एक तपस्वी की अद्भुत कहानी जिसने अपने जीवन नहीं देखी थी कोई स्त्री, लेकिन जब देखी तो.
भारतीय इतिहास कितना गौरवशाली है यदि इसका अंदाजा भी कोई लगाए तो शायद उसके शब्दों की सीमा ही समाप्त हो जाएं, ना केवल शास्त्र बल्कि पुराणों में उल्लेखनीय विभिन्न ऐतिहासिक तथ्य किसी व्यक्ति को अचम्भित करने के लिए काफी है । हम आपकों ऐसी ही एक पौराणिक कथा के बारे में बता रहे हैं जो आपको हैरान करने के लिए काफी है , ये कथा है ऋष्यश्रृंग की एक ऐसे ऋषि की जिसने अपने जीवन में कभी स्त्री नही देखी और जब देखा तो वो पल पुराणों के ऐतिहासिक पन्नों में दर्ज हो गया। साथ ही इन ऋषि का भगवान राम के जन्म से भी जुड़ा प्रसंग है। आइए जानते हैं इस महाऋषि की रहस्मयी कथा.
ऋष्यश्रृंग के जन्म का रोचक संयोग
पौराणिक कथाओं के अनुसार ऋष्यश्रृंग, ऋषि विभाण्डक तथा अप्सरा उर्वशी के पुत्र थे। विभाण्डक ने इतना कठोर तप किया कि देवतागण भयभीत हो गये और उनके तप को भंग करने के लिए उर्वशी को भेजा। उर्वशी ने उन्हें मोहित कर उनके साथ संसर्ग किया जिसके फलस्वरूप ऋष्यश्रृंग की उत्पत्ति हुयी। ऋष्यश्रृंग के माथे पर एक सींग (शृंग) था अतः उनका यह नाम पड़ा। ऋष्यश्रृंग के पैदा होने के तुरन्त बाद उर्वशी का धरती का काम समाप्त हो गया तथा वह स्वर्गलोक के लिए प्रस्थान कर गई। इस धोखे से विभण्डक इतने आहत हुये कि उन्हें नारी जाति से घृणा हो गई तथा उन्होंने अपने पुत्र ऋष्यशृंग पर नारी का साया भी न पड़ने देने की ठान ली। इसी उद्देश्य से वह ऋष्यशृंग का पालन-पोषण एक अरण्य में करने लगे।
ऋष्यशृंग के साथ भी हुआ अपने पिता जैसा छल, पर नियति का था कुछ और अभिप्राय
क्रोधित होकर विभाण्डक ऋषि जिस जंगल की ओर गए थे वह अरण्य अंगदेश की सीमा से लग के था। उनके घोर तप तथा क्रोध के परिणाम अंगदेश को भुगतने पड़े जहाँ भयंकर अकाल छा गया। अंगदेश के राजा रोमपाद (चित्ररथ) ने ऋषियों तथा मंत्रियों से मंत्रणा की और इस दुविधा का समाधान ऋषियों ने ऋष्यशृंग का विवाह बताया उनके अनुसार यदि ऋष्यशृंग विवाह कर लें तो उनके पिता विभाण्डक ऋषि को मजबूर होकर अपना क्रोध त्यागना पड़ेगा …फिर ये निर्णय लिया गया कि किसी भी तरह से ऋष्यऋंग को अंगदेश की धरती में ले आया जाता है तो उनके राज्य की विपदा दूर हो जाए।
राजा ने इसके लिए भी योजना बनाई, उन्होंने अपने नगर की सभी देवदासियों को ऋष्यश्रृंग को आकर्षित कर उन्हें जंगल से बाहर निकालकर नगर लाने का काम सौंप दिया। उन्हें लगा था कि ऋष्यऋंग पहली बार में देवदासियों को देख मोहित हो जाएंगे पर जिसने आज तक स्त्री का छाया भी ना देखी हो भलां कैसे पहली ही बार में उनसे आकर्षित हो जाएं । इस कार्य में देवदासियों को लम्बा समय लगा पर अन्त में उसमें सफल हुईं और ऋष्यऋंग उनके साथ अंगदेश चल पड़े। ऋष्यश्रृंग के राजा रोमपाद के दरबार पहुंचने पर राजा ने उन्हें सारी घटना बताई कि उनके पिता ऋषि विभांडक के तप को तोड़ने के लिए यह सब किया गया था। अपने पुत्र के साथ हुए इस छल से विभांडक ऋषि अत्यंत क्रोधित हुए और क्रोध के आवेश में आकर रोमपाद के महल पहुंचे… जहां विभांडक ऋषि का क्रोध शांत करने के लिए राजा रोमपाद ने अपनी दत्तक पुत्री शांता का विवाह ऋष्यश्रृंग से कर दिया ।
भगवान राम के जन्म से जुड़ा प्रसंग
बाल्मीकीय रामायण के अनुसार.. राजा दशरथ ने अयोघ्या नगरी में आकर श्रवणकुमार की शब्दभेदी बाण से मृत्यु हो जाने तथा उसके अंधे माता-पिता के शाप की बात अपने गुरू वशिष्ठजी को सुनाई । कुछ दिनों उपरांत वशिष्ठजी ने राजा के दोष निवृत्ति तथा पुत्र प्राप्ति के लिये सरयूनदी के किनारे ऋष्यश्रृंग को बुलाकर अश्ववेध यज्ञ करवाया था जिसके फलस्वरूप दशरथ के पुत्र के रूप में भगवान राम का जन्म हुआ। जिसकी भविष्यवाणी कई वर्ष पहले ही की जा चुकी थी जब संतकुमार ने राजा पूर्वाकल से कहा था कि महर्षि विभांडक को एक महान पुत्र की प्राप्ति होगी जिनके द्वारा किए गए पुत्रप्राप्ति के यज्ञ से ही दशरथ के घर भगवान राम का जन्म होगा।
हैरान करने वाली बात ये है कि राजा रोमपाद ने ऋष्यश्रृंग से अपनी जिस दत्तक पुत्री का विवाह किया था वह राजा दशरथ की पुत्री और भगवान श्रीराम की बहन थी।