5 बेटियों के कंधों पर निकली पिता की अंतिम यात्रा, बेटे ने कंधा देने से कर दिया था साफ इनकार
झारखंड में 5 बेटियों ने समाज को आईना दिखा दिया। लोग बेटा होने के लिए तरसते हैं और बेटी होने पर गम मनाते हैं। हालांकि उनको पता ही नहीं होता कि उनके लिए अंतिम समय में कौन काम आएगा। झारखंड की इन बेटियों ने लड़का-लड़की में भेदभाव करने वालों को आईना दिखाने का काम किया है।
यहां एक बुजुर्ग पिता की मौत हो गई। जब उसकी शव यात्रा निकलनी थी तो बेटे ने कंधा देने से साफ इनकार कर दिया। वो अंतिम यात्रा में शामिल ही नहीं होना चाहता था। इसके बाद 5 बेटियों ने अपनी जिम्मेदारी संभाली और पिता का शव इनके कंधों पर श्मशान घाट पहुंचा। जिसने भी उनको देखा, सराहे बिना नहीं रह सका।
झारखंड के गुमला जिले का मामला
ये मामला झारखंड के गुमला जिले से सामने आया है। यहां बेटे-बेटी का भेदभाव करने वाले समाज को 5 बेटियों ने हकीकत का आईना दिखा दिया। इन पांचों बहनों ने अपने पिता के शव को कंधा दिया। इससे पुरानी परंपरा भी टूट गई और गांव के लोगों को सबक भी मिला। ये मामला चर्चा का विषय बना हुआ है।
जिले में कामडारा प्रखंड है। यहां सालेगुटू गांव है जिसमें लक्ष्मी नारायण साहू जिनकी उम्र 75 साल है, उनकी मौत हो गई थी। उनका अंतिम संस्कार होना था। इसके लिए जब गांव वालों ने उनके बेटे घुनेश्वर साहू से बात की तो उसने पिता को कंधा देने और अंतिम संस्कार में आने से साफ मना कर दिया।
बेटियां आईं आगे, कंधों पर निकली शव यात्रा
बेटे के अंतिम संस्कार में न आने की वजह पिता और पुत्र का विवाद था। दोनों में किसी बात को लेकर पुराना झगड़ा चल रहा था। इसी से गुस्साकर बेटे ने पिता को कंधा देने से मना कर दिया था। जब ये बात गांव वालों ने लक्ष्मी नारायण साहू की पांच बेटियों को बताईं तो वो भी हैरान रह गईं। उनके सामने परंपरा निभाने का प्रश्न था।
इसके बाद पांचों बहनों ने बड़ा फैसला ले लिया जिससे गांव की सालों पुरानी परंपरा टूट गई। विमला देवी(कोड़ाकेल), सुमित्रा देवी(अरगोड़ा), मैनी देवी(करौंदी), पदमा देवी(तोरपा) और शांति देवी कुलाबिरा ने अपने पिता के शव को कंधा देने का फैसला किया। इन्होंने पिता को श्मशान घाट कर पहुंचाने का निर्णय ले लिया।
बेटियों के कंधे पर निकली शव यात्रा
गांव में ऐसा पहली बार हो रहा था कि बेटियां अपने पिता के शव को कंधा दे रही हों। यहां की वर्षों पुरानी परंपरा टूटते दिख रही थी। इसका गवाह भी गांव वाले बन रहे थे। इसके बाद बेटियां अपने पिता के शव को लेकर श्मशान घाट पहुंची। वहां पर इन सभी ने मिलकर पिता के शव दाह के लिए लकड़ियों का भी इंतजाम किया।
हालांकि इसी बीच कुछ गांव वाले बेटे को समझाने उसके घर भी पहुंच गए। उन लोगों ने पिता के साथ आपसी विवाद को उनकी मौत के बाद भूलने के लिए कहा। काफी समझाने के बाद बेटा वहां आने के लिए राजी हुआ। तब जाकर शव को मुखाग्नि दी गई। अंतिम संस्कार कोयल नदी में मौजूद बालाघाट में हुआ। पूरी घटना गांव में लोगों के बीच चर्चा का विषय बनी हुई है।