जानिए क्यों भगवान गणेश को करने पड़े दो विवाह, बड़ी रोचक है ये पौराणिक कथा
हिन्दू धर्म में प्रचलित मान्यताओं के आधार पर सभी देवी- देवताओं में से भगवान गणेश को प्रथम पूज्यनीय माना हैं। इतना ही नहीं हर शुभ कार्य से पहले भगवान गणेश (Lord Ganesha) को पूजा जाता है। शादी विवाह हो या कोई भी अनुष्ठान, सभी देवताओं में भगवान गणेश प्रथम पूज्यनीय होते हैं।
इतना ही नहीं कहा जाता है कि हर शुभ काम से पहले भगवान गणेश को पूजने से सारे काम सफल होते हैं और किसी भी प्रकार की बाधा जीवन में न आएं, इसलिए इन्हें कोई दुखहर्ता तो कोई विघ्नहर्ता भी कहता है। आइए ऐसे में आज हम आपको बताते हैं कि आख़िर श्री गणेश जी ने दो शादियां क्यों की थी…
दरअसल बता दें कि एक समय तो भगवान गणेश जी ब्रम्हचारी रहना चाहते थे। लेकिन उनका यह संकल्प टूट गया और उनके एक नहीं बल्कि दो-दो विवाह हुए। मालूम हो कि कथाओं में उल्लेख मिलता है कि भगवान गणेश की बनावट और उनके गज के चेहरे के चलते कोई उनसे विवाह करने को तैयार नहीं था। वहीं कुछ जगह इस बात का भी जिक्र है कि गणेश जी ब्रम्हचारी रहना चाहते थे।
लेकिन बाद में वो रिद्धि और सिद्धि के पति परमेश्वर बनें। बता दें कि पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान परशुराम ने क्रोध में आकर एक बार गणेश जी का एक दांत फरसे से काट दिया था।
इसी के बाद गणेश जी को एक एकदंत और वक्रतुण्ड नामों से संबोधित किया जाने लगा, लेकिन उनके इसी एक दांत के कारण उनसे कोई भी विवाह करने को तैयार नहीं था। ऐसे में नाराज होकर श्री गणेश अन्य देवताओं के विवाह में बाधा पहुंचाते थे।
इतना ही नहीं किवदंती यह भी प्रचलित है कि एक ‘धर्मात्मज’ नाम का राजा हुआ करता था, जिसकी कन्या तुलसी थी और वो अपने यौन अवस्था में विवाह की इच्छा लेकर तीर्थ यात्रा पर निकली थी। इसी दौरान ध्यान में लीन गणेश जी दिखाई पड़े, चंदन और पीताम्बर से लिपटे हुए गणेश जी को देखकर तुलसी के मन में विवाह का विचार आया और उन्होंने गणेश जी की तपस्या भंग करके विवाह का प्रस्ताव रखा।
लेकिन तुलसी के इस प्रस्ताव को गणेश जी ने नकार दिया। जिसके बाद तुलसी ने भी क्रोध में आकर गणेश जी को श्राप दिया। जिसके बाद गणेश जी ने भी कहा तुम्हारा विवाह एक असुर शंखचूर्ण (जालंधर) से होगा। राक्षस की पत्नी होने का श्राप सुनकर तुलसी जी ने गणेश जी से माफी मांगी।
वहीं आख़िर में बताते चलें कि एक कथा और प्रचलित है। जिसके अनुसार गणेश जी ने रिद्धि और सिद्धि को एक राक्षस से बचाया था जिसके बाद उनके पिता भगवान शिव के पास गणेश जी का रिश्ता लेकर गए थे और ऐसे में भगवान गणेशजी का दो विवाह संपन्न हुआ।