जीवन में भलाई चाहते हैं तो आज रात से इन कामों पर लगायें लगाम और रहें सावधान
ज्योतिषशास्त्र में ग्रहों-नक्षत्र काफी मायने रखते हैं। इसके अनुसार हर नक्षत्र का अपना महत्व होता है। कुछ नक्षत्र इंसान को शुभ फल देते हैं, वही कुछ नक्षत्र अशुभ फल भी देते हैं। जीवन के कुछ ऐसे काम भी होते हैं जो कुछ ख़ास नक्षत्रों में नहीं करने चाहिए। ऐसा करने पर व्यक्ति जीवन में परेशानियों से घिर जाता है। उसे तरह-तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
कुछ नक्षत्रों में निषेध होता है शुभ कार्यों को करना:
धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्व भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद, और रेवती ऐसे ही नक्षत्रों का समुदाय है। धनिष्ठा के शुरू होने से लेकर रेवती नक्षत्र की समाप्ति अवधि को पंचक कहा जाता है। आज 4 सितम्बर रात के 11:55 से पंचक की शुरुआत हो रही है। इसका प्रभाव 9 सितम्बर शनिवार की दोपहर 1:02 तक रहने वाला है। इस दौरान कुछ ऐसे कार्य हैं, जिन्हें नहीं करने की सलाह दी जाती है।
पंचक में करने से निषेध किये गए कार्य:
*- पंचक के समय शव का क्रियाकर्म करना निषध किया गया है। ऐसा माना जाता है कि पंचक में शव का क्रियाकर्म करने से कुटुंब के या पड़ोस के 5 लोगों की मृत्यु हो सकती है।
*- पंचक के इन 5 दिनों के दौरान दक्षिण दिशा की यात्रा को वर्जित किया गया है। दक्षिण की दिशा मृत्यु के देवता यम की दिशा होती है। इस दिशा में यात्रा पर्ने पर अशुभ होने की सम्भावना होती है।
*- चार संज्ञक घनिष्ठा के समय आग का बहुत ज्यादा डर रहता है। इसलिए इस समय घास-लकड़ी को इंधन के रूप में इकठ्ठा नहिकारना चाहिए।
*- मृदु संज्ञक रेवती नक्षत्र में नए बने हुए घर के छत को डालने से माना किया जाता है। ऐसा करने पर घर में धन हानि और क्लेश होने की सम्भावना होती है।
*- इन पाँच दिनों के दौरान चारपाई बनवाने से माना किया जाता है।
पंचक दोष को दूर करने के उपाय:
*- अगर घर में लकड़ी का सामान खरीदना बहुत ज्यादा जरुरी हो तो गायत्री यज्ञ करें।
*- अगर दक्षिण दिशा की यात्रा करना बहुत जरुरी हो तो पहले हनुमान मंदिर में जाकर पाँच फल चढ़ाएँ।
*- अगर नए बन रहे मकान का छत डलवाना बहुत जरुरी हो तो पहले छत डालने वाले मजदूरों को मिठाई खिलाएँ, उसके बाद ही छत डलवाने का काम शुरू करें।
*- आगर आप इस दौरान कोई चारपाई बनवा रहे हैं तो उसका इस्तेमाल पंचक की समाप्ति के बाद ही करें।
*- मौत पर किसी का वश नहीं है। ऐसे में पंचक के दौरान मरे हुए व्यक्ति का अंतिम संस्कार करते समय कुश के पाँच पुतले बनाकर उसे चिता के साथ जलाएं।