बिहार के लाल ने किया कमाल, केले के थंब से बिजली बनाने का फार्मूला देखेंगे पीएम मोदी
पटना- बिहार के छात्र गोपाल ने केले के थंब से बिजली का उत्पादन कर देश भर में हलचल मचा दी है. गोपाल के इस अद्भुत और अविश्वनीय आविष्कार के बाद अब उन्हें पीएम नरेन्द्र मोदी के सामने इसका डेमो देने का मौका मिला है. गोपाल को इसकी जानकारी उसके मोबाइल पर प्रधानमंत्री कार्यालय से मिली है. हालाँकि अभी इसकी तिथि निश्चित नहीं की गयी है. Electricity from banana stem.
गोपाल ध्रुवगंज निवासी (केला) किसान प्रेम रंजन का पुत्र है. गोपाल ने इसी साल खरीक प्रखंड के तुलसीपुर जमुनिया स्थित मॉडल हाईस्कूल से 12वीं की परीक्षा उत्तीर्ण की है. बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार के समक्ष उसने बीते 5 जून को बनाना बायो सेल का डेमो दिया था. डेमो के बाद मुख्यमंत्री ने उसके काम की प्रशंसा की और आगे मदद करने की बात कही. पर ख़ुशी की बात ये है की गोपाल को अब बिहार सरकार से मदद की जरूरत नहीं है, क्योंकि उसके वैज्ञानिक बनने का बीड़ा खुद भारत सरकार ने उठा लिया है. सरकार के विज्ञान और प्रोद्योगिकी विभाग ने शोध कोटा से 18 जुलाई को IIT दिल्ली में उनका नामांकन करा दिया है. इतना ही नहीं गोपाल को पढाई और अन्य खर्चे के लिए स्कॉलरशिप भी दी जायेगी. गोपाल ने कहा की पीएम को डेमो दिखाने के बाद वो चाहते हैं की उनका ये प्रोजेक्ट सबके सामने आये.
आविष्कार का हुआ पेटेंट:
इस आविष्कार का पेटेंट भारत सरकार द्वारा कर लिया गया है. गोपाल ने बताया की 2015 में इस आविष्कार को इंसपायर अवार्ड मिला था. न्यू इन्वेंशन के तौर पर उसका ये आविष्कार भारत सरकार तक पहुंचा और उसका चयन हुआ.
देखा अपशिष्ट हो रहा है बर्बाद, तो विद्युतीय उर्जा में बदलने का आया ख्याल
गोपाल ने बताया की उसने देखा था की अगर केले का रस किसी भी कपडे पर लग जाए तो उसका दाग आसानी से नहीं जाता था. उसने बताया की केले के रस की प्रकृति एसिड जैसी होती है. उसके पिता केला किसान हैं और गोपाल ने कई बार बड़ी मात्र में केले का थंब अपशिष्ट के रूप में बर्बाद होते देखा है. इसके बाद ही उसे रासायनिक उर्जा को विद्युतीय उर्जा में बदलने का आईडिया आया. आमतौर पर घर में इस्तेमाल होने वाले इन्वर्टर पर दो तरह के एलेक्ट्रोड़ लगे होते हैं. इसी को आधार बनाकर गोपाल ने जिंक और कॉपर के दो अलग-अलग एलेक्ट्रोड़ को केले के थंब के साथ जोड़ दिया जिससे की उर्जा पैदा हुई. गोपाल को शोध के लिए 4 अगस्त को बेंगलुरु जाना है.