बलोची मुसलमान करते हैं हिंगलाज माता की पूजा, मंदिर को बचाने के लिए दे चुके हैं कई बार कुर्बानी
पाकिस्तान के मशहूर लेखक तरेक फतह की माने तो कई बार पाकिस्तानी हुकूमत ने इस मंदिर को तबाह करने की कोशिश की परंतु कई बलूच लोगों ने अपनी कुर्बानी देकर इस मंदिर को बचाए रखा ।
ये मंदिर पाकिस्तान के कराची के पश्चिम में 250 किलोमीटर दूर हिंगोल नदी के किनारे स्थित है। सूना सा दिखने वाला ये शक्तिस्थल भारत में होता तो यकीन मानिए यहां श्रद्धालुओं का तांता लगा होता, क्योंकि इसकी गाथा शिव की पत्नी सती से जुड़ी हुई है। इस कथा के अनुसार अपने पिता के द्वारा शिव का अपमान होने पर सती ने यज्ञकुंड में कूद कर जान दे दी थी। इस पर नाराज शिव सती के शरीर लेकर सारे लोकों को तहस-नहस करने निकल पड़े। उनका गुस्सा शांत करने के लिए भगवान विष्णु ने सती के 51 टुकडे कर दिए। जिन स्थानों पर सती के अंग गिरे वे शक्तिपीठ कहलाए।
ऐसा माना जाता है कि माता सती का सिर हिंगोल नदी के किनारे हिंगलाज में गिरा था, इसीलिए ये 51 शक्तपीठों मे सबसे प्रमुख शक्ति पीठ है। हिंगलाज देवी को पांडवों और छत्रियों की कुलदेवी के रूप में भी जाना जाता है। हर साल यहां 22 अप्रैल से हिंगलाज तीर्थ यात्रा होती है, इसमें गिने-चुने तीर्थयात्री भारत से भी पहुंचते हैं, लेकिन बहुत कम लोगों को पाकिस्तान से वीजा मिल पाता है। ज्यादातर भीड़ पाकिस्तान के थरपारकर जिले से आती है, जहां सबसे ज्यादा हिंदू आबादी है। तीर्थयात्रा के पहले चरण में श्रद्धालु 300 फुट ऊंचे ज्वालामुखी शिखर पर-चंद्र गूप ताल के दर्शन करते हैं। इस ताल का रिश्ता भगवान राम से भी बताया जाता है।
चंद्र गूप ताल की भभूत लेने के बाद श्रद्धालु ज्वालामुखी शिखर से नीचे उतर कर, 35 किमी दूर किर्थार पहाड़ों की तलहटी में स्थित मुख्य हिंगलाज देवी मंदिर के दर्शन करते हैं। माना जाता है कि इस शक्ति पीठ के दर्शन किए बगैर किसी भी हिंदू तीर्थ का दर्शन पूरा नहीं होता है।