शिवलिंग के खंडित हो जाने के बाद भी पिछले 150 सालों से हो रही है निरंतर पूजा, जानें रहस्य!
सावन के इस पवित्र महीने में सभी लोग भगवान शंकर की आराधना करते हैं। हिन्दू धर्म में भगवान शिव को सृजन और विनाश दोनों का देवता माना जाता है। जब यह प्रसन्न होते हैं तो अपने भक्तों की हर इच्छा को पूरी कर देते हैं, लेकिन जब ये क्रोधित हो जाते हैं तो इसके क्रोध से कोई नहीं बचा सकता है। भगवान शिव की महिमा अपरम्पार है। भगवान शिव के भारत में लाखों मंदिर होंगे, लेकिन कुछ मंदिर अपनी ख़ासियत की वजह से प्रसिद्ध हैं। damaged shivling devshal temple.
खंडित प्रतिमा की पूजा करना होता है अशुभ:
यह तो आप जानते ही हैं कि हिन्दू धर्म में खंडित प्रतिमा की पूजा नहीं की जाती है। खंडित हो जाने के बाद प्रतिमा अपवित्र हो जाती है। लेकिन आज हम आपको देश के एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जहाँ पिछले 150 सालों से लगातार खंडित प्रतिमा की पूजा की जाती है। ऐसा क्यों किया जाता है, आज हम आपको उसी के बारे में बताने जा रहे हैं। यक़ीनन उस शिवालय का रहस्य जानकर आप दंग हो जायेंगे।
रेलवे लाइन की खुदाई के दौरान मिला शिवलिंग:
झारखण्ड में गोइलकेरा नाम की एक जगह है। वहाँ पर एक शिव मंदिर है. जो लगभग 150 साल पुराना है। इस मंदिर में जो शिवलिंग रखा है, वह दो टुकड़ों में है, लेकिन लोग उसकी पूजा श्रद्धा से करते हैं। यह पिछले 150 सालों से किया जा रहा है। कहा जाता है कि आजादी से पहले झारखण्ड के गोइलकेरा में रेलवे लाइन बिछाने का काम चल रहा था। । खुदाई के समय वहाँ स्थानीय लोगों को एक शिवलिंग मिला।
देवशाल मंदिर में स्थापित है शिवलिंग का एक टुकड़ा:
खुदाई में शिवलिंग मिलने पर स्थानीय लोग आश्चर्यचकित हो गए, जबकि अंग्रेजों को इसके बारे में कुछ पता ही नहीं था। उन्हें यह बस एक साधारण पत्थर ही दिख रहा था। शिवलिंग मिलने के बाद मजदूरों ने खुदाई का काम बंद कर दिया। वहाँ उपस्थित एक अंग्रेज इंजिनियर ने शिवलिंग को एक पत्थर मानते हुए एक जोरदार प्रहार किया, जिससे शिवलिंग के दो टुकड़े हो गए। अंग्रेज इंजिनियर शाम को घर लौट रहा था, तो रास्ते में उसकी मौत हो गयी।
इस घटना के बाद भारतीय मजदूरों और ग्रामीणों ने मिलकर रेलवे लाइन की खुदाई का काम किसी और से करने की माँग की। उस समय तो अंग्रेज अधिकारी नहीं मानें, लेकिन बाद में रेलवे लाइन की दिशा को बदल दिया गया। खुदाई केदौरान जहाँ शिवलिंग मिला था, आज वहाँ देवशाल मंदिर है। मंदिर के गर्भगृह में आज भी उस खंडित शिवलिंग के एक टुकड़ा स्थापित है, जबकि इसका दूसरा टुकड़ा यहाँ से लगभग 2 किमी दूर रतनपुर पहाड़ी पर ग्राम देवी ‘माँ पाउड़ी’ के साथ स्थापित किया गया है।