10 की उम्र में छोड़ा घर, सड़कों पर बेचे गोलगप्पे, आज है टीम इंडिया का बेहतरीन खिलाडी
मेहनत, लगन और जज्बा, यह तीन ऐसी चीजें है जो आपका हर सपना साकार कर सकती है। फिर इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि आप अमीर हैं या गरीब। अब युवा क्रिकेटर यशस्वी जायसवाल (Yashasvi Jaiswal) की स्टोरी ही ले लीजिए। यशस्वी एक जमाने में गोलगप्पे बेचा करते थे। उन्होंने कई रातें टेंट में भूखे पेट सोकर गुजारी। लेकिन वह इन चुनौतियों से निराश नहीं हुए। बल्कि मेहनत कर हर मुसीबत का डटकर सामना किया। इनकी सफलता की कहानी आपको भी प्रेरणा से भर देगी।
10 साल की उम्र में छोड़ा घर
यशस्वी जायसवाल उत्तर प्रदेश के भदोही के रहने वाले हैं। उनके पिता की एक छोटी सी दुकान है। मां हाउसवाइफ हैं। यशस्वी घर में सबसे छोटे हैं। उनका सपना एक क्रिकेटर बनने का था। इस सपने को पंख देने के लिए वह महज 10 साल की उम्र में घर छोड़कर मुंबई आ गए थे। उनके पिता ने भी उन्हें रोका नहीं। क्योंकि उनके पास बेटे के सुनहरे भविष्य के लिए कोई पैसे भी नहीं थे।
मुंबई में यशस्वी के एक रिश्तेदार संतोष पहले से रहते हैं। हालांकि उनका घर इतना बड़ा नहीं कि वह यशस्वी को भी रख लेते। ऐसे में यशस्वी ने एक डेयरी पर काम करना शुरू किया और वहीं रात को रहने लगे। लेकिन एक दिन डेयरी वाले ने उन्हें निकाल दिया। फिर उनके रिश्तेदार और मुस्लिम यूनाइटेड क्लब के मैनेजर संतोष ने वहां के मालिक से गुजारिश कर यशस्वी की रुकने की व्यवस्था ग्राउंड्समैन के साथ टेंट में करवा दी।
ठेले पर बेचता था गोलगप्पे
यहां दिन में यशस्वी आजाद मैदान में राम लीला के दौरान पानी-पूरी (गोलगप्पे) और फल के ठेले पर काम करने लगे। वह इस दौरान कभी-कभी लड़कों के साथ क्रिकेट खेलने भी जाते थे। इस दौरान वह भगवान से यही प्रार्थना करते थे कि उनकी टीम का कोई सदस्य गोलगप्पे के ठेले पर न आ जाए। वरना उन्हें बड़ी शर्म आएगी। क्रिकेट में अच्छे रन बनाकर वह हफ्ता निकालने के लिए 200-300 रुपए कमा लेते थे।
यशस्वी के दिन तो अच्छे गुजरते थे लेकिन रातें मुश्किल बड़ी होती थी। कई बार वह घरवालों को याद कर घंटों रोया करते थे। टेंट में रहने वाले लड़के आपस में लड़ा करते थे। उनकी खाना बनाने को लड़ाई होती थी। यहां रोटी बनाने की जिम्मेदारी यशस्वी की होती थी। क्रिकेट मैदान में बाकी लड़के घर का बना लंच बॉक्स लाते थे। लेकिन यशस्वी को खुद बनाकर ले जाना पड़ता था। कई बार वह ऐसा नहीं कर पाते तो दूसरे लड़कों से नाश्ता करवाने की गुजारिश करते थे।
ऐसे बदली जिंदगी
आजाद मैदान में अक्सर जब कोई मैच होता था तो बॉल खो जाती थी। यशस्वी पैसों के लिए इस बॉल को ढूँढने का काम भी करते थे। एक बार जब वह मैदान में खेल रहे थे तो कोच ज्वाला सिंह का ध्यान उन पर गया। उत्तर प्रदेश के रहने वाले ज्वाला सिंह ने यशस्वी का हुनर देख उसे क्रिकेट की कोचिंग दी। जल्द उसका टैलेंट निखर गया और वह एक शानदार क्रिकेटर बन गया। इस चीज के लिए यशस्वी अपने कोच के हमेशा शुक्रगुजार रहते हैं।
एक बार यशस्वी बेंगलुरु में स्थित राष्ट्रीय क्रिकेट अकादमी गए। यहां उनकी दोस्ती क्रिकेट के भगवान कहे जाने वाले सचिन तेंदुलकर के बेटे अर्जुन से हो गई। साल 2018 में अर्जुन यशस्वी को घर ले गए। यहां उन्होंने उसे अपने पिता से मिलवाया। सचिन यशस्वी के संघर्ष की कहानी सुनकर इतना प्रभावित हुए कि अपना बल्ला गिफ्ट कर दिया। कहा कि इससे अपना डेब्यू मैच खेलना।
नाम दर्ज किए कई रिकॉर्ड्स
यशस्वी मीडिया की नजरों में तब आए जब उन्होंने विजय हजारे ट्रॉफी 2019 में मुंबई की तरफ से खेलते हुए दोहरा शतक और तीन शतकों से पांच मैचों में कुल 504 रन बनाए। वह ऐसा करने वाले कम उम्र के दुनिया के पहले बल्लेबाज भी हैं। उन्होंने विजय हजारे ट्रॉफी की एक पारी में 12 छक्के लगाए। ऐसा आजतक कोई नहीं कर पाया था। वहीं उन्होंने अंडर-19 एशिया कप में भी शानदार प्रदर्शन किया था।
इसके बाद यशस्वी ने अंडर-19 वर्ल्ड कप 2020 में एक शतक और 4 अर्धशतक के साथ 400 रन बनाकर सबका दिल जीत लिया। वह इसमें ‘मैन ऑफ द टूर्नामेंट’ भी चुने गए। इसका नतीजा ये हुआ कि साल 2020 की IPL नीलामी के दौरान राजस्थान रॉयल्स ने उन्हें 2.4 करोड़ में खरीदा। इन दिनों यशस्वी ईरानी ट्रॉफी में इतिहास रचने को लेकर चर्चा में है। इसमें उन्होंने रेस्ट ऑफ इंडिया की तरफ से खेलते हुए मप्र के खिलाफ पहली पारी में दोहरा शतक, जबकि दूसरी पारी में एक शतक जड़ा। वह ऐसा उन्होंने अपना नाम रिकॉर्ड बुक में दर्ज करा लिया।