यह जाननें के बाद यक़ीनन आपके दिल-दिमाग से दुखों का बोझ हो जायेगा कम, पढ़ें
बहुत पहले की बात है। एक अत्यंत ही ज्ञानी संत घने जंगल में ऊँची पहाड़ी पर रहते थे। उन्होंने दुनिया के शोरगुल से दूर रहते हुए पर्वत को ही अपना आसरा बनाया हुआ था। वहाँ रहना उन्हें काफी सुख-शांति से भरा हुआ लगता था। संत की प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैली हुई थी। वह महाज्ञानी थे, इसलिए पर्वत पर दूर रहने के बाद भी लोग उनके दर्शन के लिए घने जंगल में दुष्कर मार्ग से होते हुए पहुँच जाते थे।
समस्या निवारण के लिए पहुँचे संत के पास:
लोगों की संत के ऊपर अपार श्रद्धा थी। लोगों को यह यकीन था कि संत उन्हें उनके दुखों और समस्याओं से मुक्त कर देंगे। ऐसे ही एक दिन कुछ लोग संत के पास अपनी समस्या लेकर पहुँचे और उनसे इसके निवारण के लिए प्रार्थना करने पहुँचे। उस समय संत ध्यान मग्न थे, इस वजह से श्रद्धालु वहीँ बैठकर संत की प्रतीक्षा करने लगे। इसी बीच कुछ और लोग संत के दर्शन के लिए वहाँ पहुँच गए।
श्रद्धालुओं के लगातार बढ़ने की वजह से वहाँ शोरगुल ज्यादा होने लगाशोरगुल सुनकर संत का ध्यान भंग हो गया और उनकी समाधी टूट गयी। जब उन्होंने लोगों से वहाँ आने का कारण पूछा तो सभी ने अपने-अपने दुःख संत के सामने बताने शुरू किये। शांत ने सभी की बात सुनकर कहा कि मैं तुम लोगों को दुखों और कष्टों से मुक्ति का एक मार्ग बताऊंगा, लेकिन मेरी भी एक शर्त है। मैं यहाँ एकांत में कुछ समय के लिए तपस्या करना चाहता हूँ, इसलिए आप लोग वापस जाने के बाद मेरा पता किसी और को नहीं बताएँगे।
सभी लोग संत की यह बात सुनकर शर्त के लिए राजी हो गए। संत ने कहा कि सभी लोग अपनी-अपनी परेशानियाँ एक पर्ची पर लिखकर मेरे सामने रख दें। सभी ने ऐसा ही किया। संत ने सभी पर्ची को लेकर एक टोकरी में मिला दिया और लोगों से कहा कि वे इस टोकरी को आगे बढ़ाते जाएँ। हर व्यक्ति इस टोकरी में से एक पर्चा उठाएगा और पढ़ेगा। इसके बाद यह तय करेगा कि वह अपने दुःख ही अपने पास रखेगा या किसी और के दुःख को ग्रहण करेगा।
सभी लोगों ने टोकरी से पर्ची उठाकर पड़ना शुरू किया और पढ़ने के बाद सभी की उलझने और बढ़ गयी। सबनें आख़िरकार यही निर्णय लिया कि उनका दुःख चाहे जितना भी बड़ा क्यों ना हो लेकिन दूसरों के दुखों और तकलीफों के सामने उनका दुःख कुछ भी नहीं है। कुछ ही देर म सभी लोगों ने अपने-अपने पर्चे देखकर उसे खुद के पास रखना ज्यादा उचित समझा। उन लोगों ने जब दूसरों के दुखों के बारे में जाना तो उन्हें अपने दुःख कम लगने लगे। जीवन का अहम सबक सीखकर सभी अपने-अपने घर चले गए। सभी के दुःख तो पहले जीतने ही थे, लेकिन अब उस दुःख का बोझ उनके दिल और दिमाग से उतर चुका था।