अध्यात्म

क्या आप परिचित हैं शिवलिंग की कहानी से? नहीं तो जानें यहाँ, इस तरह शुरू हुई थी शिवलिंग की पूजा

भगवान शंकर की महिमा से कौन परिचित नहीं है। भगवान शंकर के कई नाम है, जिन्हें भक्त पुकारते रहते हैं। भगवान शंकर अपनी दयालुता और क्रोध दोनों के लिए जानें जाते हैं। इसके बारे में कहा जाता है कि यही व्यक्ति को जीवन देते हैं और उसका जीवन छीन भी लेते हैं। जब यह किसी भक्त से खुश होते हैं तो उसके लिए कुछ भी कर देते हैं। नाराज होनें पर यह तुरंत भष्म कर देते हैं।

क्यों होती है शिवलिंग की पूजा?

भगवान शंकर की सबसे बड़ी ख़ासियत यह है कि यह अपने हर भक्त की पुकार सुनकर उसकी मनोकामना पूर्ण करते हैं। अक्सर आपनें ज्यादातर शिवालयों में शिवलिंग की पूजा होते हुए देखा है। लेकिन क्या कभी आपनें यह सोचा है कि आखिर शिवलिंग की पूजा क्यों होती है? क्या हैं शिवलिंग की कहानी? अगर शिवलिंग की पूजा हो रही है तो कब से हो रही है और सबसे पहले शिवलिंग की पूजा किसनें की थी? अगर आप भी इस तरह के सवालों से परेशान है तो परेशान होना बंद कर दीजिये।

श्रेष्ठता को लेकर हो गया विवाद:

आज काफी खोज-बीन के बाद हम आपके इस सवाल का जवाब ढूंढ लाये हैं। आज हम आपको शिवलिंग की कहानी के बारे में बतानें जा रहे हैं, जिसे पढ़कर आप शिवलिंग से जुड़े इतिहास के बारे में सबकुछ जान जायेंगे। इस सवाल का जवाब लिंगपुराण में मिलता है। ब्रह्मा जी और भगवान विष्णु के बीच एक बार श्रेष्ठता को लेकर विवाद हो गया। बहस इतनी बढ़ गयी कि वो एक दुसरे का अपमान तक करनें से पीछे नहीं हटे। जब विवाद और बढ़ गए तो एक अग्नि का स्तम्भ तीनों के बीच आकार खड़ा हो गया।

देखना पड़ा हार का मुँह:

दोनों में से कोई भी इस रहस्य के बारे में समझ नहीं पा रहा था। दोनों ही उस स्तम्भ की शुरुआत और अंत का पता लगानें में लग गए लेकिन दोनों को हार का मुँह देखना पड़ा। लिंग के स्त्रोत का पता लगानें के लिए ब्रह्मा जी आगे बढे लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। विष्णु जी ने सोचा कि शायद वह कामयाब हो जाएँ और वह पता लगानें के लिए आगे बढे लेकिन उन्हें भी निराशा हुई। हारकर दोनों वहीँ पहुँच गए, जहाँ उन्होंने लिंग को देखा था।

शिवलिंग के अन्दर से आती थी ॐ की आवाज:

उस लिंग के अन्दर से ॐ की ध्वनि सुनाई पड़ रही थी। दोनों समझ गए कि यह स्वयं शक्ति का रूप है और तब दोनों लिंग की आराधना करनें लगे। उनकी आराधना से भगवान शंकर बहुत प्रसन्न हुए और दोनों देवताओं को सद्बुद्धि का वरदान दिया। उसके बाद भगवान शिव अंतर्ध्यान हो गए। लिंगपुराण के अननुसार यह पहला लिंग था। इस लिंग के स्थापित होनें के बाद सबसे पहले स्वयं भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी ने उसकी पूजा की थी।

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