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अगर जीवन में बनना चाहते हैं समझदार और बुद्धिमान तो करें अपने इस आदत पर नियंत्रण

बहुत पहले की बात है एक बहुत ही विद्वान संत थे। एक दिन उनसे मिलने के लिए 2 विद्वान आये। दोनों ही खुद को एक दुसरे से बेहतर बता रहे थे। जब वे दोनों खुद निर्णय नहीं ले पाए तो उन्होंने संत से अनुरोध किया कि आप ही तय करें कि हम दोनों में से सबसे श्रेष्ठ कौन है? यह सुनकर संत ने दोनों की परीक्षा ली, लेकिन दोनों की इस परीक्षा में एक से बढ़कर एक निकले।

दोनों विद्वान संत को ही बताने लगे गलत:

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संत भी समझ नहीं पा रहे थे कि कैसे वह उन दोनों में से किसी को श्रेष्ठ बताये। कुछ देर सोचने के बाद संत बोले, अभी तक तुम दोनों एक सामान हो लेकिन तुम्हारी एक परीक्षा और ली जाएगी और जो इस परीक्षा में उत्तीर्ण होगा, वही सबसे सर्वश्रेष्ठ होगा। ऐसा कहकर संत ने दोनों के पास खूब सारे फल-फूल रख दिए और उन दोनों से कई विषयों पर बात करने लगे। एक प्रश्न पर दोनों ही विद्वान अड़ गए और संत को गलत बताने लगे।

दूसरा विद्वान करने लगा संत से हाथापाई:

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यह सुनकर संत को बहुत गुस्सा आया और वे दोनों को भला-बुरा कहने लगे। संत को इतना गुस्से में देखकर पहला विद्वान अपना आपा नहीं खोया और अपनी बात को शांति से रख रहा था। जबकि दूसरा विद्वान संत की बातों से भड़क गया और वह भी उन्हें अनाप-शनाप कहने लगा। केवल यही नहीं दूसरा विद्वान इतना गुस्से में आ गया कि उसनें फल-फूल भी इधर-उधर फेंक दिए और संत से हाथापाई करने पर उतारू हो गया।

इस बात में कोई शक नहीं कि तुम दोनों की विद्वान हो:

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यह देखकर संत बोले बस तुम्हारी परीक्षा ख़त्म हो गयी अब धीरज धरो। दोनों ही विद्वान संत की बात सुनकर चुप हो गए। संत ने दोनों विद्वानों से कहा कि इस बात में कोई शक नहीं है कि तुम दोनों की बहुत ज्यादा विद्वान हो। तुम्हारे पास ज्ञान का भंडार है। लेकिन तुम दोनों में से ये श्रेष्ठ है। ऐसा कहते हुए संत ने पहले विद्वान की तरफ इशारा किया। यह सुनते ही दूसरा विद्वान हैरान हो गया।

क्रोध करने वाला कभी नहीं कर सकता ज्ञान का सही इस्तेमाल:

उसनें संत से कहा कि महोदय आपने जीतने सवाल किये मैंने आपके सभी सवालों के सही जवाब दिए। इसके बावजूद आपने फैसला उसके पक्ष में क्यों दिया। संत ने दुसरे विद्वान की बात को ध्यान से सुना और कहा, तुम्हारे अन्दर ज्ञान की कमी नहीं है, लेकिन तुम अपने क्रोध पर नियंत्रण नहीं कर पाते हो। इस बात का हमेशा ध्यान रखों, क्रोध करने वाला व्यक्ति कभी भी अपने ज्ञान का सही इस्तेमाल नहीं कर सकता है। यह सुनते ही दूसरा विद्वान शर्मिंदा होते हुए संत से क्षमा माँगने लगा।

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