विक्रम बत्रा के शहादत से पहले मां को हो गया था मौत का अंदेशा, बेटे ने कहा था – मज़ा आ रहा है
कारगिल के योद्धा विक्रम बत्रा की अद्भुत कहानी, उनकी मां की ज़ुबानी। मां का कहना, "बेटे को बहुत पसंद था ..'
साल 1999 में लड़ा गया कारगिल का युद्ध आज भी सबके जेहन में है और होना भी चाहिए, क्योंकि यह युद्ध था ही अपने आन- बान और सम्मान की बात। मालूम हो कि इसी युद्ध में कैप्टन विक्रम बत्रा ने अदम्य साहस दिखाते हुए चोटी- 5140 पर फतह करने में अहम भूमिका निभाई थी। इतना ही नहीं मालूम हो कि उन्होंने न केवल पाकिस्तान के 7 जवानों को ढेर किया था बल्कि बंकर भी नष्ट कर दिए थे। वहीं इसके बाद प्वाइंट 4875 के फतह के दौरान, वह वीरतापूर्वक लड़ते हुए 7 जुलाई 1999 को शहीद हो गए।
आइए ऐसे में आज हम आपको बताते हैं विक्रम बत्रा की कहानी और उनकी मां की ज़ुबानी…
बता दें कि उस दिन का ज़िक्र करते हुए एक बार विक्रम बत्रा की मां कहती है कि सुबह से ही अजीब सी बेचैनी थी और दोपहर तक मैं स्कूल में ही फूट-फूटकर रोने लगी। वहीं मेरे साथी टीचर्स ने आंसू पोंछते हुए कहा, कुछ नहीं होगा आपके बेटे विक्रम को, वह दुश्मनों को धूल चटाकर आएगा। लेकिन जैसे ही मैं घर पहुंची, सेना के दो ऑफिसर्स ने शहादत की खबर दी और उस पल मुझे बहुत ही गहरा धक्का लगा था।
इतना ही नहीं मालूम हो कि विक्रम बत्रा की मां के मुताबिक उन्हें अपने जवान बेटा पर गर्व है कि उनके रहते ही वो चला गया। इसके अलावा वो कहती हैं कि उस जैसे बेटों की वजह से करोड़ों मांओं की गोद सलामत है। इतना ही नही आपको मालूम हो कि अब यह कहते हुए उनकी मां रोती नहीं, बल्कि वो कहती हैं कि वो एक शहीद बेटे की मां है।
बता दें कि इतना ही नहीं कमल कांत बत्रा बताती हैं कि विक्रम को उनके हाथ के बने राजमा-चावल बहुत ही पसंद थे। वह छुटि्टयों में जब भी आते थे मां के हाथ से बनें राजमा-चावल खाना नहीं भूलते। इसके अलावा उनकी मां आगे कहती है कि अब भी जब घर में राजमा-चावल या कढ़ी-चावल बनता है तो उसकी याद जरूर आती है।
वहीं मालूम हो कि फिल्म ‘शेरशाह’ देखने के बाद उनकी मां कहती हैं, कि उन्हें बत्रा की बड़ी याद आई। उसका भाई विशाल और उसकी दाेनों बहनें भाईदूज के दिन उसकी यादों में आज भी तड़प उठती हैं। घर में शादियां होती हैं, तो उसे याद कर सबकी आंखें भर आती है और तो और विक्रम की याद में घर में ही मां ने एक म्यूजियम बनवाया है।
इतना ही नहीं हर साल 26 जुलाई को विक्रम के जन्मदिन पर वहां ज्योति प्रज्जवलित करते हैं, फूल चढ़ाते हैं और उसकी पसंद की चीजें जैसे हलवा-पूरी बनता है। उसके बाद ये खाद्य वस्तुए फोटो के सामने रखी जाती हैं औऱ उनकी मां विक्रम की पसंद की चीजें राजमा-चावल, कढ़ी-चावल, पूरियां बना कर जरूरतमंदों में बांटती हैं।
वहीं जानकारी के लिए बता दें कि बत्रा की मां कमल कांत बत्रा काफी कम उम्र से ही रामचरितमानस का पाठ करती आ रही हैं और दो बेटियों के बाद उन्होंने दो जुड़वां बेटों विक्रम और विशाल को जन्म दिया। उन्हें लगा कि प्रभु राम ने उनके घर लव-कुश को भेजा है इसलिए नाम भी लव-कुश रख दिया गया और दोनों जुड़वां बच्चों में बड़े होने के कारण विक्रम का नाम लव और छोटे लड़के विशाल का नाम कुश रखा गया।
वहीं आख़िर में बता दें कि विक्रम की मां कहती है कि उनके बच्चे बहादुर होने के साथ ही साथ पढ़ने में भी होशियार थे। इतना ही नहीं गणित तक के प्रश्न तुरंत हल कर लिया करते। वहीं बेटे को याद करते हुए मां बताती हैं कि बचपन में लव और कुश जब भी रात को फुरसत का समय मिलता था अपने पिता गिरधारी लाल बत्रा के साथ होते थे, तो उनसे कहानियाें की फरमाईश करते और उसके पिताजी उन्हें भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, गुरु गोविंद सिंह, सुभाषचंद्र बोस की कहानियां सुनाया करते और शायद यही वजह रही, जिसकी वज़ह से उनमें देश प्रेम का अंकुर प्रस्फुटित हुआ और वे देश प्रेम के लिए अपनी जान न्यौछावर करने से भी नहीं कतराए।