रानीअहिल्याबाई ने औरंगजेब द्वारा तोड़े गए काशी विश्वनाथ का करवाया था पुर्ननिर्माण, जानिए कहानी
कभी औरंगजेब ने काशी को तोड़ा, फ़िर अहिल्याबाई ने करवाया पुर्ननिर्माण। जानें यह कहानी विस्तार से...
काशी विश्वनाथ मंदिर (Kashi Vishwanath temple) को पुनः अपने भव्य स्वरूप में वापस लौटता देख अब हर कोई हर्ष में है। जी हां यह आज़ादी के बाद शायद पहली बार ही है, जब किसी सरकार ने काशी को उसका अपना अतीत वापस किया हो, वह भी नए रूप में। गौरतलब हो कि यह सच आप भी जान लें कि धर्म का ध्वज लहराने वाले इस अतिप्राचीन मंदिर (ancient temple) के साथ हमेशा से ही ऐसा सुलूक नहीं किया गया था।
काशी विश्वनाथ मंदिर (Varanasi Vishwanath temple) का इतिहास इसे बार-बार ध्वस्त करने और फिर पुनर्निर्माण करने से जुड़ा हुआ है और भारत में आने वाले मुस्लिम आक्रमणकारियों (Muslim invaders) ने धर्म नगरी काशी (Kashi) के सभी मंदिरों को बुरी तरह तोड़-फोड़ दिया था और उनकी जगह मस्जिदों का निर्माण किया था।
वहीं अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने काशी को नया रूप देने के लिए प्रयास किया है। जबकि पहली बार जब आक्रांताओं का आक्रमण भारत पर हुआ था तब काशी में कुल 100 के आसपास मंदिर तोड़े गए थे। वहीं काशी विश्वनाथ मंदिर को भी काफी नुकसान पहुंचाया गया था। आइए ऐसे में आज हम चर्चा करते हैं काशी में बार बार मंदिरों के ध्वंस और पुर्ननिर्माण की कहानी की…
बता दें कि पीएम नरेंद्र मोदी ने सोमवार को काशी विश्वनाथ धाम कारिडोर का उद्घाटन किया। जी हां वहीं इससे पहले वर्ष 18 अप्रैल 1669 को क्रूर मुगल शासक औरंगजेब ने एक फरमान जारी कर काशी विश्वनाथ मंदिर को ध्वस्त करने का आदेश दिया था। गौरतलब हो कि 1669-70 में इंदौर की रानी अहिल्याबाई होल्कर ने काशी विश्वनाथ धाम का पुनर्निर्माण करवाया।
इतना ही नहीं रानी अहिल्याबाई के योगदान का शिलापट और उनकी एक मूर्ति भी ‘श्री काशी विश्वनाथ धाम’ के प्रांगण में लगाई गई। गौरतलब हो कि अहिल्याबाई के बाद पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह ने विश्वनाथ मंदिर के शिखर पर सोने का छत्र बनवाया था और कहा जाता है ग्वालियर की महारानी बैजाबाई ने भी मुख्य मंदिर का मंडप बनवाया था।
काशी में बोलें पीएम मोदी…
वहीं गौरतलब हो कि बीते दिन पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा कि काशी तो अविनाशी है और इसे कोई नुकसान नहीं पहुंचा पाया। पीएम नरेंद्र मोदी ने इसके अलावा कहा कि आततायी ने इस शहर पर हमले किए। औरंगजेब ने तलवार के दम पर संस्कृति को कुचलने की कोशिश की। इतना ही नहीं प्रधानमंत्री जी ने कहा कि काशी पर औरंगजेब ने अत्याचार किए। यहां मंदिर तोड़ा गया तो माता अहिल्याबाई होलकर ने इसका निर्माण कराया। जैसे काशी अनंत है, ऐसे ही उसका योगदान भी अनंत है।
वहीं अतीत के पन्ने पलटकर देखा जाए तो ऐसी मान्यताएं और बातें निकलकर सामने आती है कि औरंगजेब के फरमान के बाद 1669 में मुगल सेना ने विशेश्वर का मंदिर ध्वस्त कर दिया था। वहीं स्वयंभू ज्योतिर्लिंग को कोई क्षति न हो, इसके लिए मंदिर के महंत शिवलिंग को लेकर ज्ञानवापी कुंड में कूद गए थे।
इसके अलावा हमले के दौरान मुगल सेना ने मंदिर के बाहर स्थापित विशाल नंदी की प्रतिमा को तोड़ने का प्रयास भी किया था लेकिन अनेकों जतन के बाद भी वे नंदी की प्रतिमा को नहीं तोड़ सके। वहीं आज तक विश्वनाथ मंदिर परिसर से दूर रहे ज्ञानवापी कूप और विशाल नंदी को एक बार फिर 352 साल बाद विश्वनाथ मंदिर परिसर में शामिल कर लिया गया है।
क्या था रानी अहिल्याबाई होल्कर का मंदिर को लेकर योगदान…
बता दें कि 1777 में इंदौर के होल्कर राजघराने की रानी अहिल्या बाई होल्कर ने विश्वनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण करवाने का प्रण लिया। उन्होंने अगले 3 साल में मंदिर पुनर्निर्माण करवाया। वैसे तो रानी अहिल्याबाई का शासन इंदौर जैसे एक छोटे से राज्य पर ही था, लेकिन उन्होंने देश के कई इलाकों में विकास के काम करवाए। गौरतलब हो कि उन्होंने अपने राज्य में कई तालाब, सडकें, नदियों के किनारे घाट और मंदिरों का पुनर्निर्माण करवाया था।
वहीं बता दें कि अहिल्याबाई इंदौर के होल्कर राजघराने के संस्थापक मल्हारराव होल्कर के बेटे खांडेराव होल्कर की पत्नी थीं। 1733 में अहिल्याबाई की शादी खांडेराव से हुई थी, लेकिन 1754 कुम्भेर के युद्ध में खांडेराव की मृत्यु हो गई थी। वहीं 12 साल बाद उनके ससुर मल्हारराव होल्कर भी नहीं रहे।
इसके अलावा बात मराठा सरदार दत्ताजी सिंधिया और मल्हारराव होल्कर की करें तो उन्होंने भी काशी विश्वनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण को लेकर काफी कोशिशें की थीं, लेकिन इनकी कोशिशों को देखते हुए ही साल 1770 में दिल्ली में मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय यानी अली गौहर ने मंदिर विध्वंस की क्षतिपूर्ति वसूलने का आदेश भी जारी कर दिया, लेकिन तब तक काशी पर ईस्ट इंडिया कंपनी यानि अंग्रेजों का राज हो गया और मंदिर का काम रुक गया।
दो साल बाद अहिल्याबाई के इकलौते बेटे मालेराव का भी 21 साल की उम्र में देहांत हो गया, जिसके बाद इंदौर का शासन पूरी तरह अहिल्याबाई के हाथों में था।
वहीं साल 1777-80 के बीच रानी अहिल्याबाई होल्कर ने मंदिर निर्माण का प्रयास दोबारा शुरू किया और सफलता भी अर्जित की। अहिल्याबाई ने विश्वनाथ मंदिर के गर्भगृह कों फिर से बनवाया और शास्त्रसम्मत तरीके से मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा भी करवाई। वहीं इस विषय पर काशी के जानकार प्रोफेसर राना वीपी सिंह का कहना है कि, ” काशी विश्वनाथ मंदिर को लेकर रानी अहिल्याबाई का योगदान अतुलनीय है। रानी ने शास्त्र सम्मत तरीके से शिवलिंग की प्राण-प्रतिष्ठा करवाई थी।
एकादश रूद्र के प्रतीक स्वरुप 11 शास्त्रीय आचार्यों द्वारा प्राण-प्रतिष्ठा के लिए पूजा की गई। रानी ने शिवरात्रि से इसका संकल्प किया और शिवरात्रि पर ही मंदिर खोला गया। इससे रानी की दृष्टि और सनातन संस्कृति के प्रति निष्ठा का पता चलता है।