चारा घोटाले के एक और मामले में लालू यादव दोषी करार, जाएंगे जेल, जानिए पूरी कहानी
स्कूटर से गाय-भैंस ढोने की लालू की एक पुरानी स्क्रिप्ट हुई फेल, अब इस मामले में बुढ़ापे में जाएंगे जेल
अपने विरले अंदाज की वजह से राजनीति में बहुत कम लोग ही पहचान बना पाते हैं और उसी में से एक राजद प्रमुख रहें लालू प्रसाद यादव हैं। मालूम हो कि जब लालू यादव पटना के बेऊर जेल से 9 जनवरी 1999 को जमानत पर निकले थे, तो हाथी पर बैठकर अपने निवास स्थान पहुंचे थे। वहीं, अब धीरे-धीरे लालू परिवार में खुशियां लौट रही थी। लेकिन अब एक बार फिर बुढ़ापे के दिन में लालू प्रसाद यादव को जेल की हवा खानी पड़ सकती है।
गौरतलब हो कि 950 करोड़ रुपए के देश के बहुचर्चित चारा घोटाले के सबसे बड़े (डोरंडा ट्रेजरी से 139.35 करोड़ रुपए के गबन) केस में मंगलवार को फैसला आ गया है और सीबीआई (CBI) की विशेष अदालत ने आरजेडी (RJD) सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव सहित 75 आरोपियों को दोषी करार दिया है। वहीं, 24 लोगों को बरी भी किया गया। इसके अलावा सजा का ऐलान अब 21 फरवरी को होगा। आरजेडी (RJD) सुप्रीमो को कोर्ट की ओर से दोषी करार देते ही पुलिस ने उन्हें हिरासत में ले लिया और इसके बाद उनके वकील ने जेल न भेजकर रिम्स में भेजने के लिए आवेदन दिया है।
इसके अलावा इस मामले में बचाव पक्ष के अधिवक्ता संजय कुमार ने बताया कि इस मामले में अदालत ने दोषी ठहराए गए लोगों में से 36 को तीन-तीन साल की सजा सुनाई है। वहीं लालू प्रसाद यादव को दोषी ठहराया गया है, लेकिन अभी उनकी सजा की अवधि निश्चित नहीं की गई है। मालूम हो कि लालू यादव के वकील प्रभात कुमार ने बताया कि लालू यादव की सजा पर 21 फरवरी को सुनवाई होगी। वहीं उन्होंने कहा कि हमने गुजारिश की है लालू प्रसाद यादव की तबियत ठीक नहीं है। ऐसे में उन्हें रिम्स में शिफ्ट किया जाए।
आखिर क्या है डोरंडा ट्रेजरी घोटाला?…
बता दें कि डोरंडा ट्रेजरी से 139.35 करोड़ रुपए की अवैध निकासी के इस मामले में पशुओं को फर्जी रूप से स्कूटर पर ढोने की कहानी है और यह उस दरमियान देश का पहला मामला माना गया था। जब बाइक और स्कूटर पर पशुओं को ढोने की बात निकलकर सामने आई थी। वहीं इस मामले में सीबीआई (CBI) ने जांच में पाया था कि अफसरों और नेताओं ने मिलकर फर्जीवाड़े का अनोखा फॉमूर्ला तैयार किया था।
जिसके माध्यम से 400 सांड़ को हरियाणा और दिल्ली से स्कूटर और मोटरसाइकिल पर रांची तक ढोया गया था, ताकि बिहार में अच्छी नस्ल की गाय और भैंसें पैदा की जा सकें। ऐसे में पशुपालन विभाग ने 1990-92 के दौरान 2,35, 250 रुपए में 50 सांड़, 14, 04,825 रुपए में 163 सांड़ और 65 बछिया खरीदी थी। इसके अलावा विभाग ने इस दौरान क्रॉस ब्रीड बछिया और भैंस की खरीद पर 84,93,900 रुपए का भुगतान मुर्रा लाइव स्टॉक दिल्ली के दिवंगत प्रोपराइटर विजय मलिक को की थी।
15 साल में दर्ज हुए 575 गवाहों के बयान…
वहीं इस मामले में 575 गवाहों का बयान दर्ज कराने में सीबीआई (CBI) को 15 साल लग गए। इसके अलावा बता दें कि 99 आरोपियों में 53 आरोपी आपूर्तिकर्ता हैं, जबकि 33 आरोपी पशुपालन विभाग के तत्कालीन अधिकारी और कर्मचारी हैं। वहीं, 6 आरोपी तत्कालीन कोषागार पदाधिकारी हैं। जबकि मामले के 6 आरोपी ऐसे हैं जिन्हें सीबीआई (CBI) आज तक नहीं खोज सकी है।
कब-कब लालू यादव ने की जेल यात्रा…
बता दें कि चारा घोटाले में लालू यादव साल 1997 से ही जेल का चक्कर लगा रहे हैं और पहली बार वो 30 जुलाई 1997 को जेल गए थे। तब उन्हे 135 दिन जेल में रहना पड़ा था। उसके बाद दूसरी बार लालू यादव 28 अक्टूबर, 1998 को 73 दिन के लिए जेल गए थे। वहीं तीसरी बार लालू को जेल 5 अप्रैल 2000 को हुई थी, हालांकि उस समय वे 11 दिन में ही बाहर आ गए थे।
चौथी बार लालू यादव को जेल 28 नवंबर 2000 को आय से अधिक संपत्ति के मामले में हुई थी और एक दिन बाद वे बाहर आए थे। वहीं 3 अक्टूबर 2013 को चारा घोटाले के दूसरे मामले में दोषी करार दिए जाने पर 70 दिन लालू ने फिर से जेल में काटा था और 23 दिसंबर 2017 को चारा घोटाले के तीसरे मामले में उन्हें सजा हुई थी। उसके बाद भी ये सिलसिला नहीं रुका और 24 मार्च 2018 को दुमका कोषागार से जुड़े चौथे मामले में भी इन्हें सजा हुई, जिसके बाद करीब तीन साल बाद पिछले साल अप्रैल में लालू यादव जेल से बाहर आए थे, लेकिन फिर से उन्हें अब जेल जाना पड़ सकता है।
चारा घोटाले में श्री लालू प्रसाद की सजा पर श्री सुशील कुमार मोदी की प्रतिक्रिया pic.twitter.com/njUloSUpOx
— Sushil Kumar Modi (@SushilModi) February 15, 2022
वहीं आख़िर में बताते चलें कि लालू यादव के दोषी करार दिए जाने पर बिहार के पूर्व डिप्टी सीएम और बीजेपी नेता सुशील कुमार मोदी ने कहा कि, “इस मामले को हमने ही उजागर किया था, पटना हाईकोर्ट की निगरानी में अगर जांच न होती तो ये कभी सामने नहीं आता। ये मामला 139 करोड़ रुपए का था। ये फैसला स्वागत योग्य है और शायद इसी को कहते हैं जैसी करनी वैसी भरनी।”