‘ऐ मेरे वतन के लोगों,जरा याद करो कुर्बानी..’ लता मंगेशकर को शो जो भारत के इतिहास में दर्ज हो गया
27 जनवरी, 1963 को, दिल्ली में गणतंत्र दिवस समारोह से जुड़े कार्यक्रम के दौरान गायिका लता मंगेशकर का एक शो हुआ था। शो से पहले सब कुछ सामान्य था लेकिन जब शो शुरू हुआ तो लता मंगेशकर ने अपनी आवाज से राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री से लेकर वहां मौजूद हर शख्स के दिल को पिघला दिया। इस शो जुड़ी कहानियां इतिहास बन कर स्वर्ण अक्षरों में दर्ज हो गईं।
इस शो के दौरान कैसे महबूब साहब ने लता का परिचय नेहरू से कराया? “ऐ मेरे वतन के लोगों…” सुन कैसे पंडित नेहरू रोये? तत्कालीन राष्ट्रपति एस. राधाकृष्णन, प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, दिलीप कुमार जैसे दिग्गजों के बीच लता कैसा महसूस कर रही थीं? ये सब ऐसी कहानियां है जिसे देश को प्यार करने वाला हर शख्स सुनना चाहेगा, जानना चाहगा।
इस कार्यक्रम की शुरुआत लता मंगेशकर ने अभिनेता दिलीप कुमार की फरमाइश पर ‘अल्लाह तेरो नाम’ गीत से की। इसके बाद लता ने ‘ऐ मेरे वतन के लोगों गाया’. इसी गाने के साथ साथ इतिहास बनने की शुरुआत हो गई।
भावविभोर पंडित नेहरू ने लता को बुलाया
कार्यक्रम के बाद लता मंगेशकर ने पत्रकार सुभाष के झा के साथ बातचीत में स्वीकार किया था कि, “इन दो गीतों के बाद मैं एक कप कॉफी के साथ रिलैक्स करने के लिए मंच के पीछे चली गई। मैं अब तक इस बात से अनजान थी कि इस गीत ने कितना गहरा असर डाला है.” अचानक लता जी कान में आवाज आई कि महबूब खान उन्हें बुला रहे हैं। लता ने कहा; “वो मेरे पास आए और मेरा हाथ पकड़ कर बोले, ‘चलो पंडित जी ने बुलाया है, मुझे हैरानी हुई कि वो मुझसे क्यों मिलना चाहते हैं?”
लता ने इस पत्रकार को बताया था कि ‘जब मैं वहां पहुंची तो पंडित जी यानी कि पीएम नेहरू, राधाकृष्णन जी, इंदिरा जी समेत सभी मेरा अभिवादन करने के लिए खड़े हो गए’. वहां ले जाकर महबूब खान साहब ने कहा, ‘ये है हमारी लता, आपको कैसा लगा इसका गाना?’ इस पर पंडित जी ने कहा, ‘बहुत अच्छा…मेरे आंखों में पानी आ गया!’
जब पंडित नेहरू के घर पहुंची लता दीदी
27 जनवरी के इस कार्यक्रम के बाद में नेहरू ने लता मंगेशकर को अपने निवास दिल्ली स्थित तीन मूर्ति भवन पर चाय के लिए बुलाया। इस मौके को याद कर लता ने कहा था, “बाकी लोग पंडित जी से बड़ी उत्सुकता से बातें कर रहे थे, मैं एक अकेले एक कोने में खड़ी थी, अपनी मौजूदगी का एहसास कराने में मुझे संकोच हो रहा था। अचानक मैंने पंडित जी को कहते हुए सुना- लता कहां हैं? मैं जहां खड़ी थी वहीं रही। तभी मिसेज इंदिरा.. गांधी आईं, उन्होंने मेरा हाथ पकड़ा और कहा, मैं चाहती हूं कि आप अपने दो नन्हें फैंस से मिलें। उन्होंने मेरी भेंट छोटे-छोटे बच्चों राजीव और संजय गांधी से कराई। उन्होंने मुझे नमस्ते किया और भाग गए.”
नेहरू जी ने लता जी के साथ तस्वीर खिंचाई
लता ने आगे बताया कि तभी पंडित जी ने फिर से मेरे बारे में पूछा. महबूब खान साब आए और मुझे पंडित जी के पास गए। पंडित जी ने मुझसे पूछा-“क्या तुम बंबई जाकर फिर से ऐ मेरे वतन के लोगों गा रही हो…” मैंने उत्तर दिया, “नहीं, यह एक ही बार की बात थी।” वे मेरे साथ साथ एक तस्वीर खिंचवाना चाहते थे। हमने यादगार के तौर पर एक फोटो खिंचवाई। इसके बाद में चुपचाप वहां से निकल गई।
लता ने कहा था कि मुझे वहां से जल्दी में निकलना पड़ा क्योंकि उसी दिन कोल्हापुर में मेरी बहन मीना की शादी हो रही थी। अगले दिन जब मैं अपनी दोस्त नलिनी के साथ मुंबई लौटी तो मुझे अंदाजा नहीं था था कि ये गीत (ऐ मेरे वतन के लोगों…) पहले ही धूम मचा चुका था। जब हम मुंबई पहुंचे, तो पूरे शहर और मीडिया में, इस गीत ने दिल्ली में जो असर छोड़ा था, कैसे पंडित जी की आंखें भर आई थी, की चर्चा थी।
‘ऐ मेरे वतन के लोगों..’गीत का ऐसे हुआ जन्म
लता द्वारा गाये गए इस भावुक गीत के. शब्द कवि प्रदीप के कलम के भावपूर्ण उद्गार थे। इस गीत में संगीतकार सी रामचंद्र की मर्मस्पर्शी धुन ने इसे और भी प्रभावी और करुण बना दिया था। पूर्व आयकर कमिश्नर और स्तंभकार अजय मनकोटिया के अनुसार इस गीत की रचना से भी कई इतेफाक जुड़े हैं। कवि प्रदीप तब मुंबई माहिम बीच के किनारे टहल रहे थे।
तभी उनके मन में कुछ ख्याल आया, कुछ शब्द उभरे। वो लिखना चाहते थे, लेकिन उनके पास न कलम थी, न ही कागज. उन्होंने पास ही टहल रहे एक मुसाफिर से कलम मांगी। सिगरेट के पैकेट को फाड़ा और उस पर उलटकर लिखा, “कोई सिख…कोई जाट मराठा, कोई गोरखा मद्रासी…सरहद पर मरनेवाला हर वीर था भारतवासी। जो खून गिरा पर्वत पर, वो खून था हिन्दुस्तानी, जो शहीद हुए हैं उनकी जरा याद करो कुर्बानी…”