सिंदूर लगाने, भगवा पहनने पर इस्लाम से कर दिया था खारिज, अब देवबंद ने जारी किया ये फतवा
मुस्लिम महिला ने सिंदूर लगाया, पति ने पहने भगवा केसरिया कपड़े, तो मौलवी ने इस्लाम से ही खारिज कर दिया। परिवार वालों ने बात करना तो दूर देखना तक छोड़ दिया। जी हां ये दर्द है गाजियाबाद के मुरादनगर के ईदगाह कॉलोनी में रहने वाले मुस्लिम दंपति का। जिन्हें अपनी पसंद का काम करने पर मौलवी ने इस्लाम से ही बाहर कर दिया है। लेकिन खुशी का बात ये हैं कि सहारनपुर के देवबंद स्थित दारुल उलूम ने फतवा जारी कर उन्हें इस्लाम में सिंदूर लगाने और भगवा पहनने की इजाजत दे दी है।
क्या है पूरा मामला, क्यों खारिज किए गए इस्लाम से
मामला गाजियाबाद के ईदगाह कॉलोनी निवासी आसिफ अली का है। जिनको भगवा रंग बहुत पसंद है। लिहाजा वह हर साल ईद की नमाज भगवा रंग का कुर्ता पायजामा पहनकर पढ़ते हैं। ईद के अलावा वह शादी समारोह व अन्य कार्यक्रमों में भी भगवा रंग के कपड़े पहनकर जाते हैं। लेकिन कुछ लोग लगातार भगवा रंग को गैर इस्लामिक बताते हुए विरोध करते थे। वहीं, आसिफ की पत्नी मांग में सिंदूर भरती हैं। दो माह पहले आसिफ पत्नी को लेकर परिवार के एक धार्मिक कार्यक्रम में पहुंचे थे। वहां मौजूद समाज के लोगों ने मांग में सिंदूर भरने और भगवा कपड़े पहनने की शिकायत उलेमा से कर दी। इस दौरान एक उलमा ने दंपती को इस्लाम विरोधी बताते हुए उन्हें इस्लाम से खारिज कर दिया।
उलेमा के एक आदेश के बाद आसिफ अली और उनकी पत्नी सन्न रह गए। दोनों को इस्लाम से खारिज होने का दंश ङोलना पड़ रहा । यहां तक कि परिजनों ने भी उनसे किनारा कर लिया। लोगों ने बात करना तो दूर देखना तक बंद कर दिया। पति पत्नी को जब कुछ नहीं सूझा तो उन्होंने देवबंद में संपर्क करने की सोची। इसके बाद दंपती ने सहारनपुर के देवबंद स्थित दारुल उलूम से इस संबंध में फतवा पूछा। दारुल उलूम ने फतवा जारी किया है। आसिफ ने बताया कि उनके अधिकांश मित्र हिंदू समाज से हैं। वह एक दूसरे से धार्मिक भेदभाव नहीं रखते।
देवबंद के दारुल उलूम ने जारी किया ये फतवा
आसिफ अली और उनकी पत्नी की दर्खास्त के बाद दारुल उलूम ने फतवा जारी कर बताया है कि मांग में सिंदूर भरने से कोई मुस्लिम महिला इस्लाम से खारिज नहीं हो सकती। हालांकि, परंपरा के मुताबिक मुस्लिम महिलाओं को मांग में सिंदूर भरने से परहेज करना चाहिए। यदि भगवा रंग के कपड़े पाक-साफ हैं तो उन्हें पहनकर नमाज पढ़ने की गुंजाइश है। यह फतवा 9 अक्टूबर को दारुल उलूम के मुफ्ती फखरूल इस्लाम ने जारी किया है।
देवबंद से फतवा जारी होने और इस्लाम से बाहर नहीं होने की ख़बर सुनकर आसिफ और उनकी पत्नी बेहद खुश है। लेकिन उन्होने उन मौलवी और उलेमा से सवाल किया है की मुस्लिम धर्म में एक छोटी सी गलती की कितनी बड़ी सजा हो सकती है। इसका अंदाजा लगाना तक मुश्किल है। मौलाना, उलेमा, मौलवी जरा सी बात पर इस्लाम का हवाला देकर फतवा तो जारी कर देते हैं। लेकिन उसके पालन में परिवार और उसके पीडितों कितना सहना पड़ेगा को नहीं जानता। अब जबकि हमें देवबंद से राहत मिल गए है। ऐसे में हमने जो कठिनाई भरे दिन काटे हैं उनका हिसाब कौन देगा. ये दंपति ने सवाल खड़े किए हैं.