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मन की हर मुराद पूरी करता है कामदा एकादशी व्रत, जाने इसे कब और कैसे करना है

‘कामदा एकादशी’ नाम सुना है? अरे चैत्र माह के शुक्ल पक्ष पर जो एकादशी पड़ती है न, उसे ही कामदा एकादशी बोलते हैं। इस बार ये 12 अप्रैल, मंगलवार आ रही है। कहते हैं कामदा एकादशी का व्रत आपकी हर मुराद पूरी करता है। यहां तक इससे प्रेत योनि से भी आजादी मिल जाती है। इस व्रत के फ़ायदों की तुलना वाजपेय यज्ञ के लाभ से की जाती है। इस व्रत को करने से जाने-अनजाने में हुए समस्त पापों से मुक्ति मिल जाती है। ये आपको मोक्ष प्रदान करती है।

ऐसे करते हैं कामदा एकादशी का व्रत व पूजा

कामदा एकादशी का व्रत करने से प्रेत योनि से मिलती है मुक्ति, खुल जाते हैं स्वर्ग के दरवाजे

कामदा एकादशी वाले दिन सुबह जल्द उठ जाएं। स्नान करने के बाद पूजा घर को साफ कर लें। यहां भगवान विष्णु की उपासना करें। फल, फूल, दूध, तिल और पंचामृत जैसी चीजें उनके चरणों में चढ़ाएं। पूजा समाप्त होने पर कामदा एकादशी व्रत की कथा सुनें या पढ़ें। इस व्रत में आपको एक वक्त के फलाहार करने की अनुमति होती है। इस दिन लौंग खाने का खास महत्व होता है। व्रत के अगले दिन यानि द्वादशी पर ब्राह्मण को भोजन खिला दान करना चाहिए।

कामदा एकादशी इस बार मंगलवार के दिन पड़ रही है। इससे इसका महत्व और भी बढ़ जाता है। दरअसल मंगलवार भगवान विष्णु का दिन होता है। इसलिए इस दिन विष्णुजी की पूजा पाठ करने के बाद श्रीयंत्र और मंगल यंत्र की पूजा भी करनी चाहिए। इससे न सिर्फ आपको कर्ज से छुटकारा मिलेगा, बल्कि घर में धन की कभी कोई कमी नहीं होगी।

ये है कामदा एकादशी व्रत कथा

भगवान श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर के कहने पर कामदा एकादशी व्रत का महत्व बताया था। इस कथा के अनुसार पौराणिक समय में भोगीपुर नाम का एक नगर था। राजा पुंडरीक यहां राज करते थे। उनके राज्य में कई अप्सराएं, किन्नर, गंर्धव निवास करते थे। इसी राज्य में ललित और ललिता नाम के पति-पत्नी रहते थे। दोनों में अत्यंत प्रेम था। दोनों एक दूसरे के बिना एक पल भी नहीं रह सकते थे।

एक दिन ललित राजा के दरबार में गीत गा रहा था। लेकिन इस दौरान उसके मन में बीवी का ख्याल आ गया। इससे उसके सुर-ताल बिगड़ गए। राजा को ललित की ये गलती पसंद नहीं आई। उसने कारण पूछा तो ललित ने पत्नी की याद आने वाली बात बता दी। राजा यह सोच क्रोधित हो गया कि ललित उसके दरबार में भी पत्नी का स्मरण कर रहा था। ऐसे में उसने उसे राक्षस बनने का श्राप दे दिया।

ललित अब इंसान से राक्षस बन गया। वह राक्षसों ववले दुख भोगने लगा। जब ललिता को ये बात पता चली तो वह बहुत दुखी हुई। फिर उसकी मुलाकर श्रृंगी ऋषि से हुई। उन्होंने जब ललिता की समस्या सुनी तो उसे एकादशी व्रत करने की सलाह दी। ललिता ने पूर्ण श्रद्धा से चैत्र एकादशी का व्रत रखा। साथ ही भगवान विष्णु से प्रार्थना करी कि मेरे व्रत का फल पति को मिले। जब व्रत पूरा उआ तो भगवान विष्णु ने ललिता के व्रत का फल पति को देते हुए उसे पुनः राक्षस से इंसान बना दिया।

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