसके बाद 2012 में ओरावेल को आर्थिक मजबूती मिली जब देश के पहले एंजल आधारित स्टार्ट-अप एक्सलेरेटर वेंचर नर्सरी एंजल ने उनकी हेल्प की. रितेश के मुताबिक कुछ दिन वेबसाइट चलाने के बाद उन्हें लगा कि नाम के कारण लोग वेबसाइट को समझ नहीं पा रहे हैं. इसलिए उन्होंने 2013 में उसका नाम बदल कर OYO Rooms रख दिया. यह नाम लोगों को इतना पसंद आया कि उसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.
कई समस्याएं थीं सामने
फंडिंग, मार्केटिंग, प्रॉपर्टी ऑनर्स और इन्वेस्टर्स तक पहुंचने के लिए उनके सामने कई समस्याएं आईं थीं. लेकिन टीम वर्क और सही गाइडेंस से वह आगे बढ़ते गए और कंपनी को खड़ा किया. OYO ने सॉफ्टबैंक सहित मौजूदा इन्वेस्टर्स और हीरो एंटरप्राइज से 25 करोड़ डॉलर (1600 करोड़ रुपए से अधिक) की नई फंडिंग की है. कंपनी इस फंड का इस्तेमाल भारत और दक्षिण पूर्व एशिया में अपनी मौजूदगी बढ़ाने के लिए करना चाहती है.
आज मात्र 2 वर्षों में OYO Rooms, 15000 से भी ज्यादा होटलो की श्रृंखला (1000000 कमरों) के साथ देश की सबसे बड़ी आरामदेह एवं सस्ते दामों पर लोगों को कमरा उपलब्ध कराने वाली कंपनी बन चुकी है. रितेश अग्रवाल की यह कंपनी भारत के शीर्ष स्टार्ट-अप कंपनियों में से एक है. इसी वर्ष कंपनी ने मलेशिया में भी अपनी सेवाएं देना प्रारंभ कर दिया है और आने वाले समय में अन्य देशों में भी अपनी पहुंच बनाने जा रही है.