जानिये कौन सा है वह पवित्र स्थान जहां रावण बनाना चाहता था स्वर्ग के लिए सीढ़ी..
हिमाचल प्रदेश को देव भूमि के नाम से भी जाना जाता है. इसलिए हिमाचल प्रदेश में कई ऐसे पवित्र स्थान है जिसमे लोगों की अटूट आस्था है. आज हम आपको ऐसे ही एक स्थान के बारे में बताने जा रहे जिसके बारे में जानकर आप हैरान हो सकते है. यह पवित्र स्थल हिमाचल प्रदेश से 70 किलोमीटर दूर सिरमौर जिले में स्थित है. बताया जाता है कि यहां के एक मंदिर में रावण ने स्वर्गलोक जाने की सीधी बनाई थी. way to heaven.
भगवान शिव का यह मंदिर सिरमौर जिला के मुख्यालय नाहन से 6 किलोमीटर दूर है. कहते हैं कि रामायण काल में रावण ने स्वर्गलोक जाने के लिए इन सीढ़ियों का निर्माण किया था. जब वह सीढ़ियां बना रहा था उस दौरान उसे नींद आ गयी जिस वजह से उसके अमर होने का सपना अधूरा रह गया. देहरादून, चंडीगढ़, पंजाब और हरियाणा के लोगों के लिए यह मंदिर आस्था का केंद्र है. पूरे साल यहां श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है.
रावण के साथ जुड़ा मंदिर का इतिहास
कहा जाता है की रावण ने अमर होने के लिए कड़ी तपस्या की थी. तपस्या से खुश होकर जब भगवान शिव प्रकट हुए तो उन्होंने कहा कि अगर वह एक दिन में पांच पौडियां बना देता है, तो वह अमर हो जाएगा. पहली पौड़ी रावण ने हरिद्वार शहर में बनायी थी, जिसे अब हर की पौड़ी के नाम से जाना जाता है. उसने दूसरी पौड़ी, पौड़ी गढ़वाल में बनायी थी. तीसरी पौड़ी का निर्माण चुडेश्वर महादेव में किया था और चौथी पौड़ी किन्नर कैलाश में बनायी थी. जब पांचवी पौड़ी के निर्माण की बारी आई तब रावण को नींद आ गयी और जब आंख खुली तो देखा सवेरा हो चुका है. पांचवी पौड़ी ना बन पाने के कारण रावण अमर होने से रह गया.
मार्कंडेय ऋषि के साथ भी है संबंध
इस मंदिर से जुड़ी एक और मान्यता है. कहते है कि एक बार भगवान विष्णु ने पुत्र प्राप्ति के लिए तपस्या की थी. तपस्या से खुश होकर ऋषि मृकंडू ने उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया और कहा की उनका ये पुत्र केवल 12 वर्षों तक ही जीवित रहेगा. भगवान विष्णु के इस पुत्र का नाम मार्कंडेय रखा गया, जिन्हें बाद में मार्कंडेय ऋषि के नाम से जाना गया. केवल 12 वर्ष तक की ही आयु होने के कारण मार्कंडेय ऋषि ने भगवान शिव की घोर तपस्या की. उन्होंने अमर होने के लिए लगातार महामृत्युंजय मंत्र का जाप किया.
मार्कंडेय ऋषि के 12 वर्ष पूरे होने के पश्चात जब यमराज जी उन्हें लेने आये तब उन्होंने शिवलिंग को अपनी बाहों में भर लिया, जिसके बाद शिवजी ने दर्शन दिया. इस प्रकार मार्कंडेय ऋषि को भगवान शिव से सदैव अमर होने का वरदान मिल गया.