क्यों पांडवों ने धृतराष्ट्र के एक पुत्र को युद्ध में छोड़ दिया था जीवित, जानें युद्ध की ये वजह
महाभारत में पांडवों और कौरवों के बीच भीषण युद्ध हुआ था ये जगजाहिर है. इस युद्ध में पांडवों ने धृतराष्ट्र के सिर्फ एक ही पुत्र को जीवित छोड़ा था. उसका नाम युयुत्सु (Yuyutsu) था. महाभारत के अनुसार गांधारी जब गर्भवती थी तब धृतराष्ट्र की सेवा आदि कार्य करने के लिए एक वणिक वर्ग की दासी रखी गई थी.
धृतराष्ट्र ने उस दासी से ही सहवास कर लिया. सहवास के कारण दासी भी गर्भवती हो गई. उस दासी से एक पुत्र उत्पन्न हुआ जिसका नाम युयुत्सु रखा गया. उल्लेखनीय है कि धृतराष्ट्र ने एक और दासी के साथ संयोग किया था जिससे विदुर नामक विद्वान पुत्र का जन्म हुआ. दोनों को ही राजकुमार जैसा सम्मान, शिक्षा और अधिकार मिला था, क्योंकि वे धृतराष्ट्र के पुत्र थे.
युयुत्सु अपने भाइयों दुर्योधन (Duryodhana) और दुशासन की तरह अधर्मी नहीं था. वह धर्म का काफी जानकार था. आपको बताते है युयुत्सु से जुड़ी खास बातें. युयुत्सु एक धर्मात्मा था, इसलिए दुर्योधन की अनुचित चेष्टाओं को बिल्कुल पसन्द नहीं करता था और उनका विरोध भी करता था.
इस कारण दुर्योधन और उसके अन्य भाई उसको महत्त्व नहीं देते थे और उसका हास्य भी उड़ाते थे. युयुत्सु ने महाभारत युद्ध रोकने का अपने स्तर पर बहुत प्रयास किया था लेकिन उसकी नहीं चलती थी.
युद्ध में उसने दिया था पांडवों का साथ
आपको बता दें कि जैसे ही यह युद्ध शुरू हुआ युधिष्ठिर (Yudhishthira) ने रणभूमि के बीच खड़े होकर कौरव सेना के सैनिकों से पूछा था, क्या शत्रु सेना का कोई भी वीर पांडवों के पक्ष से आकर युद्ध करना चाहता है. उस समय युयुत्सु ने कौरवों की सेना को छोड़ दिया था और पांडवों के पक्ष में आ गया था. युयुत्सु द्वारा ऐसा करने पर दुर्योधन ने उसे बहुत भला-बुरा कहा था और अपमानित भी किया था.
धृतराष्ट्र का बस एक यही पुत्र बचा था युद्ध में
इस भीषण युद्ध में दुर्योधन और अन्य कौरव महायोद्धाओं की मृत्यु के बाद पांडव इस युद्ध को जीत गए थे. इस युद्ध में सिर्फ युयुत्सु एकमात्र कौरव जीवित बचा था. युयुत्सु एक नैतिक योद्धा था. जिसने उन परिस्थितियों में पैदा होने के बावजूद, बुराई का साथ न देकर धर्म का रास्ता चुना था. उन्होंने धर्म का साथ देने के लिए अपने पारिवारिक बंधनों का त्याग कर दिया था.
युद्ध के बाद युधिष्ठिर ने सौंपा था ये काम
महाभारत के अनुसार, कुरुक्षेत्र में हुए भयंकर युद्ध के बाद धृतराष्ट्र के सभी पुत्र मारे गए थे उस समय सिर्फ युयुत्सु ही जिन्दा बचा था. क्योंकि उसने धर्म पांडवों का साथ दिया था.
जब युधिष्ठिर हस्तिनापुर के राजा बने तो उन्होंने सभी भाइयों को अलग-अलग काम दिए. ऐसे में उन्होंने युयुत्सु को उन्होंने अपने पिता धृतराष्ट्र की सेवा के लिए नियुक्त कर दिया था. बाद में जब पाडंव स्वर्ग की यात्रा पर निकले तो उन्होंने परीक्षित को राजा बनाया और युयुत्सु को उसका संरक्षक नियुक्त कर दिया.