23 वर्षीय साक्षी ने आज सवा सौ करोड़ भारतीयों का सार गर्व से ऊँचा कर दिया। रियो 2016 में भारत के लिए एकलौता मैडल जीतने वाली साक्षी रोहतक, हरियाणा की रहने वाली हैं। (Journey of Sakshi Malik Rohtak to Rio ) हरियाणा भारत का एक ऐसा प्रदेश है, जहाँ से कन्या भूर्ण हत्या के सबसे ज्यादा मामले दर्ज हैं, यहाँ बच्चियों के जन्म से पहले ही उनका गला घोंट दिया जाता है। ऐसे में आप समझ सकतें हैं साक्षी का यह सफर कितना मुश्किल रहा होगा।
हरियाणा भारत को सबसे ज्यादा और उम्दा ख़िलाड़ी देने वाला प्रदेश तो है ही, लेकिन यहाँ पुरुषों की भागीदारी सबसे ज्यादा है और तो और सामाजिक कुरीतियों की वजह से लड़कियों को खेलने का मौका भी नहीं दिया जाता। ऐसे में साक्षी जिसने रियो ओलंपिक्स में कांश्य पदक जीत कर पूरे विश्व में भारत का परचम लहराया है।
यह सफलता साक्षी के लिए इतनी आसान भी नहीं थी। साक्षी ने इसके लिए 12 वर्ष की उम्र से ही म्हणत करनी शुरू कर दी और फिर उसने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा। साक्षी की 11 वर्ष की अथक परिश्रम का फल है यह पदक। साक्षी एक सामान्य परिवार से ताल्लुक रखतीं है, जिसमे उनके पिता सुखबीर मलिक डीटीसी में बस कंडक्टर है और माँ सुदेश आंगनवाड़ी में सुपरवाइजर हैं।
साक्षी ने 18 वर्ष की उम्र में 2010 में जूनियर वर्ल्ड चैंपियनशिप में ब्रोंज मैडल जीता, फिर 2014 में अंतर्राष्ट्रीय कुश्ती टूर्नामेंट में स्वर्णपदक जीता। उन्होंने इसी साल हुए ग्लास्गो में सिल्वर मैडल भी जीता। सफलता की सीढ़ी यही ख़त्म नहीं होती 2015 में फिर सीनियर एशियाई कुश्ती चैंपियनशिप में स्वर्णपदक हासिल कर साक्षी ने अपना लोहा मनवा लिया। साक्षी का यही जुझारूपन और जूनून उनको उस शिखर पर ले गया जहां ओलंपिक इतिहास में आज तक कोई महिला पहलवान नहीं पहुंच सकी। साक्षी का परिवार अब उनकी वापसी का बेसब्री से इंतेजार कर रहा है।
हरियाणा सरकार ने साक्षी को 2.5 करोड़ रुपये और सरकारी नौकरी देने का फैसला भी लिया है, जो एक सराहनीय कदम है।