बिना आंख-कान के आया था बेटे का शव, पहली सैलरी से पहले शहीद हुए कैप्टन सौरभ, पढ़े दर्दभरी कहानी
कारगिल युद्ध के 23 साल बीत चुके हैं. भारत-पाकिस्तान के बीच हुए इस युद्ध में भारत ने जीत हासिल की थी. इस युद्ध में भारतीय शेरों ने कई पाकिस्तान सैनिकों को ढेर कर दिया था तो वहीं कई भारतीय सैनिकों ने इस दौरान अपने प्राण न्यौछावर कर दिए थे. कारगिल युद्ध में कैप्टन सौरभ कालिया भी शहीद हो गए थे. उनकी उम्र थी महज 22 साल.
22 साल की छोटी सी उम्र में कैप्टन सौरभ कालिया बहुत बड़ा काम कर गए थे. दुश्मनों से लड़ते हुए वे दुनिया छोड़ गए. उनके माता-पिता परिवार के पास उनकी निशानी के रूप में उनके हस्ताक्षर वाला एक चेक रखा हुआ है. पिता नरेंद्र कुमार और मां विजय कालिया के बड़े बेटे सौरभ थे. वहीं छोटे बेटे का नाम वैभव है.
कारगिल युद्ध में शहीद कैप्टन सौरभ कालिया अपनी टीम (सिपाही अर्जुन राम, बंवर लाल, भीखाराम, मूला राम और नरेश सिंह) के साथ थे. लेकिन दुर्भाग्यवश सभी जवानों को पाकिस्तान ने निशाना बना लिया था और पाकिस्तान ने सभी के साथ बहुत बर्बरता की थी. इन शहीद जवानों के शरीर के महत्वपूर्ण अंग नहीं थे. किसी की आंखें फोड़ दी गई थी और उनके नाक, कान तथा जननांग भी काट दिए गए.
सौरभ को सेना में गए हुए चार महीने का ही समय हुआ था. परिवार बेटे को सेना की वर्दी में देखना चाहता था लेकिन यह सपना पूरा नहीं हो पाया. क्योंकि इससे पहले ही सौरभ शहीद हो गए थे. वहीं वे अपना पहला वेतन भी नहीं ले पाए थे. सौरभ को उनके छोटे भाई वैभव ने मुखाग्नि दी थी.
सौरभ हिमाचल प्रदेश के रहने वाले थे. सौरभ की का बिजय कालिया ने बताया कि, ”चेक मेरे शरारती बेटे की एक प्यारी सी याद है”. जबकि शहीद के पिता ने कहा कि, ”30 मई 1999 को उनकी उससे आखिरी बार बात हुई थी, जब उसके छोटे भाई वैभव का जन्मदिन था. उसने 29 जून को आने वाले अपने जन्मदिन पर आने का वादा किया था लेकिन 23वें जन्मदिन पर आने का अपना वादा वह पूरा नहीं कर सका और देश के लिए सर्वोच्च बलिदान दे दिया”.
जब-जब कारगिल युद्ध की बात होगी तब-तब शहीद कैप्टन सौरभ कालिया का नाम लिया जाएगा. उनकी शहादत को देश सदैव याद रखेगा. उनके शहीद होने पर उनकी मां बहुत भावुक थी लेकिन उन्हें गर्व भी था. उन्होंने कहा था कि हजारों लोग शोक में थे और मेरे बेटे के नाम के नारे लगा रहे थे. मैं गौरवान्वित मां थी. लेकिन मैंने कुछ खो दिया था.