अध्यात्म

रविवार की शुरुआत करे आदित्य हृदय स्तोत्र के साथ, श्रीराम ने भी विजय प्राप्त करने के लिए पढ़ा था

रावण से युद्ध करने के पहले भगवान श्रीराम ने भी पढ़ा था सूर्यदेव का ये स्तोत्र, ऐसी है इसकी महिमा

हिन्दू धर्म में प्रकृति में मौजदू हर एक चीज का धर्मिक महत्व है. बह्रमाण में मौजूद हर ग्रह को देवता का दर्जा दिया गया है. वहीं सूर्य को ग्रहों का राजा माना जाता है. साथ ही एक प्रत्यक्ष देवता के रूप में सूर्यदेव की उपासना की जाती है क्योंकि सूर्य की ऊर्जा से ही आमजनमानस को जीवन प्राप्त है.

ज्योतिष में सूर्य को नौकरी पेशी, सामाजिक प्रतिष्ठा और आत्म सम्मान आदि का कारक माना गया है. कहा जाता है कि कुंडली में अगर सूर्य कमजोर स्थिति में हों, तो व्यक्ति को जीवन में कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है.

benefit of aditya hridaya stotra

सूर्य कमजोर होने से व्यक्ति के पिता से संबन्ध खराब होते हैं, अपयश का सामना करना पड़ता है, नौकरी में भी परेशानी आती है और व्यक्ति तमाम रोगों से घिर जाता है. ऐसी स्थितियों के बीच धन हानि भी होने की सम्भावना होती है. इस वजह से सूर्य को मजबूत स्थिति में बनाए रखना काफी महत्वपूर्ण हो जाता है. अगर आपकी कुंडली में भी सूर्य कमजोर है, तो इसे मजबूत करना बहुत ही जरुरी हो जाता है. इसके लिए आपको आदित्य हृदय स्तोत्र का नियमित रूप से पाठ करना चाहिए.

अगर रोजाना करना किसी कारण से संभव नहीं है तो कम से कम रविवार के दिन अवश्य करें. रविवार का दिन सूर्य देव को ही पूरी तरह से समर्पित होता है. जानिए इस स्तोत्र से जुड़ी कुछ खास बातें.

भगवान् प्रभु श्रीराम ने भी किया था इस स्तोत्र का पाठ

महर्षि अगस्त्य द्वारा आदित्य हृदय स्तोत्र की रचना की गई थी. श्री वाल्मीकि रामायण के युद्ध कांड के एक सौ पाचवें सर्ग में इस बात का उल्लेख है कि प्रभु श्रीराम ने रावण से युद्ध करने से पहले सूर्य देव का आशीर्वाद लिया था और आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ किया था. ये स्तोत्र व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक बदलाव लेकर आता है और व्यक्ति को हर जगह मान-सम्मान दिलाने में सक्षम बनता है.

आदित्य हृदय स्तोत्र सुबह के समय पढ़ना चाहिए

shree ram and surya dev

शास्त्रों में आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ सुबह के समय करना उत्तम माना गया है. सुबह स्नान करने के बाद तांबे के लोटे में जल लेकर इसमें रोली, अक्षत, लाल पुष्प और गुड़ डालकर सूर्य देव को अर्घ्य दें. इसके साथ ही अर्घ्य देते समय गायत्री मंत्र का जाप भी करे. इसके बाद भगवान भुवन भास्कर के समक्ष इसका पाठ करना चाहिए. पाठ पूरा होने के बाद सूर्य देव को प्रणाम करें. रविवार के दिन इसका पाठ कर रहे हैं, तो उस दिन नमक का सेवन बिलकुल भी न करें. मांस, म​दिरा, प्याज, लहसुन और शराब आदि चीजों से दुरी बनाये रखे.

आदित्य हृदय स्तोत्र
ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम्‌। रावणं चाग्रतो दृष्ट्वा युद्धाय समुपस्थितम्‌॥

दैवतैश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम्‌। उपगम्याब्रवीद् राममगस्त्यो भगवांस्तदा॥

राम राम महाबाहो श्रृणु गुह्मं सनातनम्‌। येन सर्वानरीन्‌ वत्स समरे विजयिष्यसे॥

आदित्यहृदयं पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनम्‌। जयावहं जपं नित्यमक्षयं परमं शिवम्‌॥

सर्वमंगलमागल्यं सर्वपापप्रणाशनम्‌। चिन्ताशोकप्रशमनमायुर्वर्धनमुत्तमम्‌॥

रश्मिमन्तं समुद्यन्तं देवासुरनमस्कृतम्‌। पुजयस्व विवस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरम्‌॥

सर्वदेवात्मको ह्येष तेजस्वी रश्मिभावन:। एष देवासुरगणांल्लोकान्‌ पाति गभस्तिभि:॥

एष ब्रह्मा च विष्णुश्च शिव: स्कन्द: प्रजापति:। महेन्द्रो धनद: कालो यम: सोमो ह्यापां पतिः॥

पितरो वसव: साध्या अश्विनौ मरुतो मनु:। वायुर्वहिन: प्रजा प्राण ऋतुकर्ता प्रभाकर:॥

आदित्य: सविता सूर्य: खग: पूषा गभस्तिमान्‌। सुवर्णसदृशो भानुर्हिरण्यरेता दिवाकर:॥

surya dev

हरिदश्व: सहस्त्रार्चि: सप्तसप्तिर्मरीचिमान्‌। तिमिरोन्मथन: शम्भुस्त्वष्टा मार्तण्डकोंऽशुमान्‌॥

हिरण्यगर्भ: शिशिरस्तपनोऽहस्करो रवि:। अग्निगर्भोऽदिते: पुत्रः शंखः शिशिरनाशन:॥

व्योमनाथस्तमोभेदी ऋग्यजु:सामपारग:। घनवृष्टिरपां मित्रो विन्ध्यवीथीप्लवंगमः॥

आतपी मण्डली मृत्यु: पिगंल: सर्वतापन:। कविर्विश्वो महातेजा: रक्त:सर्वभवोद् भव:॥

नक्षत्रग्रहताराणामधिपो विश्वभावन:। तेजसामपि तेजस्वी द्वादशात्मन्‌ नमोऽस्तु ते॥

नम: पूर्वाय गिरये पश्चिमायाद्रये नम:। ज्योतिर्गणानां पतये दिनाधिपतये नम:॥

जयाय जयभद्राय हर्यश्वाय नमो नम:। नमो नम: सहस्त्रांशो आदित्याय नमो नम:॥

नम उग्राय वीराय सारंगाय नमो नम:। नम: पद्मप्रबोधाय प्रचण्डाय नमोऽस्तु ते॥

ब्रह्मेशानाच्युतेशाय सुरायादित्यवर्चसे। भास्वते सर्वभक्षाय रौद्राय वपुषे नम:॥

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तमोघ्नाय हिमघ्नाय शत्रुघ्नायामितात्मने। कृतघ्नघ्नाय देवाय ज्योतिषां पतये नम:॥

तप्तचामीकराभाय हरये विश्वकर्मणे। नमस्तमोऽभिनिघ्नाय रुचये लोकसाक्षिणे॥

नाशयत्येष वै भूतं तमेष सृजति प्रभु:। पायत्येष तपत्येष वर्षत्येष गभस्तिभि:॥

एष सुप्तेषु जागर्ति भूतेषु परिनिष्ठित:। एष चैवाग्निहोत्रं च फलं चैवाग्निहोत्रिणाम्‌॥

देवाश्च क्रतवश्चैव क्रतुनां फलमेव च। यानि कृत्यानि लोकेषु सर्वेषु परमं प्रभु:॥

एनमापत्सु कृच्छ्रेषु कान्तारेषु भयेषु च। कीर्तयन्‌ पुरुष: कश्चिन्नावसीदति राघव॥

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पूजयस्वैनमेकाग्रो देवदेवं जगप्ततिम्‌। एतत्त्रिगुणितं जप्त्वा युद्धेषु विजयिष्यसि॥

अस्मिन्‌ क्षणे महाबाहो रावणं त्वं जहिष्यसि।एवमुक्ता ततोऽगस्त्यो जगाम स यथागतम्‌॥

एतच्छ्रुत्वा महातेजा नष्टशोकोऽभवत्‌ तदा। धारयामास सुप्रीतो राघव प्रयतात्मवान्‌॥

आदित्यं प्रेक्ष्य जप्त्वेदं परं हर्षमवाप्तवान्‌। त्रिराचम्य शूचिर्भूत्वा धनुरादाय वीर्यवान्‌॥

रावणं प्रेक्ष्य हृष्टात्मा जयार्थं समुपागतम्‌। सर्वयत्नेन महता वृतस्तस्य वधेऽभवत्‌॥

अथ रविरवदन्निरीक्ष्य रामं मुदितमना: परमं प्रहृष्यमाण:।
निशिचरपतिसंक्षयं विदित्वा सुरगणमध्यगतो वचस्त्वरेति॥

यह आपको हर तरह की बीमारी और कष्टों से निवारण दिलाएगा. स्तोत्र का विधि पूर्वक पाठ करने से व्यक्ति को सूर्य देव का आशीर्वाद प्राप्त होता है.

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