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कहानी एक ऐसी खूबसूरत रानी की, जिन्होंने कुतुबमीनार से कूदकर दे दी थी

राजा- रानी से जुडी कई कहानियां आपने बचपन में अपनी दादी-नानी से सुनी होगी तो कुछ कहानियां स्कूली दिनों में आपने किताबों में भी पढ़ी होगी। इतना ही नहीं आपने किताबों में ही शायद कुतुबमीनार के बारें में पढ़ा होगा और कभी दिल्ली गए होंगे तो उसे नजदीक से देखा भी होगा।

queen tara devi

ऐसे में भले ही कुतुबमीनार गुलाम भारत की निशानी हो, लेकिन उसकी ऊंचाई देखते ही बनती है और फिर उस दौरान की स्थापत्य कला पर हमें एक अलग प्रकार का ही नाज होता है, लेकिन यहाँ हम आपको न तो कुतुबमीनार की महिमा बताने जा रहें और न ही उस दौरान की स्थापत्य कला के बारें में। बल्कि हम एक ऐसी कहानी की चर्चा करने वाले जो एक रानी की मौत और कुतुबमीनार के आसपास ही रची-बसी है।

बता दें कि यह कहानी है एक ऐसी रानी की। जिसके बारें में कहा जाता है कि उसने दिल्ली के कुतुबमीनार से कूदकर जान दे दी थी। इतना ही नहीं इस रानी के साथ दो पालतू कुत्तों ने भी छलांग लगाई थी। आइए ऐसे में समझें यह पूरी कहानी…

queen tara devi

बता दें कि आज भले ही कुतुबमीनार पर्यटन का महत्वपूर्ण स्थान है और यहाँ देश-विदेश से लोग आते हैं, लेकिन एक समय यहाँ एक रानी ने कूदकर अपनी जान दे दी थी और वो रानी थी तारा देवी।

मालूम हो कि आज से तकरीबन 75 साल पहले यानी जब लगभग देश आज़ाद होने की कगार पर था। तभी कपूरथला की रानी तारा देवी ने कुतुब मीनार से कूदकर अपनी जान दे दी और उसके बाद तो मानों जैसे हड़कंप मच गया था। वहीं रानी ने अकेले नहीं बल्कि अपने दो पालतू कुत्तों के साथ छलांग लगाई थी।

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यह वाकया है साल 1946 का। जब रानी तारा देवी अपने 2 पालतू कुत्तों को लेकर दिल्ली आई हुई थीं और उस दौरान वो तकरीबन 1 महीने दिल्ली में रुकी भी, लेकिन एक दिन उन्होंने कुतुब मीनार घूमने का मन बनाया और 9 दिसंबर 1946 को रानी ने एक टैक्सी बुक की और अपने कुत्तों को लेकर कुतुब मीनार जा पहुंचीं।

यहां उन्होंने अपना पर्स ड्राइवर को थमाया और कुत्तों को लेकर कुतुब मीनार के ऊपर जाने लगी। वहीं कुतुब मीनार के आखिरी छोर पर पहुंचकर उन्होंने वहां से छलांग लगा दी और उनकी मौत के बाद जब उनका बैग खौलकर देखा गया तो पता चला कि वो कपूरथला की रानी तारा देवी थीं।

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गौरतलब हो कि रानी तारा देवी का असली नाम ‘यूजेनिया मारिया ग्रोसुपोवै’ था और वो चेक गणराज्य की रहने वाली थीं। उनकी शादी एक समय कपूरथला के महाराजा जगजीत सिंह से हुई थी और वो महाराजा जगजीत सिंह की छठवीं पत्नी थीं। मालूम हो कि रानी की इस तरीके से दर्दनाक मौत को देखकर महाराजा जगजीत सिंह को गहरा सदमा लगा और 3 साल बाद उनकी भी 1949 में मौत हो गई।

वैसे यहाँ पर आपकी दिलचस्पी इस बात में जरूर होगी कि आखिर ऐसा क्या हो गया था कि एक रानी को कुतुबमीनार से कूदकर अपनी जान गंवानी पड़ी। तो ऐसे में जानकारी के मुताबिक बता दें कि उस दौरान की मीडिया रिपोर्ट्स कहती हैं कि रानी तारा देवी इस शादी से

खुश नहीं थीं और शादी के शुरुआती दिनों में दोनों के बीच तो सब कुछ सही था, लेकिन उम्र का अंतर होने के कारण समय के साथ दोनों के बीच दूरी पैदा होने लगी थी। इतना ही नहीं कहा यह भी जाता है कि महाराजा और रानी ने साल 1945 में यानी शादी के तीन साल बाद ही तलाक ले लिया था और अलग रहने लगे थे। जिसकी वजह से उन्होंने कूदकर आत्महत्या की थी।

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वहीं आखिर में बताते चलें कि महाराजा जगजीत की मुलाकात रानी तारा देवी से फ्रांस में हुई थी और वो रानी की खूबसूरती पर ऐसे मोहित हुए की उन्हें अपनी छठवीं रानी बनाने का सोचने लगें और फिर राजा ने उनसे शादी करने का प्रस्ताव रखा। जिसके बाद दोनों ने साल 1942 में भारत के कपूरथला में सिख रीति-रिवाजों से शादी की थी और शादी के बाद उनका नाम यूजेनिया मारिया ग्रोसुपोवै से बदल कर रानी तारा देवी रखा गया था।

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