जानिए, सोने का मंदिर कहे जाने वाले ‘स्वर्ण मंदिर’ से जुड़ी कुछ रहस्यमयी बातें
अमृतसर की सबसे ख़ास और प्रसिद्ध जगहों में से एक है गुरद्वारा हरमंदिर साहिब जो ‘गोल्डन टेम्पल’ के नाम से भी जाना जाता है. श्री हरमंदिर साहिब के नाम का अर्थ है भगवान का मंदिर. यह गुरद्वारा अपनी सुंदरता और धार्मिक एकता के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है. ये धार्मिक स्थल न सिर्फ बेहद खूबसूरत है बल्कि इतिहास के नज़र से भी बहुत खास है. आज हम आपको गोल्डन टेम्पल से जुड़ी कुछ ऐसी बातें बताएंगे जिन्हें जानने के बाद आप हैरान रह जायेंगे.
निर्माण के लिए अकबर ने दान की थी ज़मीन
गोल्डन टेम्पल के निर्माण के लिए ज़मीन मुस्लिम शाशक अकबर ने दान की थी. इस टेम्पल की नींव साईं मियां मीर नाम के एक मुस्लिम संत ने रखी थी. सूफी संत साईं मियां मीर का सिक्ख धर्म के प्रति शुरू से ही झुकाव था. वो लाहौर के रहने वाले थे और सिक्खों के पांचवे गुरु अर्जुन देव जी के दोस्त थे. जब हरमंदिर साहिब के निर्माण पर विचार किया गया तो फैसला हुआ था कि इस मंदिर में सभी धर्मों के लोग आ सकेंगे. इसके बाद सिक्खों के पांचवे गुरु अर्जुन देव जी ने लाहौर के सूफी संत साईं मियां मीर से दिसंबर 1588 में गुरूद्वारे की नींव रखवाई थी.
सिक्खों के चौथे गुरु रामदास जी ने तालाब का निर्माण शुरू किया था जिसे ‘अमृत सरोवर’ के नाम से जाना जाता है. स्वर्ण मंदिर को कई बार नुकसान पहुंचाया गया था. लेकिन भक्ति और आस्था के इस केंद्र का फिर से निर्माण कराया गया. ऐसा माना जाता है कि 19वी शताब्दी में अफ़ग़ान हमलावरों ने इस मंदिर को पूरी तरह नष्ट कर दिया था. तब महाराणा रणजीत सिंह ने इसके पुनर्निर्माण के साथ इसके गुंबद पर सोने की परत चढ़वाई थी.
ब्रिटिश सेना ने जीत के लिए कराया अखंड पाठ
स्वर्ण मंदिर पहले पत्थर और इंटों से बना था. बाद में इसमें सफ़ेद मार्बल यूज़ किया गया. मंदिरों को कब-कब नष्ट किया गया और कब-कब बनाया गया ये वहां लगे शिलालेखों से पता चलता है. अहमद शाह के सेनापति जहां खान ने इस मंदिर पर हमला किया था जिसके जवाब में सिक्खों की सेना ने उसकी पूरी सेना को ही खत्म कर दिया था. आप जानकार हैरान होंगे कि प्रथम विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश सरकार ने जीत के लिए यहां अखंड पाठ करवाया था. इस मंदिर में सभी धर्मों के लोग आते हैं. मंदिर में चार दरवाज़े चारों धर्मों की एकता के रूप में बनाये गए थे.
दुनिया का सबसे बड़ा लंगर
अमृतसर का स्वर्ण मंदिर में दुनिया का सबसे बड़ा लंगर लगाया जाता है. यहां लगभग एक लाख लोग रोज़ खाना खाने आते हैं. लेकिन त्योहारों के दिनों में ये संख्या दो लाख को भी पार कर जाती है. इस मंदिर में 24 घंटे हलवे की व्यवस्था रहती है. अनुमान के मुताबिक रोज़ यहां दो लाख रोटियां बनती हैं. कहा जाता है कि मुग़ल बादशाह अकबर ने भी गुरु की लंगर में आम लोगों के साथ बैठकर प्रसाद खाया था. इस मंदिर में 35 प्रतिशत पर्यटक सिक्ख धर्म के अलावा अन्य धर्मों के होते हैं. इस मंदिर में साधारण से लेकर अरबपति तक सब अपनी सेवा देते हैं.