इस तरह से आज अमावस्या पर करें अपने पितरों की आत्मा को विदा, खुश होकर देंगे सुखी जीवन का वरदान
जिसनें भी जन्म लिया है, उसे एक ना एक दिन मरना ही है। मरनें के बाद हिन्दू धर्म के अनुसार लोगों की तम उनके कर्मों के आधार पर स्वर्ग या नर्क में जाती है। लेकिन उससे पहले कुछ लोगों की आत्मा यहीं भटकती रहती है। उनकी आत्मा की शांति के लिए तरह-तरह के पूजा पाठ किये जाते हैं। इस समय पितरों के श्राद्ध का समय चल रहा है। इस समय उनकी विशेष पूजा करके भगवान से उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की जाती है। जब कोई मर जाता है तो उसे तुरंत भुला नहीं देना चाहिए। हिन्दू धर्मशास्त्रों में पितरों के श्राद्ध का विशेष विधान बताया गया है।
नाराज होकर लौटते हैं पितर श्राप देकर:
सर्वपितृ अमावस्या पितरों की आत्मा की शांति का आख़िरी दिन होता है। ऐसा माना जाता है कि 16 दिनों तक पितृ अपने वंशज के घर में रहते हैं और इस दौरान उनसे श्राद्ध, पिंड, तर्पण के रूप में भोजन, अन्न, जल की कामना करते हैं। सर्वपितृ अमावस्या के दिन सभी पितृ वापस लौट जाते हैं। अगर कोई पितृपक्ष के इन 16 दिनों में अपने पितरों का श्राद्ध नहीं करता है तो वह वापस नाराज होकर श्राप देकर लौटते हैं। सर्वपितृ अमावस्या के दिन उन सभी पितरों का श्राद्ध किया जा सकता है जिनके मरनें की तारीख ना पता हो या जिनका पिछले 15 दिनों में श्राद्ध नहीं किया जा सका हो।
इस तरह से करें अमावस्या पर श्राद्ध:
अमावस्या का श्राद्ध करते समय श्राद्धकर्ता दक्षिण की तरफ मुँह करके बैठे और अपने हाथ में तिल, त्रिकुश और जल लेकर विधिवत पंचबली देकर दानपूर्वक ब्राह्मणों को भोजन करायें। पंचबली से तात्पर्य पाँच अलग-अलग तरह के दानकर्म जो श्राद्धकर्ता अपने पितरों के लिए करता है। पितृ को दिए जानें वाले पंच बलिदान इस तरह हैं।
*- पिपिलाकादी बलि:
यह दान अपने पितरों को ध्यान में रखकर पीपल के पेड़ में रहनें वाले कीड़ों को दिया जाता है। ‘पिपीलिका कीट पतंगकाया’ मंत्र का जाप करते हुए थाली में सभी पकवान परोस कर अपसभ्य व दक्षिणाभिमुख होकर निम्न संकल्प करें- ‘अद्याऽमुक अमुक शर्मा वर्मा, गुप्तोऽहमूक गोत्रस्य मम पितु: मातु: महालय श्राद्धे सर्वपितृ विसर्जनामावा स्यायां अक्षयतृप्त र्थमिदमन्नं तस्मै। तस्यै वा स्वधा।’
*- गो बलि:
यह दान अपने पितरों को ध्यान में रखकर गाय को दिया जाता है। भोजन को पत्ते पर रखकर मंडल के बाहर पश्चिम की तरफ ‘ॐ सौरभेय्य: सर्वहिता:’ मंत्र पढ़ते हुए गो बलि पत्ते पर दें तथा ‘इदं गोभ्यो न मम्’ कहें।
*- श्वान बलि:
यह दान अपने पितरों को ध्यान में रखते हुए कुत्ते को दिया जाता है। भोजन को पत्ते पर रखकर यज्ञोपवीत को कान से बाँध ले और ‘द्वौ श्वानौ श्याम शबलौ’ मंत्र पढ़ते हुए कुत्तों को दान दें ‘इदं श्वभ्यां न मम्’ कहें।
*- काक बलि:
यह दान अपने पितरों को ध्यान में रखते हुए कौवों को दिया जाता है। अपसव्य होकर ‘ॐ ऐद्रेवारुण वायण्या’ मंत्र पढ़कर कौवों को खानें के लिए भूमि पर अन्न दें। साथ ही यह मंत्र भी बोलें–’इदं वायसेभ्यो न मम्’।
*- देवादि बलि:
यह दान अपने पितरों को ध्यान में रखते हुए देवताओं को दिया जाता है। सव्य होकर ‘ॐ देवा: मनुष्या: पशवो’ मंत्र का जाप करते हुए देवादि के लिए अन्न दें तथा ‘इदमन्नं देवादिभ्यो न मम्’ कहें।