MBBS छात्र 13 साल जेल रहने के बाद निर्दोष साबित, कोर्ट ने लगाई फटकार, 42 लाख मुआवजा देने को कहा
पुलिस अगर किसी को फंसाना चाहे तो उसका क्या हाल कर सकती है, यह खबर उसी की एक मिसाल है। पुलिस की वजह से एक निर्दोष MBBS छात्र हत्या के जुर्म में 13 साल जेल रहा, लेकिन उसने न्याय की आस नहीं छोड़ी और जेल से ही अपना केस लड़ता रहा। आखिर 13 साल बाद उसे इंसाफ मिला और कोर्ट ने उसे बाइज्जत बरी कर दिया। लेकिन पुलिस की वजह से उसके मूल्यवान 13 साल बर्बाद चले गए।
पुलिस ने जानबूझ कर फंसाया
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने एक महिला की कथित हत्या के मामले में एक MBBS छात्र की दोषसिद्धि को निरस्त कर दिया। अदालत ने साथ ही पुलिस को फटकार लगाते हुए कहा कि उसने मामले की जांच ‘व्यक्ति को झूठे तरीके से फंसाने के एकमात्र उद्देश्य’ से की।
अदालत ने राज्य सरकार से कहा कि वह संबंधित व्यक्ति को 42 लाख रुपये का मुआवजा दे क्योंकि उसे ‘न्याय के इंतजार’ में अपने जीवन के 13 साल सलाखों के पीछे बिताने पड़े। अदालत ने कहा कि यह मामला ‘दुर्भावना और पूर्वाग्रह से प्रेरित जांच की घिनौनी’ कहानी कहता है।
2008 में गिरफ्तार हुए थे चंद्रेश
हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि व्यक्ति की दोषसिद्धि और कैद ने उसके पूरे जीवन को ‘अस्त-व्यस्त’ कर दिया। आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखने वाले चंद्रेश मार्सकोले को कथित हत्या के सिलसिले में 2008 में गिरफ्तार किया गया था।
उस समय वह भोपाल स्थित गांधी मेडिकल कॉलेज में MBBS कर रहे थे और अंतिम वर्ष के छात्र थे। उन पर राज्य के पचमढ़ी में अपनी प्रेमिका की हत्या करने और उसके शव को ठिकाने लगाने का आरोप था। उस वक्त उनकी उम्र 21 साल थी, अब चंद्रेश की उम्र करीब 34 साल हो चुकी है।
क्या अभियोजन के गवाह को बचाया गया?
जस्टिस अतुल श्रीधरन और जस्टिस सुनीता यादव की पीठ ने बुधवार को हत्या के मामले में मार्सकोले की सजा को निरस्त कर दिया और निचली अदालत के 2009 के फैसले के खिलाफ उनकी अपील का निपटारा कर दिया। पीठ ने कहा, ‘याचिकाकर्ता को तुरंत रिहा किया जाएगा।
यह मामला दुर्भावना और पूर्वाग्रह की भावना से की गई जांच की एक घिनौनी गाथा का खुलासा करता है, जिसके बाद दुर्भावना से प्रेरित मुकदमा चलाया गया, जहां पुलिस ने मार्सकोले को गलत तरीके से फंसाने और शायद जानबूझकर अभियोजन पक्ष के गवाह (डॉ. हेमंत वर्मा) की रक्षा करने के एकमात्र उद्देश्य से मामले की जांच की, जो हो सकता है वास्तविक अपराधी हो।
42 लाख रुपये मुआवजा देने का आदेश
कोर्ट के आदेश में कहा गया है, ‘तथ्य यह है कि याचिकाकर्ता ने न्याय की प्रतीक्षा में 13 साल से अधिक समय बिताया है और इस मामले में हम मार्सकोले को 42 लाख रुपये का मुआवजा देते हैं, जिसका भुगतान राज्य आदेश की तारीख से 90 दिनों के भीतर करेगा। इसके बाद, भुगतान की तारीख तक नौ प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से ब्याज लगेगा।