उप-राष्ट्रपति चुनाव : गोपाल कृष्ण गांधी और वेंकैया नायडू में मुकाबला, जानिए वेंकैया क्यों हैं बीजेपी की पहली पसंद!
नई दिल्ली – बीजेपी ने कल सबको चौकाते हुए उप-राष्ट्रपति के लिए वरिष्ठ नेता वेंकैया नायडू का नाम सामने रखा है। इससे पहले यूपीए गोपाल कृष्ण गांधी को अपना उम्मीदवार घोषित किया था। आपको बता दें कि उप-राष्ट्रपति का चुनाव 5 अगस्त को होगा। वेंकैया के नाम को लेकर पहले ही अंदाजा लगाया जा रहा था कि बीजेपी इसबार दक्षिण भारत से उपराष्ट्रपति चुन सकती है। वेंकैया फिलहाल मोदी सरकार में शहरी विकास मंत्री हैं। venkaiah naidu for vice president.
इस कारण वेंकैया बने बीजेपी की पहली पसंद :
पीएम मोदी ने नायडू को उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार चुने जाने के बाद ट्वीट कर लिखा, ‘किसान के पुत्र. एम वेंकैया नायडू गारू सार्वजनिक जीवन में वर्षों का अनुभव रखते हैं और हर राजनीतिक वर्ग में सराहे जाते हैं।’ आपको बता दें कि ‘गारू’ किसी को सम्मान देने के लिए बोला जाता है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडनवीस ने भी नायडू के उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनने पर अपनी खुशी जताई।
वेंकैया नायडू के सभी दलों से अच्छे संबध :
आपको बता दें कि इस वक्त वेंकैया नायडू ही ऐसे नेता हैं जिनकी पहुंच हर पार्टी में है। नायडू के संसदीय मामलों के मंत्री होने के नाते कांग्रेस सहित सभी दलों के साथ अच्छे संबंध हैं। वो गुड्स ऐंड सर्विसेज टैक्स (GST) बिल पर विपक्ष का समर्थन प्राप्त करने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के घर पर भी गए थे और राष्ट्रपति चुनाव के सिलसिले में भी उनसे मिले थे।
कौन हैं वेंकैया नायडू :
वेंकैया नायडू मोदी सरकार में शहरी विकास, आवास और शहरी गरीबी उन्मूलन और संसदीय कार्य मंत्री हैं। अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में वो केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री रह चुके हैं। वेंकैया नायडू का नाम उस वक्त सुर्खियों में आया जब उन्होंने 1972 में ‘जय आंध्र आंदोलन’ के नेल्लोर के आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लेते हुये विजयवाड़ा से आंदोलन का नेतृत्व किया था।
बीजेपी के लिए कई बार बने संकटमोचक :
नायडू को संकटमोचक और हाजिरजवाबी के लिए भी जाना जाता है। उन्होंने कई बड़े मुद्दों पर विपक्ष पर मजाकिया अंदाज में तंज कसे हैं। जब भी विपक्ष सरकार पर हमलावर होता, तो कई बार नायडू आगे आकर विपक्ष को अपने तीखे और कभी-कभी मजाकिया लहजे से शांत करा देते हैं। नायडू उपराष्ट्रपति बनते हैं, तो 10 साल बाद होगा कि कोई राजनीतिक शख्सियत इस पद पर बैठेगा।