CDS बिपिन रावत के निधन के बाद पीएम मोदी ने अपने हाथों को कसकर क्यों लिया बांध? जानिए…
इस वज़ह से बिपिन रावत के चले जाने से बेहद दुःखी हैं पीएम मोदी। जानिए...
देश सीडीएस बिपिन रावत के असामयिक निधन से गमगीन है। सभी की आंखें नम हैं और 130 करोड़ से अधिक की आबादी अपने देश के सेनानायक के इस तरह असामयिक चले जाने से स्तब्ध है और लोगों को समझ नहीं आ रहा है कि ऐसे भी क्या कोई जाता है? वहीं दूसरी तरफ बिपिन रावत को खोने का गम अगर किसी को सबसे अधिक है, तो वह उनके परिजन के बाद देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही है। जी हां डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत को हमने खो दिया है।
तमिलनाडु के कुन्नूर में हुए हादसे में जनरल बिपिन रावत और उनकी पत्नी समेत 13 लोगों की मौत हो गई और उसके बाद पूरा देश गम में डूब गया।
वहीं जनरल बिपिन रावत के अचानक दुनिया से यूं चले जाने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी काफ़ी आहत नज़र आ रहें है और इसकी एक बानगी उस दौरान देखने को मिली। जब उन्होंने अपनी अध्यक्षता में कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी की एक बैठक बुलाई। इस बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, नेशनल सिक्योरिटी एडवाइजर अजित डोभाल और गृह मंत्री अमित शाह उपस्थित थे। इस दौरान इन सभी के चेहरों पर दुख साफ देखा जा सकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के हाव भाव बता रहे हैं कि जनरल बिपिन रावत की मौत से उनके मन में कितनी उथल-पुथल मची है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नम आंखों में दुःख साफ तौर पर झलक रहा है। उनके चेहरे के हावभाव उनके मन की पीड़ा छुपा नहीं पा रहे और इस दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने हाथों को इतना कसकर पकड़ रखा था कि मानों वह जनरल बिपिन रावत को किसी भी कीमत पर खोना नहीं चाहते थे और इस दर्दनाक हादसे की खबर मिलते ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी टूट गए थे।
वहीं बीते सालों प्रधानमंत्री मोदी ने अपने कई करीबियों को खोया है। जिनमें अरुण जेटली, सुषमा स्वराज और मनोहर पारिकर भी शामिल है। ये सभी लोग प्रधानमंत्री मोदी के लिए उनके परिवार से भी बढ़कर थे। आपको बता दें कि प्रधानमंत्री मोदी जनरल बिपिन रावत पर बहुत विश्वास करते थे। आइए ऐसे में जानते है बिपिन रावत और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से जुड़ी कुछ विशेष बातें…
पीएम मोदी की पहली पसंद थे बिपिन रावत…
बता दें कि बिपिन रावत के जाने से पीएम मोदी का व्यथित होना स्वाभाविक है। जी हां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बिपिन रावत पर अगाध विश्वास था। बिपिन रावत को 2016 में सेना प्रमुख बनाने में दो सीनियर लेफ्टिनेंट जनरल के ऊपर वरीयता दी गई थी। प्रवीण बख्शी और पीएम हरीज उनसे सीनियर थे। इसके बाद भी उन्हें 31 दिसंबर 2019 में एक बड़ी जिम्मेदारी दी गई। पहली बार सीडीएस की पोस्ट बनाई गई।
इसकी कमान रावत के हाथों में सौंपी गई। जिसकी मंशा तीनों सेनाओं (थल, जल, वायु) के बीच समन्वय बढ़ाना था। वहीं रावत इस दिशा में तेजी से काम कर रहे थे और प्रधानमंत्री को भी पूरा भरोसा था कि रावत ही इसके लिए सबसे सही थे। उनका विजन काफी व्यापक था और वह भविष्य की चुनौतियों को काफी अच्छी तरह से समझते थे।
ऐसे बनें थे बिपिन रावत देश के पहले सीडीएस…
बता दें कि प्रधानमंत्री मोदी जनरल बिपिन रावत पर काफी विश्वास करते थे। वहीं देश में साल 1999 से ही सीडीएस के पद की नियुक्ति की मांग उठती रही है और कई सालों के बाद जब नियुक्ति का वक्त आया तो प्रधानमंत्री मोदी को सबसे ज्यादा भरोसा जनरल बिपिन रावत पर ही था। वहीं प्रधानमंत्री मोदी ने जनरल बिपिन रावत को देशहित की कई योजनाओं का काम भी सौंपा था। इनमें सेना को आधुनिक बनाने से लेकर बेहद अहम इंटीग्रेटेड थियेटर कमांड प्रोजेक्ट भी शामिल थे।
इसके अलावा आर्मी के हथियारों को अपग्रेड करने के लिए स्ट्रैटिजिक पार्टनरशिप मॉडल पर जनरल बिपिन रावत की निगरानी में ही काम चल रहा था। जल, थल और वायु सेना के बीच बेहतर समन्वय के लिए जनरल काम कर रहे थे और अचानक रावत के ऐसे में चले जाने से प्रधानमंत्री को एक बड़ा झटका लगा है।
‘आत्मनिर्भर भारत’ पर दोनों का था विशेष जोर…
वहीं आपको जानकर सुखद आश्चर्य होगा कि एक और मामले में पीएम और बिपिन रावत की सोच बहुत ज्यादा मिलती-जुलती थी। जी हां पीएम मोदी की तरह बिपिन रावत का भी फोकस ‘आत्मनिर्भर भारत’ पर बहुत ज्यादा था। वह सार्वजनिक मंचों पर इसकी वकालत करते थे और हाल में एक कार्यक्रम में उन्होंने दो-टूक कहा था कि देश को स्वदेशी हथियारों और तकनीक की जरूरत है।
इतना ही नहीं उन्होंने कहा था कि ‘रीजनल पावर’ बनाने का सपना उधार ली गई ताकत से पूरा नहीं किया जा सकता है और हमें इस दिशा में गंभीरता के साथ विचार करने की जरूरत है। ऐसे में आप सोच सकते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए कितनी अहमियत जनरल बिपिन रावत रखते थे, लेकिन अब होनी को कौन टाल सकता है और पीएम मोदी सहित देश को गम में छोड़कर रावत साहब परलोकवासी हो गए।