रणछोड़दास पगी : भारत-पाक युद्ध का एक गुमनाम हीरो, जो 1200 पाकिस्तानियों के लिए काल बन गया
नई दिल्ली – वैसे तो भारतीय सेना के जवानों कि बहादुरी के अनगिनत किस्से हमने सुन रखे होंगे, लेकिन आज हम आपको एक ऐसे वीर सैनिक के बारे में बताने जा रहे हैं जिनके बारे में अभी भी ज्यादा लोग नहीं जानते हैं। देश सेवा का ऐसा जज्बा शायद ही कभी देखने को मिला हो। आज हम गुजरात के कच्छ में रहने वाले रणछोड़दास की कहानी बताने जा रहे हैं, 1971 के युद्ध में जिनका योगदान आज भी याद किया जाता है।
रणछोड़दास के नाम पर रखा गया है चौकी का नाम
रणछोड़दास कि वीरता की कहानी बताने से पहले आपको बता दें कि उनकी वीरता के कारण ही एक चौकी का नाम उनके नाम पर रखा गया है, जहां उनकी एक प्रतिमा भी लगाई गयी है। रणछोड़दास ने भारत-पाकिस्तान में हुए 1965 और 1971 के युद्ध में सेना को गुप्त सूचनाएं देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। रणछोड़दास युद्ध के वक्त युद्ध वाले इलाके से भलीभांति परिचित थे। उन्होंने 1200 पाकिस्तानी सैनिकों की लोकेशन की सूचना भारतीय सेना को दी थी।
ऐसे दिखाई थी अपनी वीरता
वो एक ऐसे सैनिक के रुप में उभरे जिसने 1971 के युद्ध में भारतीय सेना का मार्गदर्शन किया। रणछोड़दास कि बहादूरी और सुझबुझ उस वक्त देखने को मिली जब 1965 में पाकिस्तान ने भारत के कच्छ सीमा स्थित विद्याकोट थाने पर कब्जा कर लिया था। रणछोड़दास ने अपनी हिम्मत दिखाते हुए पाकिस्तानी सैनिकों की सही लोकेशन की जानकारी भारतीय सेना को पहुंचाई। जिससे भारतीय सेना को पाकिस्तानी सैनिकों से निपटने में काफी मदद मिली थी।
मार्गदर्शक थे रणछोड़दास
बनासकांठा पुलिस में कार्यरत रणछोड़ दास पुलिस और सेना को राह दिखाने का काम किया करते थे। साल 2009 में वो सेवानिवृति हो गए। रणछोड़दास को भारत के पहले फील्ड मार्शल जनरल सैम माणिक शॉ अपना हीरो मानते थे। रणछोड़दास अविभाजित भारत के पेथापुर गथडो गांव के मूल निवासी थे। जो बंटवारे के बाद पाकिस्तान में चला गया। रणछोड़भाई पहले चरवाहे का काम करते थे। लेकिन पाकिस्तानी सैनिकों के जुल्मों से तंग आकर वो बनासकांठा बस गए। 1971 के युद्ध में रणछोड़दास ने घोरा क्षेत्र में छुपी पाकिस्तानी सेना की लोकेशन की जानकारी भारतीय सेना को दी थी।