विशेष फलदायी है विजयदशमी, जानिए इससे जुड़ी पौराणिक मान्यता और कई रोचक बातें
दशहरा असत्य पर सत्य की विजय का पर्व है जिसके प्रतीक स्वरूप ये त्योहार देश के विभिन्न हिस्सों में अलग अलग तरीके से मनाया जाता है। हर राज्य में इसे विभिन्न-विभिन्न पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ इस पर्व को मनाने की प्रथा है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार दशहरा अश्विन माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है जो आमतौर पर सितंबर या अक्टूबर महीने के दौरान आता है। इस बार ये 30 सितम्बर को मनाया जा रहा है। इस अवसर पर हम आपको इससे जुड़े कुछ रोचक तथ्यों के बारे में बता रहे हैं जिसे शायद ही लोग जानते हैं।
पौराणिक महत्व
विजयदशमी के पर्व को मनाने के पीछे की मूल कथा भगवान श्रीराम की रावण पर विजय है। शारदीय नवरात्रों के दिनों भगवान राम ने शक्ति की देवी दुर्गा की अराधना लगातार नौ दिनों तक की इसके बाद उन्हें मां दुर्गा का वरदान मिला। इसके पश्चात मां दुर्गा के सहयोग से राम ने युद्ध के दसवें दिन रावण का वध कर उनके अत्याचारों से सभी को बचाया। इसी परम्परा को मानते हुए हर साल रावण, मेघनाथ और कुम्भकर्ण को बुराई का प्रतीक मानकर इनके पुतले दशहरे के दिन जलाते हैं।
दशहरे से जुड़े रोचक तथ्य और विशेष फलदायी बातें
- 1 विजयदशमी के दिन यात्रा करना शुभ माना जाता है.. इस दिन किसी भी दिशा में यात्रा करने पर दोष नही लगता। ऐसी मान्यता इसलिए है कि क्योंकि विजयादशमी के दिन नवरात्र पर्व का समापन होता है। इस दिन पृथ्वी से मां दुर्गा अपने लोक के लिए प्रस्थान करती हैं और इसीलिए इसे यात्रा तिथि भी कहते हैं।
- 2 इस दिन अपराजिता पूजन, शमी पूजन, सीमोल्लंघन, घर वापसी, नारी पूजन, नए वस्त्र व आभूषण धारण करना, राजाओं द्वारा अपने शस्त्र या संपदा का पूजन। राजाओं, सामंतों और क्षत्रियों के लिए यह विशेष महत्व का दिन है।
- 3 दशहरे पर नीलकंठ पक्षी का दर्शन शुभ माना गया है। नीलकंठ भगवान का प्रतिनिधि है। दशहरे पर यही कारण है कि इस पक्षी का दर्शन किया जाता है।
- 4 रावण के दहन के पश्चात विजयादशमी पर्व पर पान खाने की परंपरा भी है। लोग असत्य पर सत्य की जीत का उत्सव मनाते हैं और बीड़ा खाकर यह बीड़ा उठाते हैं कि वे हमेशा सत्य के मार्ग पर चलेंगे। इसका एक कारण यह भी है कि नवरात्र में श्रद्धालु नौ दिनों तक उपवास रखते हैं और दसवें दिन जब वे भोजन शुरू करते हैं उसके ठीक पाचन में बीड़ा मदद करता है।
- 5 ऐसी मान्यता है कि विजयदशमी के दिन शमी की पत्तिया लाना शुभ होता है। इसके पीछे एक पौराणिक कथा है कि एक महर्षि थें वर्तन्तु जिनका शिष्य था कौत्स। कौत्स की शिक्षा जब पूरी हुई तो वर्तुन्तु ने उससे गुरुदक्षिणा में 14 करोड़ स्वर्ण मुद्राएं मांगी, जिसका इंतजाम करने के लिए कौत्स महाराज रघु के पास गया..पर रघु दान हेतु खजाना पहले ही खाली कर चुके थे।ऐसे में उन्होंने कौत्स से तीन दिन का समय मांगा और इंद्र पर आक्रमण का विचार किया इंद्र ने इससे घबराकर कोषाध्यक्ष कुबेर को रघु के राज्य में स्वर्ण मुद्राओं की वर्षा का आदेश दिया और जिस दिन यह वर्षा हुई उसी तिथि को विजयादशमी उत्सव मनाया गया। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार शमी वृक्ष का संबंध शनि से भी है। शमी वृक्ष का पूजन शनि के अशुभ प्रभाव से बचाव में सहायक है।