21 साल के जांबाज अरुण क्षेत्रपाल ने 1971 में उडा दिए थे पाकिस्तानी टैंकों के परखच्चे।
देश की तरफ से लड़ कर शहीद होने वाले वीर जवान हमेशा के लिए अमर हो जाते हैं। कुछ वीर सपूत गुमनामी के साए में दब कर रह जाते हैं। लेकिन कुछ वीर जांबाज असंभव लगने वाले कार्य कर के इतिहास के पन्नों में अपना नाम दर्ज करा देते हैं। आज हम आपको ऐसे ही जांबाज की कहानी बताने जा रहे हैं जिसका नाम है अरुण क्षेत्रपाल। भारत माता के इस बेटे ने 1971 के भारत पाकिस्तान के युद्ध में पाकिस्तान की नाक में दम कर दिया था। जब भी देश के वीर सपूतों की बात आएगी, परमवीर चक्र से सम्मानित जांबाज सेकेंड लेफ्टिनेंट अरुण क्षेत्रपाल का नाम सबसे ऊपर होगा।
अरुण क्षेत्रपाल का जीवन परिचय :
सबसे पहले आपको अरुण क्षेत्रपाल के जीवन परिचय के बारे में बताते हैं। अरुण क्षेत्रपाल का जन्म 14 अक्तूबर, 1950 को महाराष्ट्र के पूना में हुआ था। उनके पिता का नाम श्री मदन लाल क्षेत्रपाल था। जो कि हिंदू धर्म से संबंध रखते थे। भारतीय सेना में वो सेकेंड लेफ्टिनेंट के पद पर कार्यरत थे। देश भक्ति का जज्बा उनके परिवार में कई सालों से चलता आ रहा था। दरअसल अरुण खेत्रपाल के परदादा भी सिख सेना में कार्यरत थे और 1848 में उन्होंने ब्रिटिश सेना के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी। और अरुण क्षषेत्रपाल के पिता जी मदन लाल खेत्रपाल भी ब्रिगेडियर थे। उन्होंने अतिविशिष्ट सेना मेडल भी प्राप्त किया। वह पढ़ाई-लिखाई के साथ साथ खेल में भी रुचि रखते थे। उनका रंग खेल के मैदान में भी जमता था। वह स्कूल के एक बेहतर क्रिकेट खिलाड़ी थे। एन.डी.ए. के दौरान वह ‘स्क्वेड्रन कैडेट’ के रूप में चुने गए। इण्डियन मिलिट्री अकेडमी देहरादून में वह सीनियर अण्डर ऑफिसर बनाए।
पाकिस्तानी टैंकों को कर दिया था तहस – नहस :
यह बात 1971 के बाद पाकिस्तान के युद्ध की है। 1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध मेँ पश्चिमी पाकिस्तान मे भीषण युद्ध चल रहा था। और पाकिस्तान ने कश्मीर को पंजाब से काटने के लिए शकरपुर बल्ज में बसंतर नदी पर अपनी शक्ति को इतना मजबूत कर लिया था। अखनूर के इलाके मे लडती भारतीय सेना के लिए आगे बढ़ना बहुत मुश्किल था। भारतीय सेना के पास एक ही उपाय था की बसंतर नदी को पार करके पाकिस्तान की सीमा मे घुसकर सीधा शत्रु सेना हमला करे । पाकिस्तान ने इसी नदी के पुल के एक मील के दायरे मेँ तमाम बारुदी सुरंगें बिछा रखी थी।
13 केवलरी के 10 शत्रु टैंक पाकिस्तान की ओर से तेजी से बसंतर नदी की तरफ आगे बढ़ रहे थे। 3 भारतीय टैंको के भीषण आक्रमण से 7 पाकिस्तानी टैंक ध्वस्त हो गए। परंतु कर्नल मल्होत्रा और लेफ्टिनेंट अहलावत बहुत ही बुरी तरह से जख्मी हो गए। अब नेतृत्व की पूरी जिम्मेदारी इस 21 साल के नौजवान अरुण क्षेत्रपाल पर आ गया और 3 पाकिस्तानी टैंको से घिरे क्षेत्रपाल को वापस लौटने का आदेश मिला परंतु अरूण ने “मेरी बंदूक चल रही है और में वापस नही लौटूंगा, आउट” कहकर वायरलेस बंद कर दिया और दुश्मन के ३ टैंको पर अकेले ही बरस पडे ।
देखते ही देखते उन्होने दो पाकिस्तानी टैंकों को अकेले ही ध्वस्त कर दिया और तभी एक गोला उनकी टैंक पर गिरा और अरुण क्षेत्रपाल के दोनों पैर कट गए। ड्राइवर पराग सिंह ने टैंक वापस लेने कहा परंतु उसके बाद भी अरूण ने ड्राइवर को मैदान मे डटे रहने का आदेश दिया। और शत्रु का आखिरी टैंक अरुण क्षेत्रपाल से मात्र 100 मीटर की दूरी पर था और इस रण बांकुरे ने मशीन गन और गोलों की बरसात जारी रखा। अरुण क्षेत्रपाल ने मरने के अंतिम मिनट के भीतर एक ऐसा प्रहार किया कि शत्रु का अंतिम टैंक भी नष्ट हो गया और शहादत के साथ क्षेत्रपाल के अद्भुत शौर्य और पराक्रम ने भारत को एक एेसी जीत दिलाई जिससे की 71 युद्ध का पासा ही पलट गया। बसंतर की जीत से पाकिस्तान के हौसले पस्त हो गए और पाकिस्तान ने युद्ध पर पूरा नियंत्रण खो दिया। भारतीय सेनाओं ने इस भीषण युद्ध पाकिस्तान के 45 टैंकों को उडा दिया और दस पर कब्जा कर लिया बदले में भारत के मात्र दो टैंक ही तबाह हुए ।
परमवीर चक्र से किया गया सम्मानित :
अरुण छत्रपाल इतनी बहादुरी से लड़ता हुआ शहीद हुआ कि देश आज भी उनकी शहादत को सलाम करता है। लेफ्टिनेंट अरुण क्षेत्रपाल के अदभुत शौर्य और पराक्रम के कारण भारत को जीत मिली। सेंकेंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल को उनकी वीरता से देश का सर्वोच्च पुरस्कार परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। वह परमवीर चक्र पाने वाले सबसे कम उम्र के जवान थे। और उन्हें यह सम्मान केवल छह महीने के कार्यकाल में ही मिल गया था। नेशनल डिफेंस एकेडमी यानी राष्ट्रीय रक्षा अकादमी ने श्री अरुण खेतरपाल के नाम पर अपने परेड ग्राउंड का नाम क्षेत्रपाल ग्राउंड रखा है।