यक़ीनन इस मंदिर के रहस्य के बारे में जानकर हो जायेंगे हैरान, जाने क्या है रहस्य.. देखें वीडियो!
भारत एक रहस्यों से भरा हुआ देश है। यहाँ ऐसी कई चीजें हैं, जिन्हें देखने के बाद विदेशी क्या यहाँ के लोगों की भी आँखे आश्चर्य से फटी की फटी रह जाती हैं। कुछ ऐसी चीजें हैं, जिनके रहस्य के बारे में आजतक कोई नहीं जान पाया है। हालांकि लोगों ने जानने का बहुत प्रयत्न किया लेकिन आजतक उन रहस्यों से कोई पर्दा नहीं उठा पाया है। आज भी वो एक रहस्य ही बने हुए हैं। यह सभी लोग जानते हैं कि भारत हिन्दू धर्म का केंद्र रहा है। भारत में हिन्दू धर्म मानने वाले लोगों की संख्या ज्यादा है। हिन्दू धर्म में मंदिर में पूजा करने का चलन है। इसलिए प्राचीनकाल से ही यहाँ कई मंदिरों का निर्माण कार्य हुआ है। आज भी नए-नए मंदिरों का निर्माण किया जाता है। लेकिन यहाँ हम भारत के पुराने मंदिरों के बारे में बात करेंगे। mysterious temple kanpur
मंदिर का रहस्य जानकर हो जायेंगे हैरान:
भारत में कई ऐसे मंदिर हैं, जिनके निर्माण की तिथि कोई नहीं जनता है। वह बहुत पुराने हैं। कई पुराने मंदिर रहस्य से भरे हुए हैं। आज भी लोग उन मंदिरों के रहस्यों को सुलझाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन अभी तक कोई कामयाब नहीं हुआ है। आज हम आपको एक ऐसे ही रहस्यमयी मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसके रहस्य के बारे में जानकर आपको काफी हैरानी होने वाली है। जी हाँ हम जिस मंदिर की बात कर रहे हैं वह उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले में स्थित है।
बारिश से 7 दिन पहले ही मंदिर की उपरी छत से टपकने लगता है पानी:
यह मंदिर भगवान जगन्नाथ का है। यह मंदिर अपनी एक ख़ास विशेषता की वजह से जाना जाता है। इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यह मंदिर बारिश होने से 7 दिन पहले की इसकी सूचना दे देता है। यह चमत्कारी मंदिर कानपुर के भीतरी गाँव विकास खंड से 3 किमी की दूरी पर स्थित है। इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि बारिश होने से 7 दिन पहले ही इस मंदिर के उपरी छत से बारिश की कुछ बूंदे अपने आप ही टपकने लगती हैं।
मंदिर के निर्माण के बारे में पुरातत्व विभाग भी नहीं जुटा पाया सही जानकारी:
इस मंदिर में ऐसा क्यों होता है, इसे जानने के लिए कई बार प्रयास किया गया। इस मंदिर का निर्माण कब हुआ था इसके बारे में भी पुरातत्व विभाग कोई सही जानकारी नहीं जुटा पाया है। इस मंदिर के बारे में यही पता चल पाया है कि मंदिर का अंतिम जीर्णोद्धार 11वीं सदी में किया गया था। इस मंदिर की वजह से यहाँ के किसानों को इससे काफी सहायता मिलती है।