इतिहास का वो दौर जब महिलाओं को स्तन ढकने पर देना पड़ता था टैक्स! ऐसे मिली कुप्रथा से मुक्ति
महिलाओँ को हमेशा से सामाजिक कुरितियों और बंदिशों का शिकार होना पड़ा है। 21वी सदी के दौर में आज हालात भलें ही बेहतर हो गए हैं पर यहां तक पहुंने में स्त्रियों को कड़ा संघर्ष करना पड़ा है। 19 वीं सदी में ऐसा ही एक बुरा ऐतिहासिक दौर था दक्षिण भारत में। आज जिस प्रगतिवादी और शिक्षित केरल को हम जानते हैं ख़ासकर महिलाओं की शिक्षा के मामले में केरल की काफ़ी तारीफ़ की जाती है पर हम आपको बता दें. आज़ादी के कुछ समय पहले तक यहां सामाजिक स्तर पर अनेक बुराइयां फैली हुई थी.
केरल के त्रावन्कोर जिले के आस-पास के क्षेत्र में निचली जाति की महिलाओं को अपने शरीर के ऊपरी हिस्से को कपड़े से ढकने की अनुमति नहीं थी. यहां तक कि किसी महिला को अगर स्तन ढ़के हुए देख लिया जाता था, तो उसके साथ अपराधियों जैसा बर्ताव किया जाता था यह कुप्रथा 19वीं सदी के मध्य तक यहां पर थी।
लगता था ‘ब्रेस्ट टैक्स’
एक और बात उस समय गौर करने लायक थी कि नम्बोदिरी, ब्राह्मण, क्षत्रिय और नैय्यर जाति की महिलाओं को घर से बाहर जाते समय अपने शरीर के उपरी हिस्से को ढकने की इजाज़त थी. यह तत्कालीन समय में फैला हुआ एक घिनौना जातिगत विभेद था. दलित महिलाओं पर यहां ‘Mulakkaram’ नाम का ‘ब्रेस्ट टैक्स’ लगता था. इस टैक्स को त्रावणकोर के राजा ने लगाया था। इस टैक्स को बहुत सख्ती से लागू किया गया था।
मगर इस ऐतिहासिक बदलाव को पुरुष प्रधान समाज ने इतनी आसानी से स्वीकार नहीं किया. शुरुआती दौर में जब भी उच्च जाति के पुरुष के सामने कोई निम्न जाति की महिला अपने शरीर का ऊपरी हिस्सा ढक कर सामने आ जाती थी, तो वे निर्दयी रूप से उसके कपड़े तक फाड़ डालते थे।
दलित महिला को तन ढ़कने की मिली थी सजा
आपको बता दें कि नांगेली केरल के त्रावणकौर की एक दलित महिला थीं। जिन्होंने 19वीं सदी में वहां के राजा के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी। ये लड़ाई थी दलित जाति की महिलाओं के लिए स्तन ढकने का अधिकार पाने की।उन्होंने राजा के इस अमानवीय टैक्स का विरोध किया। नांगेली ने अपने स्तन ढकने के लिए टैक्स नहीं दिया। मामला राजा तक पहुंचा तो सजा के तौर पर इस जुर्म के लिए त्रावणकोर के राजा ने नांगेली के स्तन कटवा दिए। जिससे उसकी मौत हो गई।
जन क्रान्ति से आया सामाजिक बदलाव
नांगेली की मौत ने दक्षिण भारत में एक सामाजिक आंदोलन की चिंगारी भड़का दी। सभी तथाकथित नीची जातियों के लोग इस अपमान भरे क़ानून के ख़िलाफ़ एक हो गए और बगावत का ऐलान कर दिया। नांगेली की शहादत के परिणाम स्वरूप दलित जातियों की महिलाओं के लिए ये काला कानून खत्म कर दिया गया।
साथ इस प्रथा के अन्त में बदलती सामाजिक परिस्थितियों का भी योगदान रहा है…19वीं सदी के शुरुआत से चीज़े बदलने लगी. लोग जब रोजगार के सिलसिले में बाहर श्रीलंका जैसे क्षेत्रों में जाने लगे, तो उन्हें अनेक नई-नई सामाजिक प्रणालियां देखने को मिली. जागरूकता बढ़ने के साथ ही महिलाओं ने घर के अन्दर और बाहर दोनों जगह अपने स्तनों को ढकना प्रारम्भ कर दिया. यह संघर्ष लम्बे समय तक चलता रहा. इसके बाद जब अंग्रेजों का प्रभाव इस क्षेत्र में बढ़ा, तो उन्होंने दीवान को इस बर्बर आदेश को तुरन्त हटाने के लिए कहा. आखिर में 26 जुलाई 1859 को महिलाओं को पूर्ण रूप से अपना तन ढकने का अधिकार मिल गया।