चौंका देने वाली खबर !! पढ़ें कैसे पानी ने ही बना डाला एक शहर को बंधक …
पिछले महीने लातूर के सरकारी मेडिकल कॉलेज और अस्पतालों में पानी की कमी की वजह से डॉक्टर्स को 12 सर्जरी टालनी पड़ीं। लातूर सरकारी मेडिकल कॉलेज के हालत सबसे ज्यादा खराब हैं। अस्पताल को रोजाना 2 लाख लीटर पानी की जरूरत है लेकिन सिर्फ 40-50 हजार लीटर पानी ही मिल पा रहा है। ऐसे में अस्पताल सिर्फ सर्जरी और इमरजेंसी को छोड़कर मरीजों तक को पीने का पानी मुहैया नही करा पा रहा है। लातूर में बोरवेल और टैंकर से जो पानी मिल भी रहा है वो पीने लायक नही है लेकिन लोग मजबूरी में पी रहे है और डायरिया और पथरी जैसी बिमारियों के शिकार बन रहे हैं। वैसे अस्पताल में ऐसे मरीजों की संख्या भी बढ़ रही है जिनके हाथ या पैर पानी भरने की लड़ाई में टूट गए…सूखे से निपटने के लिए महाराष्ट्र ने केंद्र सरकार से 4000 करोड़ रुपये की मदद मांगी जिसमें 3578.43 करोड़ रुपये फसल के लिए और 314.56 करोड़ पानी के लिए मांगे गए। लातूर शहर की सड़कों पर दिनभर आपको पानी के टैंकर दौड़ते नज़र आएंगे। छोटे-छोटे बच्चे हो या बुजुर्ग पानी के लिए पांच-छह किलोमीटर पैदल चलने को मजबूर हैं।
लेकिन सवाल उठता है कि आखिर ऐसे हालात आए क्यों। क्या इसके लिए पूरी तरह से प्रकृति ज़िम्मेदार है? या फिर पानी की कीमत न समझने वाला इंसान….सच तो ये है कि इसके लिए इंसान ही जिम्मेदार है। पिछले दस साल में लातूर के विकास को लेकर कई काम किए गए, फ्लाईओवर बनाए गए, उघोग धंधो को बढ़ावा देने लिए जमीन दी गई, रियल स्टेट मार्केट को कंक्रीट के जंगल खड़े करने की छूट भी दी गई है लेकिन इस सब के बीच सरकार या सिस्टम ने ये नही सोचा कि विकास की फसल को सींचने के लिए पानी कहां से लाएंगे। लातूर के हालात कोई नए नहीं हैं लेकिन पिछले दस साल से शहर में पानी को बचाने के लिए कोई बड़ी योजना न तो जमीन पर दिखी और न ही कागजों में…। शहर के लोगों ने भी कम कीमत वाले अनमोल पानी की अहमियत को तब समझा जब पानी सिर के ऊपर से निकल गया। अब हालात ये है कि पानी की एक एक बूंद को बचाने का संधर्ष जारी है लेकिन अगर आप ये सोच रहे हैं कि ये हालात तो लातूर के हैं मुझसे क्या…तो साहब ये हालात आपके सामने भी कल खड़े हो सकते हैं।
एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत किसी भी दूसरे देश की तुलना में 761 बिलियन क्यूबिक पानी का इस्तेमाल हर साल घरेलू, कृषि और औद्योगिक उपयोग के लिए करता है लेकिन खतरे की बात ये है कि इसमें अब आधा पानी दूषित हो गया है। 2016 में संसदीय कमेटी की एक रिपोर्ट के मुताबिक दक्षिण, पश्चिम और केंद्रीय भारत के नौ राज्यों में ग्रांउड वॉटर लेवल खतरे के निशान को पार कर गायब होने की कगार पर है। मतलब इन राज्यों में 90 फीसदी ग्रांउड वॉटर का इस्तेमाल किया जा चुका है। एक और रिपोर्ट के मुताबिक 6 राज्यों के 1,071 ब्लॉक, मंडल और तालुका में 100 फीसदी ग्रांउड वॉटर का इस्तेमाल किया जा चुका है। पूरी धरती में ग्रांउड वॉटर को लेकर सबसे ज्यादा खराब स्थिति भारत की है लेकिन इतना बड़ा खतरा इस देश में न तो नेता और न ही जनता के लिए कोई मुद्दा है। पानी नही बचा तो क्या होगा इसका लातूर एक जीता जागता उदाहरण है लेकिन क्या इस उदाहरण से हम सबक लेंगे वरना ऐसा न हो कि आज तो सिर्फ एक शहर है कल पूरे देश को पानी बंधक न बना ले। लातूर सिखाता है कि अपने धर और आसपास बर्बाद हो रहे पानी को बचाइये वरना पानी सिर के ऊपर से निकल गया तो फिर सिर्फ गला नही पूरा जीवन सूख जाएगा…।