शिव के त्रिनेत्र से जन्मा था पार्वती का ये उदण्ड पुत्र, स्वयं महादेव को करना पड़ा संहार
भगवान शिव की महिमा अपरमपार रही है… एक तरफ तो भोले भण्डारी बङी सहजता से ही प्रसन्न हो जातें हैं और अपने भक्तों की हर मनोकामना पूरी देते हैं लेकिन जब यहीं शिव किसी से नाराज होते हैं तो उसका संहार करने में देर नही करते … देवों के देव, महादेव के वरदान और कोप भाजन के कई कथाएं पुराणों में वर्णित हैं और इनमें से ही एक कथा अंधकासुर ( Andhakasur ) की है। अंधकासुर वो दैत्य था जिसे भगवान शिव का ही अंश माना जाता है, इसे भगवान शिव और मां पार्वती दोनो की कृपा प्राप्त थी लेकिन इसका अंत भी स्वमं शिव के ही हांथों ही हुआ।
कौन था ये शिव पुत्र, कैसे प्राप्त हुई थी इसे महादेव की विशेष कृपा और क्यों करना पड़ा शिवजी को इसका वध…. जानिए न्यूज़ट्रेन्ड की विशेष रिपोर्ट में …
शिव कृपा से अंधकासुर का जन्म :
अंधकासुर के जन्म के बारें में बहुत सी पुरानी कथाएं प्रचलित हैं उनमें से एक ये है कि.. एक बार शिव जी अपना मुंह पूर्व दिशा की और करके बैठे थे तभी अचानक पार्वती जी ने आकर शिवजी की आंखे बन्द कर दी और पुरे संसार में अँधेरा छा गया। इसी वजह से शिव जी को अपनी तीसरी आंख खोलनी पड़ी जिससे संसार में तो रौशनी हो गयी पर उस समय गर्मी के कारण पार्वती जी को पसीना आने लगा , तब उसी पसीने की बूंदो से एक बालक का जन्म हुआ जिसका चेहरा बहुत भयानक था, उसे देख कर भगवान शिव से पार्वती जी ने उस बालक की उत्पत्ति के बारे में पूछा तब शिव जी ने उसे अपना ही पुत्र बताया ।
अंधकार के कारण पैदा होने की वजह से उसका नाम अंधक पड़ गया, इसके बाद जब दैत्य हिरण्यक्ष ने शिव जी से पुत्र प्राप्ति का वर माँगा तब उन्होंने अंधक को ही उन्हें पुत्र रूप में दे दिया इसलिए अंधक का पालन पोषण असुरो के बीच ही किया गया और फिर वह असुरो का राजा अंधकासुर बना
वहीं लिंग पुराण के अनुसार दैत्य हिरण्याक्ष ने कालाग्नि रुद्र के रूप मे परमेश्वर शिव की घोर तपस्या करके से उनसे शिवशंकर जैसे एक पुत्र का वरदान मांगा। भगवान शंकर ने वरदान स्वरुप हिरण्याक्ष के घर अंधकासुर के रूप मे जन्म लिया ।
अंधकासुर कैसे बना ये तीनो लोक में सर्वशक्तिशाली :
अंधकासुर को भगवान शिव और मां पार्वती की कृपा प्राप्त थी, शिवजी ने वरदान दिया था कि उसके रक्त से सैकड़ों दैत्य जन्म लेंगे इसके साथ ही इसने ब्रह्मादेव की तपस्या कर उनसे देवताओं द्वारा न मारे जाने का वर प्राप्त कर लिया। पद्मपुराण अनुसार राहू-केतु को छोडकर अंधकासुर एकमात्र ऐसा दैत्य था जिसने अमृतपान कर लिया था । अपनी शक्ति और विकराल स्वरुप के कारण यह दैत्य इतना अंधा हो चुका था कि इसे अपने समक्ष कोई दिखाई ही नही देता था।
क्यों करना पड़ा भगवान शिव को अंधकासुर वध :
प्राप्त शक्तियों के अभिमान से अंधकासुर निरंकुश हो चुका था अपने पिता हिरण्याक्ष के साथ उसने तीनो लोको में तबाही मचानी शुरू कर दी उसी बीच भगवान विष्णु ने वराह अवतार में हिरण्याक्ष का वध कर दिया जिससे आहात होकर अंधकासुर भगवान शंकर और विष्णु को अपना परम शत्रु मानने लगा। यहां तक की देवी पार्वती पर आसक्त होकर उसने उनका अपहरण तक कर लिया तत्पश्चात अंधकासुर के आतंक का अन्त करने और तीनो लोक में व्याप्त भक्तों के संकट दूर करने के लिए स्वयं शंभु ने अंधकासुर से युद्ध किया और उसका वध कर डाला।
अंधकासुर के वध से जुङी एक और पौराणिक मान्यता है कि उस दौरान ही उज्जैन की धरती पर मंगल ग्रह की उत्पत्ति हुई थी। स्कंद पुराण के अनुसार शिवजी और अंधकासुर के बीच जब भीषण युद्ध हो रहा था तो शिवजी का पसीना बहने लगा और रुद्र के पसीने की बूंद की गर्मी से उज्जैन की धरती फट कर दो भागों में विभक्त हो गयी और मंगल ग्रह का जन्म हुआ। शिवजी ने दैत्य का संहार किया और उसकी रक्त की बूंदों को नवोत्पन्न मंगल ग्रह ने अपने अंदर समा लिया., कहते हैं इसलिए मंगल की धरती लाल रंग की है।