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10 लाख पौधे लगाकर बना दिया खुद का जंगल, अब रेलवे को मुआवजा देने में छूट रहा पसीना

दुनियाभर की लगभग सभी प्रजातियां आज के दौर में ग्लोबल वॉर्मिंग (Global Warming) की चपेट में है। वहीं वैज्ञानिक भी आए दिन इस विषय की गम्भीरता के बारे में चेतावनी देते रहते हैं, लेकिन फिर भी अधिकांश जनसंख्या और देश इस विषय की गम्भीरता समझने के लिए आज भी तैयार नहीं।

Anil Joshi Forest

हाँ बशर्तें कि कुछ लोग ऐसे हैं, जो धरती की हालत पर उठ रहे सवालों के बीच जलवायु परिवर्तन (Climate Change) का मुकाबला करने की कोशिश कर रहे हैं और कहीं न कहीं इसी सोच के साथ कमाई की आस में उत्तराखंड (Uttarakhand) के एक पूर्व सरकारी अधिकारी की मेहनत रंग लाई है। जिसके बाद अब एक बेशकीमती जंगल तैयार हो गया है। आइए आज हम आपको उत्तराखंड में नौकरी छोड़ चुके इसी अफसर की कहानी बताते हैं।

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बता दें कि यह कहानी है उत्तराखंड के एक रिटायर्ड जिला कृषि अफसर की। जिनकी मेहनत ने रेलवे का पसीना छुड़ाकर रखा है। अब आप ऐसे में सोच में पड़ रहे होंगे कि अगर किसी शख्स ने जंगल बसाया। फिर इसमें किसी को आपत्ति कैसी और रेलवे का पसीना इस अधिकारी ने क्यों छुड़ा रखा?

तो जवाब यह है कि दरअसल, उस रिटायर्ड अफसर ने खाली पड़ी जमीन पर इतने फलदार पौधे उगा दिए हैं कि रेलवे को अगर नई लाइन बिछाने के लिए उन्हें काटना पड़े तो 400 करोड़ रुपये मुआवजा देना होगा।

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अब ऐसे में आप समझ सकते हैं कि व्यक्तिगत तौर पर यह देश में मुआवजे की संभवतः सबसे बड़ी रकम होगी। इसलिए अब यह मामला मुआवजे के लिए बने ट्रिब्यूनल में पहुंच गया है और रेल लाइन का काम ठप पड़ा हुआ है।

अधिकारी ने उपजाऊ जमीन पर लगाएं दस लाख पौधे…

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जानकारी के लिए बता दें कि सामान्य उपजाऊ जमीन (common fertile land) जंगल में बदली तो फलों की पैदावार के हिसाब से इतना फली फूली कि जिससे भारतीय रेलवे (Indian Railways) के दिग्गजों की सांसे फूल गईं। जी हां एक रेल प्रोजेक्ट (rail project) को लेकर जब इस जमीन की कीमत का हिसाब किताब लगाया गया।

तो ऐसे में रेलवे के कर्मचारियों को कुछ समझ नहीं आया और इसके मुआवजा राशि को सुनकर वो भौचक्के रह गए। गौरतलब हो कि यहां बात अनिल जोशी की मेहनत से जुड़ी हुई है।

जिन्होंने ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल लाइन के रूट पर 10 लाख पौधे लगाकर जंगल बसा दिया है। ऐसे में रेलवे को अगर कोई विकास कार्य करना है या फिर रेलवे को नई लाइन बिछानी है तो उन्हें इन पेड़ों को काटना होगा और एक बड़े पैमाने पर मुआवजा देना होगा।

मुआवजे की वजह से ठप पड़ा रेलवे का विकास कार्य…

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वहीं आज से तकरीबन 10 साल पहले भारतीय रेलवे (Indian Railway) ने ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल लाइन के लिए सर्वे के दौरान मथेला में एक बड़ा रेलवे स्टेशन बनाने का फैसला किया था और इस लाइन के बीच में पूर्व सरकारी अधिकारी अनिल किशोर जोशी (Anil Kishore Joshi) की जमीन भी आ गई।

जिन्होंने 34 लोगों की उपजाऊ भूमि को बाकायदा एक एग्रीमेंट (agreement) के तहत लेकर वहां सात लाख शहतूत और तीन लाख अन्य फलों के पौधे लगाए थे। ऐसे में अब चूंकि वो सब पेड़ बन चुके हैं। जिसके कारण अब रेलवे का दस साल पुराना महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट अधर में लटक गया है।

क्या आ रही है दिक्कतें…

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बता दें कि सामान्यतया जब रेलवे के प्रोजेक्ट के बीच में कोई जमीन आदि पड़ती है। तो उसे मुआवजा देकर रेलवे अपने कब्जे में कर लेती है, लेकिन यहां मामला थोड़ा पेंचीदा हो गया है। दरअसल जब जोशी की जमीन में लगें पेड़ो की गिनती हुई तो उसमें लगभग 7 लाख से ज्यादा पेड़ शहतूत के और बाकी 3 लाख में कुछ संतरे, आम और अन्य फलों के पेड़ है।

ऐसे में नियम के अनुसार जिसकी जमीन होती है। उसे मुआवजा दिया जाता है और नियमों के तहत एक फलदार पेड़ खासकर संतरे के प्लांट की कीमत 2196 रुपये बनती है इस तरह से उनके बगीचे का मुआवजा तकरीबन चार सौ करोड़ बैठता है। लेकिन यहाँ बात यह फंस गई कि रेलवे शहतूत को फलदार वृक्ष मनाने को तैयार नहीं और प्रति पेड़ उसके साढ़े चार रुपये देने की बात कही। ऐसे में अनिल जोशी, जो जंगल के मालिक है।

उन्होंने हाई कोर्ट जाने की तैयारी कर ली और सुनवाई के दौरान जज ने उद्यान विभाग (Horticulture Department) से पूछा कि क्या शहतूत के पेड़ को फलदार वृक्ष माना जा सकता है तो विभाग ने उसे फलदार वृक्ष माना। ऐसे में अब शहतूत का मुआवजा भी संतरे के बराबर मांगा जा रहा है और ऐसे में मामला ट्राइब्यूनल में पहुँच गया है और इसमें अभी तक जज की नियुक्ति नही हुई। जिस कारण सुनवाई नहीं हो पा रही है और रेलवे का काम भी अधर में लटक गया है।

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