Spiritual

ऐसा मंदिर जहां काली मां को भोग में चढ़ाए जाते हैं नूडल्स, वजह है चमत्कारी

हर मंदिर में भगवान को प्रसाद जरूर चढ़ाया जाता है। आमतौर पर ये प्रसाद मिठाई, लड्डू, नारियल, चना, चिरोंजी इत्यादि चीजों का होता है। लेकिन आज हम आपको एक ऐसे मंदिर के दर्शन कराने जा रहे हैं जहां मां काली को प्रसाद के रूप में चाइनीज फूड (नूडल्स) चढ़ते हैं। यहां पूजा के बाद भक्तों को प्रसाद के रूप में नूडल्‍स वितरित किए जाते हैं।

इस मंदिर में प्रसाद में बटता है नूडल्स

हम यहां जिस ‘चाईनीज काली मंदिर’ (Chinese Kali Mandir) की बात कर रहे हैं वह कोलकाता के टंगरा क्षेत्र (Tangra Area) में स्थित है। इस इलाके को लोग चाइना टाउन (China Town) भी कहते हैं। यहां जो मंदिर बना है वह तिब्बती शैली का है। इस मंदिर में आपको पुराने कोलकाता और पूर्वी एशिया सुंदर संस्कृति शानदार तालमेल देखने को मिलता है।

इस मंदिर की एक और खास बात ये है कि यहां सिर्फ चाइनीज डिशेज (Chinese Food) ही नहीं बल्कि चाइनीज अगरबत्तियां भी लगाई जाती है। चीन से लाई जाने वाली इन अगरबत्तियों की खुशबू अलग ही होती है। इस मंदिर में एक एक बंगाली पुजारी सारी पूजा-पाठ करते हैं। वे बुरी आत्माओं को भगाने के लिए हाथ से बने कागज भी विशेष अवसरों पर जलाते हैं।

ऐसे शुरू हुई चाइनीज प्रसाद की परंपरा

मां काली के इस मंदिर (Kali Temple) में चाइनीज प्रसाद चढ़ाने की परंपरा के पीछे एक दिलचस्प वजह है। कहते हैं कई सालों पहले एक चाइनीज लड़का बीमार पड़ गया था। उसकी बीमारी का इलाज कहीं भी नहीं हो रहा था। उसकी जान जाने पर बात आ गई थी। फिर उसके माता-पिता ने कोलकाता आए। यहां एक पुराने पेड़ के नीचे उन्होंने बेटे को लेटा दिया। फिर मां काली से बच्चे के ठीक होने की प्रार्थना की।

चमत्कारी रूप से लड़का देखते ही देखते पूर्ण रूप से ठीक हो गया। इस चमत्कार से खुश होकर चीनी समुदाय की भी काली मां को लेकर आस्था बढ़ गई। फिर आज से करीब 20 साल पहले चीनी और बंगाली लोगों ने मिलकर इस पेड़ के आसपास मां काली का मंदिर बना दिया। मंदिर बनने से पहले भक्त पेड़ के नीचे ही पिछले 60 सालों से देवी काली की पूजा कर रहे थे।

धीरे-धीरे मंदिर में चीनी लोगों की आवाजाही शुरू हुई। ऐसे में वे लोग अपनी संस्‍कृति के मुताबिक मां काली को चाइनीज फूड आइटम जैसे नूडल्‍स, चॉप्‍सी इत्यादि भोग के रूप में चढ़ाने लगे। बस तभी से यहां काली मां को चाइनीज फूड भोग में चढ़ाने की परंपरा शुरू हो गई।

Back to top button