वृद्धावस्था में सूंघने की शक्ति खोना हो सकते हैं डिमेंशिया के लक्षण
डिमेंशिया को आमतौर पर याददाश्त खोने से जोड़कर देखा जाता है. लेकिन असल में डिमेंशिया का लक्षण सिर्फ याददाश्त खोना ही नहीं है. जी हां, हाल ही में एक रिसर्च में ये बात सामने आई है. जानिए, क्या कहती है रिसर्च.
क्या है डिमेंशिया-
डिमेंशिया अल्जाइमर रोग का सबसे सामान्य रूप है और यह एक उम्र से संबंधित मानसिक स्थिति है, जो स्मृति के नुकसान से उत्पन्न होती है और तेजी से मूड बदलाव के रूप में रेखांकित होती है.
क्या कहती है रिसर्च-
पिछले कुछ सालों तक किए गए अध्ययन के दौरान वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि याददाश्त की हानि के अलावा अन्य संकेत भी मिलते हैं जो डिमेंशिया की शुरुआत के संकेत कर सकते हैं. इन लक्षणों में से एक है सूंघने की शक्ति.
अमेरिका में शिकागो विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा आयोजित एक नए अध्ययन में पाया गया है कि गंध की सूंघने की शक्ति का नुकसान उन संकेतों में से एक है.
पांच साल में गंध की सूंघने की शक्ति होने लगती है खत्म-
अध्ययन के मुताबिक, वृद्धावस्था में आम गंध की पहचान करने में परेशानी होती है, जो पांच साल के भीतर डिमेंशिया विकसित होने पर दोगुनी हो सकती है.
कैसे की गई रिसर्च-
शोधकर्ताओं ने 57 से 85 वर्ष की उम्र के करीब 3,000 वयस्कों का दीर्घकालिक अध्ययन किया. उन्होंने पाया कि जो पांच आम गंधों में से कम से कम चार की पहचान नहीं कर सकते हैं – जैसे- पेपरमिंट, मछली, गुलाब, संतरा और चमड़े – पाँच वर्षों के भीतर डिमेंशिया विकसित होने की संभावना इनमें दोगुनी हो जाती है.
रिसर्च के नतीजे-
रिसर्च के नतीजों के दौरान पाया गया कि भाग लेने वालों में से 78 प्रतिशत ने पांच में से कम से कम चार चीजों को पहचान लिया. लगभग 14 प्रतिशत केवल पांच में से तीन को पहचान पाए थे. पांच प्रतिशत केवल दो ही चीजों की पहचान कर पाएं. वहीं दो प्रतिशत केवल एक ही चीज़ की पहचान कर पाएं. प्रतिभागियों का एक प्रतिशत एक भी चीज़ को पहचान पाने में सक्षम नहीं थे.
शोधकर्ताओं ने शुरुआती परीक्षण के पांच साल बाद नोट किया कि लगभग 80 प्रतिशत लोग जो केवल एक या दो सही उत्तर दे पाएं थे, वे गंध पहचाने की शक्ति खोने के साथ ही डिमेंशिया के शिकार होने लगे थे.
शिकागो विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जयंत एम पिंटो ने कहा, “गंध की भावना का नुकसान एक मजबूत संकेत है कि कुछ गलत हो गया है और कुछ महत्वपूर्ण क्षति हुई है.”
ये अध्ययन जर्नल ऑफ़ द अमेरिकन गेराट्रिक्स सोसाइटी में प्रकाशित हुआ था.