मुग़ल इतिहास कब्र में दफन, अब से बच्चे ताजमहल और बुलंद दरवाजे की जगह जानेंगे बोफोर्स का इतिहास
मुंबई: भारत के ऊपर कई विदेशी ताकतों ने हमला किया। सबने भारत पर राज भी किया और यहाँ की संस्कृतियों के साथ जमकर खिलवाड़ भी किया। इनमें से मुगलों से सबसे ज्यादा भारत पर राज किया और यहाँ की संस्कृति को सबसे ज्यादा नुकसान पहुँचाया। आज़ादी के बाद भी भारत में बच्चों को मुगलों की गाथाएं पढ़ाई जाती थी। इसका पहले भी कई बार विरोध किया गया।
अब महाराष्ट्र सरकार ने इतिहास की पुस्तकों से मुगलों का इतिहास पूरी तरह से गायब कर दिया है। कुछ दिनों पहले ही राज्य शिक्षा बोर्ड ने सातवीं और नौवीं कक्षा के लिए इतिहास की संशोधित पुस्तक प्रकाशित की है। इस पुस्तक में शिवाजी महाराज द्वारा स्थापित मराठा साम्राज्य पर ज्यादा जोर दिया गया है। इतिहास की संसोधित पुस्तक में मुगलों द्वारा बनाये गए स्मारकों जैसे ताजमहल, क़ुतुब मीनार और लाल किला का भी जिक्र नहीं किया गया है।
पढ़ाया जायेगा बोफोर्स और आपातकाल के बारे में:
नौवीं कक्षा की पुस्तक में बोफिर्स तोप घोटाला और 1975-77 तक के आपातकाल का जिक्र किया गया है। इतिहास कमिटी के सदस्य बापू साहब शिंदे ने बताया कि पिछले साल शिक्षा मंत्री विनोद तावड़े ने एक मीटिंग की थी। उसी मीटिंग में इतिहास विषय को अपडेट करने और जरुरी चीजों को शामिल करने के बात की गयी थी। सातवीं कक्षा की पुस्तक में 9वीं सदी से लेकर 18वीं सदी तक के इतिहास को समेटा गया है।
अकबर था मुग़ल वंश का सबसे शक्तिशाली राजा:
इसमें अकबर के शासन काल को तीन लइनों में ही ख़त्म कर दिया गया हैपुस्तक में अकबर के बारे में इतना ही लिखा गया है, “अकबर मुग़ल वंश का सबसे शक्तिशाली राजा था। जब उसने भारत को एक केन्द्रीय सत्ता के अधीन लाने की कोशिश की तो उसे कड़े विरोध का सामना करना पड़ा था। महाराणा प्रताप, चाँद बीबी और रानी दुर्गावती ने उनके खिलाफ संघर्ष किया था। उन लोगों का संघर्ष उल्लेखनीय है।“
अफगानों के शुरू किया था रूपये का चलन:
यहाँ तक की इस पुस्तक में रूपये का भी उल्लेख नहीं किया गया है। सबसे पहले अफगान आक्रान्ताओं ने रूपये को जारी किया था जो अब तक चलन में है। महाराष्ट्र राज्य शिक्षा की पुस्तक में दिल्ली में शासन करने वाली पहली महिला रजिया सुल्तान, मुहम्मद बिन तुगलक के दिल्ली से दौलताबाद राजधानी शिफ्ट करने, विमुद्रीकरण और भारत से हुमायूँ को भागने पर मजबूर करने वाले शेर शाह सूरी के पैराग्राफ भी हटा दिए गए हैं।