कोई नाराज होता है..तो हो..रूस के खिलाफ नहीं जाएगा भारत: जानिए इस स्टैंड से अमेरिका क्यों है खफा
रूस-यूक्रेन युद्ध में यूक्रेन को उकसा कर बाहर खड़ा तमाशा देख रहा अमेरिका इस युद्ध में भारत के रुख से नाराज हो गया है। लेकिन भारत ने भी साफ कर दिया है कि कोई खफा हो..या फूले वो रूस के खिलाफ नहीं जाएगा। ये वही अमेरिका है जो अफगानिस्तान को तालिबान के हाथ छोड़कर खिसक लिया था, और उसने भारत की कोई चिंता नहीं की थी।
अमेरिका की अगुआई में पश्चिमी देश रूस को सबक सिखाने के लिए उतारू हैं। संयुक्त राष्ट्र (United Nations) में भी उसके खिलाफ माहौल बनता दिख रहा है। एक के बाद एक निंदा प्रस्ताव लाए जा रहे हैं। बुधवार को संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) में भी रूस के खिलाफ ऐसा एक प्रस्ताव लाया गया। इसमें यूक्रेन पर हमले के लिए रूस की कड़ी निंदा की गई। हालांकि, हर बार की तरह भारत ने इसमें हिस्सा लेने से किनारा किया। उसने वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया। इस पूरे मामले में उसने न्यूट्रल रुख अपनाया हुआ है।
वह बातचीत के जरिये इस मसले का समाधान निकालने का पक्षधर है। भारत के तटस्थ रुख के कारण वह निशाने पर भी आने लगा है। अमेरिका को तो भारत का यह स्टैंड अखर गय है। जब दुनिया के 141 मुल्कों ने रूस के खिलाफ एक सुर में आवाज उठा दी है तो भारत क्यों अलग खड़ा है। सरकार के न्यूट्रल स्टैंड की आखिर क्या वजह है।
अगर किसी को लगता है कि भारत रूस के खिलाफ जाएगा या इस मामले में उसके सुर पश्चिमी देशों से मिलने लगेंगे तो यह भूल है। यूक्रेन पर हमले के बाद भारत के रुख पर लगातार दुनिया की नजर रही है। हालांकि, उसने रूस के खिलाफ कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। उसने बीच का रास्ता अपनाया हुआ है। वह बातचीत और कूटनीति के जरिये विवाद का समाधान निकालने की बात कर रहा है।
यह और बात है कि भारत सरकार का यह स्टैंड अमेरिका सहित पश्चिमी देशों को रास नहीं आ रहा है। उनकी नजर में भारत रूस के साथ है। हालांकि, इस स्टैंड से किसी को ताज्जुब नहीं होना चाहिए। सिर्फ महासभा में ही नहीं इसके पहले संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में भी उसने रूस के खिलाफ वोटिंग से अपने को दूर रखा था।
देश में सरकार किसी की रही हो, रूस के खिलाफ भारत कभी नहीं गया है। यह पहली बार नहीं है जब रूस के कारण भारत अग्निपरीक्षा दे रहा है। पहले भी वह इस इम्तिहान से गुजरा है। 2014 में जब पुतिन के रूस ने यूक्रेन पर हमला कर क्रिमिया पर कब्जा किया था तब भी मनमोहन सिंह सरकार का इसी तरह का न्यूट्रल स्टैंड था। इस बार भी इसमें कोई बदलाव नहीं आया है।
भारत का स्टैंड बदलने की उम्मीद कम
भविष्य में भी शायद ही भारत के इस स्टैंड में कोई बदलाव आए। आज के हालातों को देखते हुए कोई शिकायत कर सकता है कि आखिर भारत ने ऐसा रुख क्यों अपनाया हुआ है। क्यों भारत किसी ‘आक्रमणकारी’ देश के खिलाफ खुलकर बोलने से बच रहा है। लेकिन, भारत के इस रुख के पीछे कुछ ठोस वजहें हैं। उन्हें जानना और समझना होगा।
भारत के हित को UN ने नहीं समझा
दुनिया में भारत से ज्यादा शांति की हिमायत करने वाला मुल्क भला कौन होगा। हालांकि, संयुक्त राष्ट्र खासतौर से सुरक्षा परिषद में उसका अनुभव खट्टा रहा है। पश्चिमी देशों के निजी हितों का वह सबसे बड़ा शिकार होता रहा है। यह सिलसिला 1948 से लागू है जब भारत संयुक्त राष्ट्र में कश्मीर मुद्दे को लेकर पहुंचा था।
पाकिस्तान के हमले के बारे में भारत की शिकायत पर सुरक्षा परिषद ने प्रतिक्रिया नहीं दी। अलबत्ता, ब्रिटेन और अमेरिका कश्मीर मुद्दे पर बिना भारत की सलाह के पाकिस्तान की जवाबी शिकायत को अनुमति देने में सबसे आगे रहे। इसने पाकिस्तान को मौका दिया कि वह भारत के हिस्से वाले क्षेत्र को अपने पास बनाए रखे।
पाकिस्तान और चीन दोनों ने जम्मू-कश्मीर के कई इलाकों में अवैध गतिविधियां जारी रखीं। लेकिन, पश्चिम ने भारत का कभी समर्थन नहीं किया। न ही उसने चीन की ही वैसी निंदा की है जैसी वह यूक्रेन को लेकर रूस की कर रहा है। यहां तक लद्दाख में जब चीन और भारत के सैनिकों के बीच झड़प हुई तो भी पश्चिमी देश चीन को खफा करने से बचे। भारत को संतुलन बनाने के लिए कूटनीतिक रास्ता निकालना पड़ा।
रूस ने कई बार दिया साथ
अब जरा बात रूस की कर लेते हैं। वह 70 के दशक से हमारा सबसे भरोसेमंद दोस्त रहा है। यही कारण है कि भारत के रक्षा संबंध रूस के साथ बहुत गहरे हैं। वह करीब 70 फीसदी हथियार रूस से खरीदता रहा है। इतना ही नहीं रूस ने संयुक्त राष्ट्र में कश्मीर पर भारत की पोजिशन का हमेशा समर्थन किया है। भारत भी जवाब में उसके साथ रहा है। 1979-80 में जब अफगानिस्तान पर रूस ने हमला किया था तब तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार ने उसकी सैन्य कार्रवाई का बचाव किया था।
भारत के इस स्टैंड के जोखिम
तटस्थ रहने के जोखिम भी हैं। इस रुख के कारण दुनिया आज भारत को रूस के साथ खड़ा देख रही है। पुतिन ने जो किया है, उस स्टैंड पर मुहर लगा रही है। इस तरह यह चीन की अरुणाचल प्रदेश में आक्रामकता को सही ठहरा देता है। वहीं, पाकिस्तान भी कश्मीर घाटी में अलगाववादियों को हवा देता है। यह उसकी कार्रवाइयों को भी जायज कर देता है।