किसान के सवाल का जवाब नहीं दे पाए पंडित तो रहने लगे वेश्या के साथ, कमरे में मिला सबसे बड़ा ज्ञान
लालच सभी बुराईयों में सबसे ऊपर माना जाता है। इस लालच में आकर लोग अपनी पहचान खो देते हैं। वे इंसान से हैवान बन जाते हैं। अपनों से दगा करने लगते हैं। लालच अक्सर व्यक्ति को मुसीबत में फंसा देती है। चलिए इस बात को एक कहानी के माध्यम से समझते हैं।
जब वेश्या के घर रहने लगे पंडितजी
एक समय की बात है। एक पंडितजी काशी से कई सालों बाद लौटे। वे वहाँ शास्त्रों का अध्ययन करने गए थे। जब गाँववालों को ये बात पता लगी तो वे उनसे धर्म से जुड़ी चीजें पूछने आने लगे। एक किसान भी पंडितजी के पास आया। उसने पूछा कि “पंडितजी ये बताइए कि पाप का गुरु कौन है?”
यह सवाल सुन पंडितजी भी चकरा गए। वे सोचने लगे धर्म व आध्यात्मिक गुरुओं के बारे में तो सुना था, लेकिन ये पापा का गुरु कौन है? पंडितजी को लगा कि मेरे ज्ञान में कुछ कमी रह गई। वे फिर काशी गए और वहाँ कई गुरुओं से मिलकर सवाल का जवाब खोजा। लेकिन कोई भी उत्तर नहीं दे पाया।
इस बीच पंडितजी की मुलाकात एक वेश्या से हुई। वेश्या ने पंडितजी से उनकी उदासी का कारण पूछा। पूरी कहानी सुनने के बाद वेश्या ने कहा “पंडितजी जवाब तो बहुत आसान है। लेकिन उसे जानने के लिए आपको कुछ दिन मेरे घर रहना होगा। पंडितजी ने बहुत सोचा और फिर कुछ शर्तों के साथ वेश्या के घर रहने चले गए।
पंडितजी का एक कड़ा नियम था। वे किसी के हाथ का भोजन नहीं खाते थे। इसलिए वे वेश्या को अपने लिए खाना नहीं बनाने देते थे। वे रोज खुद अपने हाथ से भोजन बनाते थे। पानी भी अपने हाथ से लेकर पीते थे। कुछ दिन ऐसे ही बीत गए। पंडितजी जवाब जानने को बेचेन होने लगे।
एक दिन वेश्या बोली “पंडितजी आप खमखा भोजन पकाने कि तकलीफ क्यों कर रहे हैं? यहां आपको कौन देख रहा है कि आप किस के हाथ का भोजन खा रहे हैं। मैं ही रोज नहा-धोकर अपके लिए स्वादिष्ट भोजन बना दूँगी। मुझे आपकी सेवा का मौका मिलेगा। इसके बदले में आपको रोज 5 सोने के सिक्के दूँगी।”
सोने के सिक्कों की बात सुनकर पंडितजी के मन में लालच आ गया। वे इसके लिए राजी हो गए। वेश्या को बस इतना बोल दिया कि देखना कोई तुम्हें मेरे कमरे में आता जाता न देखें। अगले दिन वेश्या ने स्वादिष्ट खाना बनाया और थाली पंडितजी के सामने रख दी। पंडितजी जैसे ही थाली के पास गए वेश्या ने थाली छिन ली। यह देख पंडितजी नाराज हुए। पूछने लगे ये क्या मजाक है?
इस पर वेश्या बोली “पंडितजी ये मजाक नहीं आपके प्रश्न का उत्तर है। यहां आने के पूर्व आप किसी के हाथ का भोजन पानी नहीं लेते थे। लेकिन सोने के सिक्कों का लालच आते ही वेश्या के हाथ का खाने को तैयार हो गए। इसलिए यह लालच ही पाप का गुरु है।” पंडितजी को अपनी गलती का अहसास हुआ। साथ ही अपने सवाल का जवाब भी मिल गया।
कहानी की सीख
लालच सबसे बड़ा अवगुण होता है। ये आ जाए तो इंसान अपनी सोचने समझने की शक्ति खो देता है। आप कब सही रास्ते से गलत रास्ते पर निकल जाते हैं, पता नहीं चलता है। इसलिए तो कहते हैं- लालच बुरी बला। इससे बचकर रहो।