जब मायावती से कांशीराम ने कहा- तुम्हारे पीछे IAS अफसरों की लाइन लगा दूंगा’, ऐसे थे दोनों के रिश्ते
बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशीराम ने ऐसे नेता थे, जिन्होंने दलित राजनीति का चेहरा ही बदल कर रख दिया। कांशीराम ने राजनीति का ऐसा समीकरण बनाया जिसने पार्टी गठन के एक दशक बाद ही यूपी को पहला दलित सीएम दिया। इसके साथ ही काशीराम के नारे भी बहुत चर्चा में रहे हैं।
दलित समाज को एकजुट करके पूरी हिंदी पट्टी का राजनीतिक गठजोड़ बदलने वाले कांशीराम का 15 मार्च 2023 को जन्मदिन था। ऐसे में आज हम आपको कांशीराम से जुड़े हुए 7 दिलचस्पी किस्सों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिनकी चर्चा काफी होती रहती है।
सरकारी नौकरी छोड़कर शुरू की थी राजनीति
15 मार्च 1934 को कांशीराम का जन्म पंजाब के रोपड़ जिले के खवासपुर गांव में हुआ था। कांशीराम एक दलित परिवार में जन्मे थे। वह रैदास जाति के थे। हालांकि, उनके जन्म के बाद परिवार ने धर्म परिवर्तन कर लिया था और रैदासी सिख बन गए थे। कांशीराम ने साल 1956 में ग्रेजुएशन कर ली। इसी साल आरक्षित कोटे से केंद्र सरकार में उन्हें नौकरी मिली। साल 1958 में कांशीराम पुणे में डीआरडीओ में लैब असिस्टेंट के पद पर कार्यरत थे। लेकिन नौकरी के दौरान एक ऐसी घटना हुई कि वह दलित राजनीति की तरफ मुड़ गए।
कांशीराम की जीवनी लिखने वाले प्रोफ़ेसर बद्रीनारायण लिखते हैं “उनके ऑफिस में फुले के नाम पर कोई छुट्टी कैंसिल कर दी गई थी। इसका उन्होंने विरोध किया। तमाम कोशिशों के बावजूद दलित कर्मचारी एकजुट हुए तो वो छुट्टी कर दी गई। इस घटना के बाद उन्हें समझ आ गया, जब तक दलित कर्मचारी एकत्रित नहीं होंगे। तब तक हमारी बात नहीं सुनी जाएगी।”
‘हरवाहा से हाकिम’ बनने का सूत्र दिया
कांशीराम ने पढ़े-लिखे और नौकरी-पेशा दलितों को एकजुट करने के लिए 14 अप्रैल 1973 को ऑल इंडिया बैकवर्ड माइनॉरिटी कम्युनिटीज एम्प्लॉइज फेडरेशन का गठन किया। जिसको शॉर्ट में बामसेफ कहा गया। कांशीराम यह कहा करते थे कि “एजुकेट द एजुकेटेड पर्सन।” यानी पढ़े-लिखो को समझना है। 80 के दशक में बामसेफ की बैठकों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने वाले संजय निषाद ने एक इंटरव्यू में कहा “कांशीराम कहते थे जब तक दलितों के मस्तिष्क में दूसरी पार्टियों का कब्जा होगा, तब तक उनके घर हरवाहा पैदा होगा। अगर दलितों के मस्तिष्क में उनकी पार्टी का कब्जा होगा, तो उनके घर हाकिम पैदा होगा।”
उनका नौकरी पेशा दलितों को एकजुट करने का यह प्रयोग कामयाब हो गया। साल 1981 के आखिरी में इस संगठन को नया किया और दलित शोषित समाज संघर्ष समिति यानी DS-4 नाम दिया गया। साल 1984 में शुरुआत हुई बहुजन समाज पार्टी की।
21 साल की मायावती में दिखी भविष्य की दलित नेता
दरअसल, यह बात साल 1977 की है। उस समय के दौरान मायावती के उम्र महज 21 वर्ष की थी। मायावती दिल्ली के एक सरकारी प्राइमरी स्कूल में पढ़ाया करती थीं। इसके साथ ही वह आईएएस की तैयारी में भी जुटी हुई थीं। प्रो. बद्रीनारायण के अनुसार, दिल्ली के किसी कार्यक्रम में कांशीराम ने मायावती का जोरदार भाषण सुना और वह काफी प्रभावित हुए। अगले ही दिन वह एक और सहयोगी के साथ मायावती के घर पहुंच गए। कांशीराम ने मायावती से यह पूछा कि तुम क्या बनना चाहती हो, तो इस पर मायावती ने कहा था कि मैं आईएएस बनकर समाज की सेवा करना चाहती हूं।
इसके बाद कांशीराम ने उनसे यह कहा था कि हम तुम्हें ऐसा पद देंगे कि बहुत सारे आईएएस तुम्हारे आगे पीछे घूमेंगे। उन्होंने पिता से मायावती को राजनीति में भेजने की गुजारिश की लेकिन जब पिता ने बात को टाल दिया तो मायावती ने अपना घर छोड़ दिया और वह पार्टी ऑफिस में रहने लगीं। जब कांशीराम ने मायावती को 3 जून 1995 को मुख्यमंत्री बनाया तो मायावती उत्तर प्रदेश की सबसे युवा और दलित महिला मुख्यमंत्री बनीं। वहीं साल 2001 में कांशीराम ने उन्हें अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया।
दलितों पर ज्यादती बर्दाश्त नहीं
आपको बता दें कि कांशीराम पर किताब लिखने वाले एसएस गौतम उनके शुरुआती दिनों को बताते हैं कि एक बार कांशीराम किसी ढाबे में बैठे हुए थे। वहां कुछ ऊंची जाति के लोग आपस में बैठकर बात कर रहे थे। उनकी बात का मजमून यह था कि उन्होंने सबक सिखाने के लिए दलितों की जमकर पिटाई की। इसे सुनकर काशीराम बिफर पड़े और वहां पर रखी हुई कुर्सियों को उठाकर उन्हें मारने के लिए दौड़ पड़े। कांशीराम दलितों की कीमत अच्छी तरह जानते थे। अक्सर वह यही कहा करते थे कि देश की 85% आबादी पर 15% लोग शासन कर रहे हैं।
नारे लगाने से पहले कहते थे ऊंची जाति वाले चले जाएं
कांशीराम के कई चर्चित नारे आज भी काफी याद किए जाते हैं और काफी चर्चा में रहते हैं। “बहनजी” किताब के लेखक अजय बोस लिखते हैं “एक बार कांशीराम मंच पर भाषण देने के लिए खड़े हुए। उन्होंने शुरुआत में ही कहा कि अगर सुनने वालों में ऊंची जाति के लोग हों तो वो अपने बचाव के लिए यहां से चले जाएं।”
राष्ट्रपति पद का ऑफर ठुकराया
कांशीराम इस बात को बहुत अच्छी तरह से जानते थे कि राजनीति के जरिए ही दलितों की किस्मत बदल सकती है। प्रो. बद्रीनारायण उनसे जुड़ा हुआ एक और किस्सा बताते हुए यह कहते हैं कि “एक बार अटल बिहारी वाजपेयी ने कांशीराम को राष्ट्रपति बनने का ऑफर दिया। कांशीराम ने कहा कि राष्ट्रपति क्या, मैं तो प्रधानमंत्री बनना चाहता हूं। यानी कांशीराम को कोई बरगला नहीं सकता था।
नींबू की तरह क्यों निचोड़ेंगे, वैसे ही छोड़ देंगे
दरअसल, रजत शर्मा ने अपने शो आप की अदालत में कांशीराम से यह पूछा था कि 4 साल में आपने मुलायम, नरसिम्हा राव, अकाली दल, बीजेपी, शाही इमाम के साथ समझौता किया तो तोड़ दिया। अगला समझौता किसके साथ होगा और किसके साथ तोड़ेंगे। इस पर कांशीराम कहते हैं कि अभी आप बताइए कौन-कौन बचा है। अगर कोई बचा है तो उनके साथ करेंगे अपने लक्ष्य को पूरा करने के लिए।
फिर रजत शर्मा ने पूछा कि आपकी बातों से लगता है कि सत्ता में आने के लिए आप किसी का भी इस्तेमाल कर लेंगे। नींबू की तरह निचोड़कर नरसिम्हा राव को फेंक देंगे। इसका जवाब देते हुए कांशीराम ने कहा था कि “नींबू की तरह निचोड़कर नहीं, वैसे ही छोड़ देंगे। निछोड़ने की क्या जरूरत है।” यहां पर दलितों को सत्ता तक पहुंचाना कांशीराम का मुख्य फोकस था।
आपको बता दें कि कांशीराम को डायबिटीज और ब्लड प्रेशर जैसी समस्या थी, जो 90 के दशक के मध्य तक बहुत ज्यादा बढ़ गई। साल 1994 में उन्हें हार्ट अटैक आया। साल 2003 में उन्हें ब्रेन स्ट्रोक हो गया था। दिन पर दिन उनकी सेहत खराब होती जा रही थी। आखिरकार कांशीराम का निधन दिल का दौरा पड़ने की वजह से 9 अक्टूबर 2006 को हो गया।