आतंकियों के समर्थन मैं उतरे राहुल गांधी
दुःख होता है जब कुछ शिक्षित लोगों को भी वोटबैंक एवं अन्य राजनैतिक कारणों से कश्मीर एवं खालिस्तान के अलगाववाद एवं देश के कुछ हिस्सों में फैले नक्सलवाद का समर्थन करते हुए देखा जाता है
आप को याद होगा कि किस तरह आम आदमी पार्टी के कुछ मुख्य सदस्यों ने पहले तो कश्मीर के भारत से अलग होने के विषय में जनमत की राय रखी, नक्सल प्रभावित क्षेत्रों से भी सेना हटाने की मांग की और ऐसे लोगों को उस समय पार्टी से नहीं निकाला गया, फिर आतंकवादी अफजल गुरु एवं कसाब के समर्थन में प्रदर्शन करने वाले कुछ लोगों को कश्मीर से लोकसभा की टिकट दी गयी, पार्टी के ही पंजाब के कुछ नेताओं ने खुले आम खालिस्तान का मुद्दा फिर भड़का दिया, जे एन यू में हुई देशद्रोही नारेबाजी के आरोपियों का समर्थन भी इस पार्टी के नेताओं ने किया |
कांग्रेस की भूमिका तो इस सब में हमेशा से ही संदिग्ध रही है | आज़ादी के बाद से ही इस देश में ज्यादातर समय कांग्रेस का ही राज़ रहा | उस के बावजूद कश्मीर में अलगाववाद एवं देश के कई हिस्सों में नक्सलवाद फलता फूलता रहा | खालिस्तान समर्थक विद्रोह की कमर इंदिरा जी के समय तोड़ दी गयी थी लेकिन उनके बाद के कांग्रेसी नेताओं ने इस मुद्दे पर भी गंभीरता से काम नहीं किया |
कांग्रेस पार्टी आज़ादी के बाद से देश में राजनीतिक अधिकार के सन्दर्भ में अपने न्यूनतम बिंदु पर है। अपने अत्तीत की चमक को फिर से पाने के लिए, अपने तुरुफ के इक्के उपाध्यक्ष राहुल गांधी को हर जगह भेज देती है। इसलिए राहुल आमतौर पर देश के हर उस हिस्से में पहुँच जाते हैं, जो किसी राष्ट्रीय संकट से गुज़रा है।