मुगल साम्राज्य के सबसे क्रूर शासक औरंगजेब की बेटी कैसे बनी कृष्ण भक्त? कहलाई मुगलों की मीरा
औरंगजेब की गिनती मुगल साम्राज्य के क्रूर शासकों में होती थी। उसे हिंदुओं से नफरत थी। लेकिन उसकी अपनी बेटी जैबुन्निसा एक बहुत बड़ी कृष्ण भक्त थी। इतना ही नहीं उसे एक हिंदू राजा से इश्क हो गया था। लेकिन इस बात से नाराज होकर औरंगजेब ने बेटी जैबुन्निसा को उम्र कैद की सजा दे दी। तो अब सवाल ये उठता है कि आखिर कैसे एक क्रूर शासक की बेटी इतनी बड़ी कृष्ण भक्त बन गई कि उसे मुगलों की मीरा कहा जाने लगा? चलिए जानते हैं।
बेहतरीन शायर थी औरंगजेब ने बेटी
औरंगजेब ने बेटी जैबुन्निसा को शायरी लिखने और मुशायरे करने का बड़ा शौक था। वह पढ़ने लिखने में भी होशियार थी। वह दर्शन, भूगोल और इतिहास जैसे विषयों की ज्ञाता थी। उन्हें किताबें पढ़ने का बड़ा शौक था। वह लाइब्रेरी की हर किताब छान मारती थी। किताबें खत्म होने पर बिहार से मँगवाती थी। वह अपना गुरु फारसी कवि हम्मद सईद अशरफ मजंधारानी को मानती थी। जैबुन्निसा की सगाई उनके चचेरे भाई सुलेमान शिकोह से हुई थी। लेकिन उसकी कम उम्र में मौत होने के चलते जैबुन्निसा की शादी नहीं हो पाई।
किताबें पढ़कर जैबुन्निसा को साहित्य का अच्छा खासा ज्ञान हो गया था। इसलिए उन्हें महफिलों और मुशायरों में बुलाया जाने लगा। लेकिन उनके पिता औरंगजेब को ये बात खटकती थी। जैबुन्निसा अपनी कविताएं फारसी भाषा में लिखा करती थी। इन कविताओं के नीचे वह अपना नाम लिखने की बजाए मखबी लिखती थी। वह मुशायरों में सफेद पोषाक और सफेद मोती की माला पहनकर जाया करती थी।
ऐसी रही प्रेम कहानी
एक बार जैबुन्निसा की मुलाकात हिंदू बुंदेला महाराजा छत्रसाल से हुई। वह उन्हें दिल दे बैठी। लेकिन उनके पिता इस बात से बड़े क्रोधित हुए। दरअसल औरंगजेब और महाराजा छत्रसाल आपस में दुश्मन थे। जब पिता ने इन दोनों का रिश्ता तुड़वाया तो जैबुन्निसा मराठा छत्रपति शिवाजी से भी प्रेम कर बैठी। वह उनकी बहादुरी के किस्से सुनकर इंप्रेस हुई थी। उन्होंने अपनी मोहब्बत की अर्ज़ी भी शिवाजी महाराज तक भिजवाई थी, लेकिन उन्होंने इसे स्वीकार नहीं किया था। दो बार इश्क में नाकामयाबी मिलने के बाद जैबुन्निसा शायरी करने लगी।
मुशायरों और महफिलों में जैबुन्निसा का आना जाना बढ़ गया। यहां उनकी मुलाकात शायर अकील खां रजी से हुई। दोनों में इश्क भी हो गया। लेकिन फिर पिता ने इस रिश्ते पर एतराज जताया। जब बेटी नहीं मानी तो उसे 1691 में दिल्ली के सलीमगढ़ किले में कैद करवा दिया। दूसरी ओर उसके प्रेमी अकील रजी को हाथियों से कुचलवा कर मरवा दिया।
जेल में रहकर बनी कृष्ण भक्त
पिता से नाराज जैबुन्निसा जेल में रहकर कृष्ण भक्त बन गई। वह करीब 20 साल जेल में रही जहां उन्होंने 5,000 से भी ज्यादा गजलें, शेर और रुबाइयां और कविता संकलन ‘दीवान-ए-मख्फी’ लिखी। 20 साल की कैद में रहने और कई यातनाओं को झेलने के बाद आखिर सन 1707 में जैबुन्निसा ने दम तोड़ दिया।
जैबुन्निसा मिर्जा गालिब के पहले वह अकेली शायरा थी जिनकी रुबाइयों, गज़लों और शेरों के अनुवाद अंग्रेजी, फ्रेंच, अरबी सहित कई विदेशी भाषाओं में हुए हैं। वह मुगल खानदान में उनके अंतिम शासक बहादुर शाह ज़फर के अलावा अकेली ऐसी शख्सियत रही जिनकी शायरी को ही दुनिया सराहती है।